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बुधवार, 11 दिसंबर 2013

Mithila Against BIHAR

 बीते 100 सालोँ मे मिथिला के प्रति बिहार का रवैया :

1. बिहार मेँ दो एयरपोर्ट गया और पटना मेँ, पूर्णियामे नाम
मात्र का एयरपोर्ट। जब बिहार मे किसी जगह एयरपोर्ट
नहीँ था उस समय दरभंगा मे था पर आज ? पटना एयरपोर्ट
पर उतरने वाले अधिकतर यात्री उत्तरी मिथिला केँ होते हैँ पर
उत्तरी मिथिला मे एक भी एयरपोर्ट नही जहां से लोग
यात्रा कर सकेँ, क्योँ ?

2. बिहार के राज्य गीत और राज्य प्रार्थना मेँ
   मिथिला को कोइ जगह नहीँ क्या मिथिला,बिहार मेँ नहीँ है ?

3. बिहार के गया और मोतिहारी मेँ नये केद्रीय
विश्वविद्यालय बनेँगेँ, क्या पूर्णिया/ मुजफ्फरपुर इस लायक
नहीँ हैँ ?

4. बिहार सरकार ने आजतक भारत सरकार से मिथिला मे
बाढ़ की समस्या को नेपाल के समक्ष उठाने
को नही कहा है, क्योँ ? उत्तरी मिथिला मेँ बाढ़ का निदान
नहीँ हो सका है, क्योँ ?

5. आजतक कोशी पर डैम नहीँ बन सका है अगर ये डैम बन
जाता तो मिथिला बिहार को 24 घंटे बिजली उपलब्ध
कराता! क्या ये नहीँ बनना चाहिये ?

6. बिहार के पटना, गया और हाजीपुर मेँ लो फ्लोर बसेँ
चलेँगी क्या दरभंगा/ भागलपुर/कटिहार इस लायक नहीँ हैँ ?

7. मैथिली बिहार की प्रमुख भाषा है, मैथिली बिहार
की एकमात्र क्षेत्रीय भाषा है जो भारतीय संविधान
की अष्टम अनुसूचीमे शामिल है तो फिर आज तक इसे बिहार
की दूसरी राजभाषा का दर्जा क्योँ नहीँ ? यहां ये
बताना जरुरी है की मैथिली नेपाल की द्वितीय
राष्ट्रभाषा है!

8. बिहार सरकार भोजपुरी फिल्मोँ को कर मेँ छूट देती हैँ पर
मैथिली फिल्मोँ को नहीँ, क्योँ ?

9. मिथिला मेँ आजतक प्रारंभिक शिक्षा मैथिली मेँ
देनी नहीँ शुरु की गयी,क्योँ ?

10. बिहार सरकार उर्दू, बांग्ला के
शिक्षकोँ की नियुक्ति कर रहीँ पर मैथिली के
शिक्षकोँ की नहीँ, क्योँ ?

11.  जो IIIT दरभंगा के लिए था उसे नीतीश कुमार छीन कर
बिहटा स्थानांतरित कराये, क्योँ ? 

12. 2008 के कोसी पीड़ितोँ को आजतक न्याय नहीँ मिल
सका है, क्योँ ? 

13. मिथिला क्षेत्र मे नये उद्योग धंधे लगाने की बात
तो छोड़िये जितने भी पुराने जूट मिल, पेपर मिल, चीनी मिल
आदि थे वे सारे क्योँ बंद हो गये ?

14. नीतीश कुमार मिथिला क्षेत्र मेँ होने वाले हर इक
सभा मेँ ये कहते हैँ की मिथिला के विकास के बिना बिहार
का विकास नहीँ हो सकता तो फिर उन्होँने मिथिला के
विकास के लिए अब तक क्या किया ?

   कितने कारण गिनाऊ, बिहार के मिथिला के प्रति उदासीन
के ? अब तो बिहार पर विश्वास ही नहीँ है, बीते 100
सालोँ मे धोखा, धोखा और सिर्फ धोखा!

     अब आप बताइये बिहारी मित्रोँ क्योँ न करु पृथक
मिथिला राज्य की मांग ?"

