॥ दुख - मोचन हनुमान ॥
जगत जनैया , यो बजरंगी ।
अहाँ छी दुख बिपति के संगी
मान चित अपमान त्यागि कउ ,
संत सुग्रीव विभीषण जी के,
अहाँ , बुद्धिक बल सँ देलों राज ॥
नीति निपुन कपि कैल मंत्रना
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख ----
बुझि ब्यथा , मूर्छित मन भेल ।
विह्बल चित विश्वास जगा कउ
जानकी राम मुद्रिका देल ॥
लागल भूख मधु र फल खयलो हूँ
लंका जरलों यौ बजरंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख ----
वर अहिरावण राम लखन कउ
बलि प्रदान लउ गेल पताल ।
बंदि प्रभू अविलम्ब छुरा कउ
बजरंगी कउ देलौ कमाल ॥
बज्र गदा भुज बज्र जाहि तन
कत योद्धा मरि गेल फिरंगी ,
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख ----
वर शक्ति वाण उर जखन लखन ,
लगि मूर्छित धरा परल निष्प्राण ।
वैध सुषेन बूटी नर आनल ,
पल में पलटि बचयलहऊ प्राण ॥
संकट मोचन दयाक सागर ,
नाम अनेक , रूप बहुरंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख ----
नाग फास में बाँधी दशानन ,
राम सहित योद्धा दालकउ ।
गरुड़ राज कउ आनी पवन सुत ,
कइल चूर रावण बल कउ
जपय प्रभाते नाम अहाँ के ,
तकरा जीवन में नञि तंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख ----
ज्ञानक सागर , गुण के आगर ,
शंक स्वयम काल के काल ।
जे जे अहाँ सँ बल बति यौलक ,
ताही पठैलहूँ कालक गाल
अहाँक नाम सँ थर - थर कॉपय ,
भूत - पिशाच प्रेत सरभंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख ----
लातक भूत बात नञि मानल ,
पर तिरिया लउ कउ गेलै परान ।
कानै लय कुल नञि रहि गेलै ,
अहाँक कृपा सँ , यौ हनुमान ॥
अहाँक भोजन आसन - वासन ,
राम नाम चित बजय सरंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख ----
सील अगार अमर अविकारी ,
हे जितेन्द्र कपि दया निधान ।
"रावण " ह्र्दय विश्वास आश वर ,
अहिंक एकहि बल अछि हनुमान ॥
एहि संकट में आबि एकादस ,
यौ हमरो रक्षा करू अड़ंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख ----