शनिवार, 15 अक्टूबर 2011

विपदा अनेक अइ!

मिथिला के नौनिहाल छी हम
काइल के लेल तैयार छी हम!

जे आइब रहल अछि
प्रखर-पुँज
ओइ नव युग के
आधार छी हम।
काइल के लेल तैयार छी हम!

हम छी भविष्य अइ मिथिला के,
छी नौनिहाल अइ धरती के;
जे ताइक रहल अछि
घुइर-घुइर,
ओइ स्वर्णयुग के
आसार छी हम।
काइल के लेल तैयार छी हम!

विपदा अनेक अइ!

धन्‍य-धन्‍य ओ मिथिला महान !

जय मिथिला जय मैथलि

धन्‍य-धन्‍य ओ मिथिला महान, हम सब छी जकर संतान ।
विश्‍व करैछ जकर गुणगान, धन्‍य-धन्‍य ओ मिथिला महान ।।

रामक सासुर छैन जाहि ठाम, कपिल, कणाद, गौतमक स्‍थान ।
सुर, नर, मुनि करैछ जकर यशगान, धन्‍य-धन्‍य ओ मिथिला महान ।।

सनातन धर्मक जखन भ गेल लोप, नास्तिक सभक सभतरि पसरि गेल कोप ।
तखनहु मिथिला में छल धर्मक इजोत, सामवेदक मंत्रोच्‍चार सॅ ओतप्रोत ।।

आदि शंकराचार्यक अछि इ प्रसंग, शास्‍त्रार्थ केला मंडन ओ भारतीक संग ।
वैदिक धर्मक पुन: भेल विस्‍तार, विश्‍व देखलक मिथिलाक संस्‍कार ।।

मैथिल होएबा पर अछि हमरा अभिमान, अतिथि सत्‍कार अछि जकर धर्मप्राण ।
सुर, नर, मुनि करैछ जकर यशगान, धन्‍य-धन्‍य ओ मिथिला महान ।।
धन्‍य-धन्‍य ओ मिथिला महान ।।।

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011

"जहिना जहिना बढ़ल जरुरत"

जहिना जहिना बढ़ल जरुरत,
तहिना तहिना घटल कमाई,
रुइया के गोदाम में बैस कs,
हँसैत अछि आय दियासलाई,

एहसानक सागर सुखल,
बुदरू सबहक सपना भूखल,
रोज कहानी पानी मांगे,
बादल ये गुड़-धानी मांगे,
रैत पोखैर के आईख मs गरल,
एहन बदलल छाई,

फूल-फूल पर लपटें नाचें
जरैत होय इबारत बांचें,
टहनी मुइर के टूईट रहल अछि,
ओ तेज़ाब कs घोइट रहल अछि,
बुदरू सभ के मासूम हँसी आब,
लागे लागल ढिंठाई,

बिच सड़क बिलैर काटे,
आर इजोत मारे चांटे,
दिन धूसर अछि, साझ धुवा में,
रौद लापता भेल कुवा में,
चश्मा चढ़ल कमानी ढीला,
परैर नै अछि देखाई,
चन्दन झा ("राधे")
जितमोहन झा ("जीतू जी")

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

चांदी के दीवार

चांदी के दीवार नै तोरलक जिगर के टुकरा तोइर देलक,
धन के लोभी कीड़ा सभ - २ मानवता सँ मुह मोइर लेलक,
चांदी के दीवार नै तोरलक जिगर के टुकरा तोइर देलक,

एक पिता अपन बेटी के जखन ब्याह रचाबैत छैथ,
अपन हस्ती सँ बैढ़ - चैढ के दौलत खूब लुटाबैत छैथ,
सुखी रहती लाडली बेटी सपना खूब सजाबैत छैथ,
अपन चमन के कोरही तोइर के अहाँक हवाले छोइर देलक,
चांदी के दीवार नै तोरलक जिगर के टुकरा तोइर देलक,

सपना सजा के लाखो दुल्हन घर में आबैत छली,
बिसैर के अपन बाबुल के घर पति पर जान लुटाबैत छली,
असली चेहरा होइत उजागर मन में ओ घबराबैत छली,
अपन जीवन के नैया के ओ भाग्यक भरोसे छोइर देलक,
चांदी के दीवार नै तोरलक जिगर के टुकरा तोइर देलक,

पिया भेष में जखन कसाई अपन मांग सुनाबैत छैथ,
जुल्म असगरे लागल ढहाबे रोटी के तर्साबैत छैथ,
मांग में लाली भराई बला आय हुनकर खून बाहाबैत छैथ,
अपने हाथे हुनका उठा के जरैत चिता में छोइर देलक,
चांदी के दीवार नै तोरलक जिगर के टुकरा तोइर देलक,

जागू हे मैथिल के बहिन सभ जुर्म सँ अहाँ के लारबाक अछि,
कसम अछि अहाँ के ओय राखी के निर्भय भ के रहबाक अछि,
झाँसी के रानी बैन के अहाँ के लोहा लेबाक अछि,
कसम उठा के "चन्दन" आय दरिंदा के भांडा फोइर देलक,
चांदी के दीवार नै तोरलक जिगर के टुकरा तोइर देलक,
रचना:-
चन्दन झा "राधे"

बुधवार, 5 अक्टूबर 2011

पाई कमेब नै जानैत छैथ तें,

पाई कमेब नै जानैत छैथ तें, अपन हाथ पसैर देलैथ,
किछ एहेन लोग सभ, दूल्हा कs बिकाऊ बना देलैथ,

दहेज़ ले कs अपना-आप में बड़का ओ कहाबैत छैथ,
खुद के घर के खुद ओ अपने हाथे जराबैत छैथ,

एक भिखमंगा आर हुनका में फर्क की रैह गेल,
दहेजक लोभी सभ अपन हाथे अपन गला दबाबैत छैथ,

सम्बंध ह्रदय सँ बनैत छैक, पैसा दौलत सँ नै यो बाबू,
प्यास मिझाबू पैन पीब के, किनको खून सँ नै यो बाबू,

पहिने कतेको पाप केलो, ओकरा फेर सs दोहराबाई छी,
पापक प्रायश्चित के बदला, पाप कs आर बढाबैत छी,

अहाँकें मैया जानकी के वास्ता, दहेज़ लेब बंद करू,
ऐना नै मिथिला के बहिन-बेटी के दहेजक लेल तंग करू,
रचना:-
चंदना झा..