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बुधवार, 4 दिसंबर 2013

कथा....भैरवी

कथा....भैरवी

विवाहक पाँचम बरखक बाद अनायास भैरवीसँ चन्द्रेश्वर बाबाक मन्दिरमे भेट भेल छल। नरक निवारण चर्तुदशीक व्रत केने रही। मायक जिदपर आयल रही पूजा करऽ।  मन्दिरमे प्रवेश करिते रही कि हमर ध्यान भैरवीपर गेल। लाल रंगक नूआमे ओ बड़ सुन्नरि लागि रहल छली। मन्दिरसँ बाहर एबाक बाद दुनू गोटे एक दोसरसँ कु शल क्षेम पुछलहुँ। किछु काल धरि एमहर-ओमहरक बात करबाक बाद हम भैरवीसँ ओकर पतिक सन्दर्भमे पुछलहुँ। लज्जा वश ओ बेचारी किछु नञि बजली। किछु क्षण चुप रहबाक बाद ओ हमरासँ प्रश्न केने छली- हमर तँ सभ किछु ओहने अछि जेहन पहिने छल, अपन कहू की सभ भऽ रहल अछि आइ-काल्हि?
हमरा लोकनि गप करिते रही कि गाम वाली भौजी हमरा दुनूकेँ एकान्तमे ठाढ़ भऽ बात करैत देखि लग आबि गेली आ चुटकी लैत कहलनि- की यौ, अहाँ दुनू गोटेकेँ लाजो धाख नञि होइत अछि जे एना रास रचा रहल छी?
हुनकर रास रचेबाक बात छूलक, मुदा ओकरा टारैत कहने रहियनि- लाज कथीक होयत भौजी? जँ हमरा लोकनि किछु अनर्गल करब तखन ने, बात करबापर सेहो रोक छै की?
- नञि-नञि एहन कोनो बात नञि, हम तँ बस एहिना किछु कहि दैलहुँ। कतेक नीक रहैत जँ अहाँ दुनूक विवाह.....।
भौजी ई कहि चुप भऽ गेली। हम देखलहुँ जे भैरवी असहज अनुभव कऽ रहल अछि। ते ँ बात बदलबा लेल हम आन गप आरम्भ कऽ देलहुँ। 
- भौजी आब एहि ठामक मेलामे पहिने वला बात नञि रहलै, नञि?
‘से तँ ठीके कहि रहल छी अहाँ’- हमरा बातपर ओ दुनू गोटे सहमति व्यक्त केलनि। 
गाम एबाक बाद हम अपना मायसँ भैरवीक सन्दर्भमे बात के लहुँ। हुनकर जवाब सुनि हमरा बड़ बेसी आश्चर्य भेल जे एकैसम शताब्दीक कोनो युवक अपन पत्नीक संग एना कोना कऽ सकैत अछि। 
भौरवी सन सुन्नरि गाम भरिमे क्यौ नञि छल। गामक सभ युवक ओकरा आँगा-पाछाँ मड़राइत रहै छल, मुदा ओ ककरो भाव नञि दै छली। एक टोल हेबाक कारणे ँ कखनो काल ओकरासँ भेट भऽ जाइ छल। एहि क्रममे कहियो काल गप-शप सेहो भऽ जाइ छल। तरे तर हम ओकरासँ प्रेम करऽ लागल रही, मुदा समाजक डर, घरक लोक-वेदक प्रतिष्ठाक कारणे ँ कहियो ई बात अपन परिवार आ भैरवीसँ नञि कहि सकलहुँ। नञि जानि भैरवी हमरासँ प्रेम करै छली वा नञि। ओना एक गोट बात तँ सोलह आना सत्त छल। आन युवक केर तुलनामे ओ हमरासँ बेसी गप करै छली। एहि कारणे ँ गाम वाली भौजी हमरा भैरवीक नाम लऽ कहियो काल किचकिचा दैत छली। एक दिन नञि जानि गाम वाली भौजीकेँ की फुरेलनि, ओ अपना आङन बजा हमरासँ कहलनि- ‘बौआ एगो बात पूछू? सत्त सत्त कहब ने?’ 
- की भेल भौजी? पहिने ई तँ कहू जे बात की अछि?
- नञि पहिने अहाँ हमर सप्पत खाउ, जे अहाँ हमरासँ लाथ नञि करब।
कनी काल सोचबाक बाद हम भौजीक माथपर हाथ दऽ सपत्त लेलहुँ जे हम हुनकासँ किछु नञि नुकायब। आ पुछलिनि- ‘आब तँ कहू, हम सपत्त सेहो खा लेलहुँ अछि।’
-की अहाँ भैरवीसँ मने मन प्रेम करै छी?
भौजीसँ एहि तरहक प्रश्न पूछल जेबाक हमरा कनिको आभास नञि छल। हम किछु जवाब नञि दऽ सकलहुँ आ चुपचाप ओहि ठाम बैसल रहलहुँ। हमरा चुप देखि गाम वाली भौजी बजली- ‘देखू अहाँ हमरा माथपर हाथ दऽ सपत्त खेलहँु अछि। जँ आब अहाँ फूसि गप बजलहुँ तँ हमर मरल मुँह देखब। 
- नञि भौजी एहन बात जुनि बाजू।
- तखन सत्त सत्त कहू। अहाँ भैरवीसँ प्रेम करै छी वा नञि?
- भौजी भैरवीसँ हम एतेक प्रेम करै छी जे ओकरा बिनु रहब हमरा लेल सम्भव नञि अछि। जाहि दिन ओकरासँ गप नञि होइछ तहिया भोजन करब धरि नञि सोहाइत अछि। 
- तखन ई बात अहाँ भैरवीसँकिए नञि कहै छी?
- डेराइ छी भौजी, जँ ओ हमरा प्रेमकेँ स्वीकार नञि केलक तखन हम कोना जीयब? एखन कमसँ कम एहि विश्वासक संग जीबि तँ रहल छी जे की पता ओहो हमरासँ प्रेम करैत होय। 
गाम वाली भौजी आ हम एहि सन्दर्भमे गप करिते रही आ कि भौजीक घरसँ भैरवी बाहर एली। हम हड़बड़ा गेलहुँ। अकबका कऽ भौजी दिस तकलहुँ। ओ मन्द-मन्द मुस्किया रहल छली। बुझबामे बेसी भाङठ नञि भेल जे गाम वाली भौजी आइ हमरासँ भैरवीक सन्दर्भमे एना खोधि-खोधि कऽ किए पूछि रहल छली।  
हम चट ओहि ठामसँ उठि आङनसँ बहराय लगलहुँ। भैरवी पाछाँसँ हमर हाथ पकड़ि लेलनि। हम थकमका गेलहुँ। ओ कहलनि- ‘अहाँ हमरासँ एतेक प्रेम करै छी जे हमरा बिनु अहाँ जी नञि सकै छी। तखन आइ धरि ई बात हमरासँ किए नञि कहलहुँ?’
- डर होइ छल।
- ककरासँ, की एहि समाजसँ?
- नञि अहाँसँ।
- कथीक डर?
- अहाँ हमर प्रस्ताव स्वीकार करब वा नञि एहि बातसँ डेरायल छलहुँ। 
- जँ यैह प्रस्ताव हम अहाँक सोझाँमे राखी तँ अहाँ की करब?
- हम सहर्ष स्वीकार कऽ लेब। 
ई कहि हम भैरवीकेँ अपना हृदयमे साटि लेलहुँ। भैरवीक आँखिसँ दहो-बहो नोरक धार बहराय लागल। नोर पोछि हम हुनका कनबासँ चुप करेलहुँ। गाम वाली भौजी सेहो भैरवीके ँ चुप करेने छली।
ओहि दिनक बादसँ हम आ भैरवी कॉलेज जेबाक क्रममे वा कलम गाछीमे नुका कऽ एक दोसरसँ गप शप करऽ लगलहुँ। कहियो काल गाम वाली भौजीक आङन सेहो हमरा लोकनिक मिलन स्थल बनऽ लागल। ओना एहि प्रेम मिलनक क्रममे हमरा लोकनि मर्यादाक उल्लंघनक कोनो प्रयास नञि केलहुँ। सम्भवत: ईहो एक गोट कारण छल जे गाम वाली भौजी हमरा लोकनिक मदति कऽ रहल छली। 
इण्टरक परीक्षा पास करबाक बाद हम आइआइटी करबा लेल कोलकाता आबि गेलहुँ। भैरवी जेके कॉलेज बिरौलमे कला विषय लऽ आगाँ पढ़ऽ लगली। मोबाइल-फोनक युग नञि हेबाक कारणे ँ कोलकाता एबाक बाद हमरा आ भैरवीक बीच सम्पर्क केर कोनो माध्यम नञि रहल। ओना कहियो काल गामवाली भौजीक नाम चिट्ठी लिखि भैरवीक कुशल क्षेम जानि लै छलहुँ। भौजीक माध्यमे भैरवी सेहो मास दू मासक बाद चिट्ठी पठबै छली।
दोसर सेमिस्टरक परीक्षासँ किछु दिन पहिने गामवाली भौजीक चिट्ठी आयल छल। एहिमे ओ हमरा चेतौनी दैत कहने छली जे भैरवीक सन्दर्भमे अपना मायसँ हम शीघ्र गप करी। कारण भैरवी लेल ओकर माता-पिता वर ताकि रहल छथि। सम्भव अछि जे अन्तिम लगन धरि विवाहो भऽ जाय। चिट्ठी पढ़बाक बाद हम नेयारि नेने छलहँु जे एहि बेर छुट्टीमे गाम जा माय-बाबूजीसँ भैरवीक सन्दर्भमे अवश्य बात करब। हमरा पूर्ण विश्वास छल जे हमर बात माय अवश्य मानती। 
गाम एबाक बाद सभसँ पहिने हम मायसँ एहि सन्दर्भमे बात के लहँु। हुनका ई जानि बड़ आश्चर्य भेलनि जे हम भैरवीसँ प्रेम करै छी आ विवाह सेहो करऽ चाहै छी। पहिने तँ माय हमर बात मानबा लेल तैयारे नञि भेली, मुदा अन्तमे हमर ई धमकी काज कऽ गेल जे भैरवीसँ विवाह नञि भेल तँ हम आजीवन कुमारे रहब। ओ बाबूसँ बात करबा लेल मानि गेली। कने नाकर नुकुरक बाद बाबू सेहो एहि प्रस्तावपर अपन स्वीकृतिक मोहर लगा देलनि।
ई खुशखबरी सुनेबा लेल जखन हम गामवाली भौजीक आङन जा हुनकासँ कहलहुँ तँ हुनका कोनो तरहक प्रसन्नता नञि भेलनि। हुनक ई व्यव्यवाहर देखि हमरा बड़ आश्चर्य भेल। जखन हमरासँ नञि रहल गेल तँ हम भौजीसँ पूछलहुँ-
भौजी की बात अछि? की अहाँ केँ ई बात सुनि नीक नञि लागल?
- नञि से बात नञि अछि, मुदा .......।
- मुदा की भौजी, किछु भेल अछि की, कहू ने।
- आब की कही, किछु कहबा लेल आ सुनबा लेल नञि बचल अछि। 
- सोझ-सोझ कहू भौजी की बात अछि? बातकेँ एते जिलेबी जकाँ किए घुमा रहल छी?
- आब भैरवी अहाँक नञि रहली। 
- हमर नञि रहली, माने।
- माने ई जे ओकर मामा आ नाना दू दिन पहिने ओकर विवाह चोरा कऽ करा देलथिन। बेचारी अहाँक बाट तकैत-तकैत अन्तमे हारि मानि गेली। 
भौजी ओहि ठामसँ एबाक बाद हम बिना किनको किछु कहने कोलकाता घुरि गेलहुँ। एकरा बाद जेना गामसँ हमर मन उचटि गेल। गाम आयब-जायब बन्ने जकाँ भऽ गेल। एक-दू बेर एबो केलहुँ तँ टिकलहुँ नञि। केम्हारो जाइ नञि। जेम्हरे जाइ ओमहर भैरवीक छवि नजरि आबय। एहि बेर एलहुँ तँ घरसँ बहरा सोझे मन्दिर गेल रही। गेल तँ रही मन मारि कऽ मुदा घूमल रही प्रसन्नता आ उदासी नेने। प्रसन्नता छल भैरवीसँ भेट हेबाक। मने मन हुनक उज्ज्वल आ सुखद भविष्यक कामना बाबासँ केने रही। संगहिँ उदासी छल एहि बातक जे परिस्थिति अनुकूल होइतो भैरवी हमरासँ बहुत दूर भऽ गेल छली। 
आ जखन मायसँ ई जानकारी भेल जे भैरवी गाममे रहैत अछि, सासुर नञि जाइत अछि तँ अकचका उठल रही। मायसँ बेसी पूछब उचित नञि लागल आ हम पूरे पाँच बरखक बाद गामवाली भौजीक आङन पहुँचि गेल रही। आङनमे सभ किछु ओहिना छल, मुदा आब ओ भैरवीक संग भेट केर स्थल नञि रहल से उदास लागल। भौजीक कुशल-क्षेम पुछलियनि। भैरवीक बात चलिते ओ भौजी उदास भऽ गेली। ओ जे किछु कहलनि से सुनि हमरा अपनापर बड़ तामस चढ़ल। संगे पछताओ रहल छलहुँ जे विवाहक बाद भैरवीसँ बिनु भेट केने हम कोलकाता किए चलि गेल रही। 
भौजी कहलनि जे विवाहक पन्द्रहमे दिन भैरवी गाम आयल छल। ओकरा संग पति गाम नञि आयल छलै। पहिल बेर जे ओकर पति गाम गेलै से आइ धरि घूरि कऽ नञि एलै। भैरवी गाम एबाक बाद हुनकासँ कहने छल जे ओकरा  पतिक संग बियाहे टा भेलै। ओकर पति तँ विवाहक रातियेमे कहि देने छलै भैरवीक मामा आ नानासँ जे जहिना अहाँ लोकनि हमर जीवन बर्बाद कऽ रहल छी, तहिना हम अहाँक नतनीक जीवन नारकीय कऽ देब। ओना ताहि समय भैरवीक नाना आ मामा एहि बातपर कोनो ध्यान नञि देलनि। एकर परिणाम ई भेल जे भैरवीक पति ओकरा कहियो नञि टोकलक। टोकत की, घुरि कऽ एबो ने कयल। 
विवाहक जखन तीन बरख बीति गेल आ भैरवीक पति घूरि कऽ नञि एलै तखन गामक लोक भैरवीक सासुर जा ओकर पति, सासु आ सुसरपर पञ्चैती बैसेलनि। पञ्चैतीमे भरैवीक पति साफ कहलक जे ओकर विवाह जबरदस्ती कराओल गेल ते ँ ओ एहि विवाहकेँ नञि मानैत अछि। भैरवी लेल ओकरा हृदयमे कोनो स्थान नञि अछि। 
गामक लोकवेद द्वारा बेसी दबाव देल जेबाक बाद भैरवीक पति ओकर द्विरागमन करेबा लेल तैयारत भेल, मुदा एक गोट शर्तपर। ओकर कहब छल जे ओ भैरवीकेँ अपना घरमे राखत, मुदा खर्चा देबाक अतिरिक्त ओ कोनो तरहक सम्बन्ध नञि राखत। 
भैरवीकेँ जखन एहि शर्तक सम्बन्धमे ज्ञात भेल तँ ओ सासुर जेबासँ साफ नठि गेल। माता-पिताकेँ कल जोड़ि ओ दू टूक कहलक जे एक बेर तँ अहाँ लोकनि हमर जीवन नष्ट कऽ चुकल छी। दोसर बेसी कमसँ कम एहन नञि हेबाक चाही। एहन पतिक संग रहि कोन लाभ जे अपना घरमे स्थान तँ देत, मुदा हृदयक केबाड़ बन्न राखत। ओहि दिनक बादसँ भैरवी गाममे रहि गेली। नीक शिक्षा प्राप्त हेबाक कारणे ँ ओ गामक धिया पुताकेँ ट्यूशन पढ़ाबऽ लगली आ एहि माध्यमे अपन जीवन बितबऽ लगली। 
गामवाली भौजीक मुँहे भैरवीक सभ स्थिति जानि हमरा मनमे आशाक किरण जागि गेल। भौजीक माध्यमे हम भैरवी लग समाद पठेलहुँ जे हम हुनकासँ एसगरमे भेट करऽ चाहै छी। 
तय भेल जे हमरा लोकनि चन्दे्रश्वर बाबक मन्दिरपर भेट होयब। ककरो कोनो तरहक सन्दहे नञि हो एहि लेल गामवाली भौजी सेहो भैरवीक संग आयल छली। बाबाकेँ साक्षी मानि हम भैरवीकेँ अपनासँ विवाह करबाक प्रस्ताव देलहुँ। हमर प्रस्ताव सुनि आवेशमे आबि ओ तमसाइत बजली- अहाँकेँ बूझल अछि ने जे हम विवाहिता छी, तखन एहि तरहक प्रस्तावक कोन प्रयोजन?
-भैरवी अहाँकेँ चन्द्रेश्वर बाबाक सपत्त अछि सत्त-सत्त बाजू..... सीथमे सिनुर लगेबाक अतिरिक्त अहाँक पति अहाँसँ कोन सम्बन्ध रखलक अछि? हमरा लेल एखनो अहाँ वैह भैरवी छी जे पहिने छलहुँ। जँ अहाँ अपन ओहि पतिक प्रतीक्षा कऽ सकै छी जे आइ धरि अहाँकेँ अपन नञि मानलनि, तखन हम अहाँ लेल अवश्य प्रतीक्षा करब किए तँ अहाँ सामाजिक संस्कारक हिसाबे भने हमर नञि छी, मुदा हम तँ अपन मानिते छी, भैरवी! हम जीवनक अन्तिम क्षण धरि अहाँक प्रतीक्षा करब......।
ई कहि हम चट ओहि ठामसँ विदा भऽ गेलहुँ। 
घर आबि एहि सन्दर्भमे हम ककरोसँ किछु नञि क हलहुँ। छुट्टी समाप्त हेबामे एखन दू दिन बाँचल छल। माय हमरा सोझाँ विवाह करबाक प्रस्ताव रखलनि। हम हुनका दू टूक कहि देलहुँ जे हम विवाह नञि करब। माय केर कहब छलनि जे हम कमसँ कम कन्याक फोटो तँ देख ली। एकरा बाद जे हम निर्णय करब, माय तकरा स्वीकार करती। हुनकर अवज्ञा नञि हो एहि लेल हम कुमोनसँ फोटो देखबा लेल मानि गेलहुँ। हुनका हाथसँ फोटो लऽ अनमानायल मनसँ हम फोट देखबाक प्रयास केलहुँ, मुदा ई की.....फोटो देखि हमर मन सातम आसामानपर उड़ऽ लागल। फोटो वाली युवतीतँ सत्ते बड़ बेसी सुन्नर छली। हम मायसँ पुछलहुँ- की ई हमरासँ विवाह करबा लेल तैयारी हेती? 
हुनका किछु बजबासँ पहिने परदाक अढ़मे नुकायल भैरवी बाहरि आबि बजली- जखन अहाँ हमरा लेल जीवनक अन्तिम क्षण धरि प्रतीक्षा कऽ सकै छी, तखन की हम अहाँ लेल सीथमे नव सिनुर नञि सजा सकै छी?
ताबत बाबूक संग टोलक कतेको गणमान्य आङन आबि ठाढ़ भऽ गेल छला। हम भैरवी आ माय-बाबूक संग समाजक उपस्थित गणमान्यक मुँह ताकि रहल छलहुँ आ मने मन सोचि रहल छलहुँ जे समाज एक डेग आगाँ बढ़ेलक आ एकैसम शताब्दीमे आबि ठाढ़ भऽ गेल अछि। 
गामवाली भौजी कखन एली से नञि बुझलियै। बुझलियै तखन जखन ओ चौल केलनि- ए भैरवी दाइ, अहूँ सभ किछु घोरि कऽ पीबि गेलहुँ। सिनूर नञि देलनि तेँ की आब तँ घरेवला ने छथि। लोक सभ ठाढ़ छथि आ ई वरकेँ देखि तिरिपति भऽ रहल छथि। 
गामक सम्माननीय वयोवृद्ध भोलन बाबा कहलनि- एहन डेग अनर्गल नञि...नीक निर्णय छऽ सभक। ओ लाठी खुटखुटबैत बिदा भऽ गेला। लाठी केर ठक-ठक स्वरसँ लागि रहल छल जेना पुरना शताब्दी नवका शताब्दीक सकारात्मक निर्णयपर मोहर मारि रहल हो।  

नोट- 81म कथा गोष्ठी सगर राति दीप जरयमे हमरा द्वारा पढ़ल गेल कथा

-रोशन कुमार मैथिल
मिथिला आवाज 
दरभंगा (मिथिला)
08292560971

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सोमवार, 2 दिसंबर 2013

जन्तर-मन्तरपर ५ दिसम्बर अयबाक अपील सन्दर्भमे:   




मिथिला लेल प्राइवेट मेम्बरकेर बिल - संसदमे!

जाहि लेल ५ दिसम्बर बेसी संख्यामे जुटबाक अनुरोध कैल जा रहल अछि तेकर भूमिका स्पष्ट करब जरुरी बुझाइछ। 

सरकार द्वारा कानून बनेबाक लेल जे विधेयक बहस करबा लेल संसदमे राखल जाइछ तेकरा गवर्नमेन्ट बिल कहल जाइछ (वेस्टमिन्स्टर सिस्टम - जेकरा भारतीय संविधानसेहो अनुसरण करैछ) आ जे कैबिनेटसँ इतर सरकारक सहयोगी वा विरोधी पक्षक सदस्य द्वारा राखल जाइछ तेकरा प्राइवेट मेम्बर बिल मानल जाइछ। १९४७ केर तुरन्त बाद जखन मिथिला राज्यक माँग भारतीय संसदमे पास नहि भेल आ फेर राज्य गठन आयोग द्वारा सेहो १९५६ मे आरो-आरो नव राज्य गठन होयबा समय सेहो एकरा नकारल गेल तेकर बादसँ आधिकारिक बहस भारतीय संसदमे एहिपर नहि भेल अछि। ताहि लेल दरभंगासँ भाजपा संसद कीर्ति झा आजाद एहि विषयपर गंभीरतापूर्ण संज्ञान लैत बौद्धिकतासँ भरल ऐतिहासिकता आ उपलब्ध दस्तावेज सबकेँ समेटने अपना दिशिसँ मिथिलाक अस्मिताक रक्षा लेल डेग उठौलनि आ एहि क्रममे हुनका द्वारा प्रस्तुत बिल "बिहार झारखंड पुनर्संयोजन विधेयक २०१३" (The Bihar Jharkhand Reorganization Bill, 2013) संसदमे बहस लेल प्रस्तावित कैल गेल अछि। विधान अनुरूप कोनो बिलपर बहस लेल राष्ट्रपतिक मंजूरी आवश्यक रहनाय आ फेर समुचित तारीख दैत एहिपर बहस केनाय आ यदि सदन एकरा मंजूर करैत अछि तँ संविधानमे प्रविष्टि केनाय - यैह होइछ प्राइवेट मेम्बर बिल।

जेना ई बुझल अछि जे मिथिला राज्यक माँग भारतक स्वतंत्रता व ताहू सँ पूर्वहिसँ कैल जा रहल अछि - कारण बस एकटा जे "मिथिला अपना-आपमे परिपूर्ण इतिहास, भूगोल, संस्कृति, भाषा, साहित्य, संसाधन, समाजिकता आ सब आधारपर राज्य बनबाक लेल औचित्यपूर्ण अछि" आ भारतीय गणतंत्रमे राज्य बनबाक जे आधार छैक तेकरा पूरा करैत अछि.... दुर्भाग्यवश अंग्रेजक समयमे प्रान्त गठन करबा समय मिथिला लेल पूरा अध्ययनक बावजूद बस किछेक खयाली कल्पनासँ एकरा मिश्रितरूपमे 'बिहार' राज्य संग राखि देल गेल छल, मुदा बिहारसँ पहिले उडीसाक मुक्ति (१९३६) आ फेर झारखंडक मुक्ति (२०००) मे कैल गेल यद्यपि मिथिलाक माँग ताहू सबसँ पुरान रहितो एहिठामक लोकसंस्कृतिक संपन्नता आ लोकमानसक सहिष्णुताकेँ कमजोरी मानि बस सब दिन संग रहबाक लेल अनुशंसा कैल गेल... परञ्च जे विकास करबाक चाही से नहि कैल गेल, जे पोषण करबाक चाही सेहो नहि कैल गेल... उल्टा जेहो पूर्वाधार एहिठाम विकसित छल तेकरो धीरे-धीरे मटियामेट कय देल गेल। बिहारक शासनमे सब दिन मिथिला क्षेत्र उपेक्षित रहि गेल। एक तऽ प्रकृतिक प्रकोप जे बाढिक संग-संग सूखाक दंश, ऊपरसँ कोनो वैज्ञानिक वा विकसित प्रबंधन नहि कय बस दमन आ उपेक्षाक चाप थोपि मिथिलाक लोकमानसकेँ आन-आन राज्य जाय सस्ता मजदूरी आ चाकरीसँ जीवन-यापन करबाक लेल बाध्य कैल गेल। परिणामस्वरूप एहि ठामक विकसित आ सुसभ्य परंपरा सब सेहो ध्वस्त भेल, लोकसंस्कृतिक मृत्यु होमय लागल आ आब मिथिला मात्र रामायणक पन्नामे नहि रहि जाय से डर बौद्धिक स्तरपर स्पष्ट होमय लागल। तखन तऽ जे विधायक (जनप्रतिनिधि) एहिठामसँ चुनाइत छथि आ केन्द्र व राज्यमे जाइत छथि हुनकहि पर भार रहल जे मिथिलाकेँ कोना संरक्षित राखि सकता - लेकिन जाहि तरहक नीतिसँ मिथिलाकेँ विकास लेल सोचल गेल ताहिसँ उपेक्षा आ पिछडापण नित्यदिन बढिते गेल। हालत बेकाबू अछि, लोकपलायन चरमपर अछि, शिक्षा, उद्योग, कृषि, प्रशासन सब किछु चौपट देखाइत अछि। बिना राज्य बनने कोनो तरहक सुधारक गुंजाइश न्यून बुझाइछ।

हलाँकि भारतमे लगभग ३०० सँ ऊपर प्राइवेट मेम्बर बिल आइ धरि आयल, ताहिमे सँ बिना बहस केने कतेक रास गट्टरमे फेका गेल तऽ लगभग १४ टा विधानक रूपमे सेहो स्वीकृति पौलक। एहि बिलक भविष्य जे किछु होउ से फलदाता बुझैथ, लेकिन एक सशक्त-जागरुक चेतनशील मैथिलक ई कर्तब्य बुझापछ जे अपन राजनैतिक अधिकार लेल एना हाथ-पर-हाथ धेने नहि बैसैथ आ अपन अधिकार लेल आवाज धरि जरुर उठबैथ। यदि भारतीय गणतंत्रमे मिथिलाक मृत्यु तय छैक तऽ भारतक भविष्यनिर्माता सब जानैथ, लेकिन एक "मैथिल" लेल अपन भागक कर्तब्य निर्वाह करबाक जरुरत देखैत अपील कैल जा रहल अछि जे जरुर बेसी सऽ बेसी संख्यामे जन्तर-मन्तरपर ओहि बिलकेर समर्थन लेल राजनैतिक समर्थन जुटेबाक उद्देश्यसँ आ मिथिला राज्य संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा राखल गेल धरनामे सद्भाव-सौहार्द्रसंग सहभागिता लेल सेहो हम सब पहुँची। अपन अधिकार लेल संघर्ष करहे टा पडैत छैक, बैसल कतहु सँ कोनो सम्मान वा स्वाभिमान प्राप्त नहि भऽ सकैत छैक, ई आत्मसात करैत हम सब एकजुटता प्रदर्शन करी।

याद रहय - ५ दिसम्बर, २०१३, स्थान जन्तर-मन्तर, समय दिनक १० बजेसँ।

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शनिवार, 30 नवंबर 2013

चलो जन्तर-मन्तर पर! ५ दिसम्बर, २०१३



चलो जन्तर-मन्तर पर! 

५ दिसम्बर, २०१३   

      (जन्तर-मन्तरपर विशाल धरना प्रदर्शन - मिथिला राज्यके समर्थनमें - संसदमें रखे गये बिलपर सकारात्मक बहसके लिये राजनीतिक शक्तियोंसे सामूहिक अनुरोध के लिये।)

वैसे तो मिथिला राज्यका माँग स्वतंत्रता पूर्वसे ही किया जा रहा है, स्वतंत्रता उपरान्त भी यह माँग देशकी प्रथम संविधान सभाके सत्रोंसे लेकर राज्य पुनर्गठन आयोग तक मंथनका विषय बननेके बावजूद राजनीतिपूर्वक किसी न किसी बहानेमे नकारा गया और मैथिली सहित मिथिलाके भविष्यको पहचानविहीनताकी रोगसे आक्रान्त किया गया जो निसंदेह किसी गणतंत्रात्मक प्रजातांत्रीक मुल्कके सर्वथा-हितमे नहीं हो सकता है। फलस्वरूप अब मिथिलाका वो स्वर्णिम समय दुबारा भारतको शास्त्र-महाशास्त्रके साथ आध्यात्मिक दर्शनकी पराकाष्ठापर पहुँचा सके, हाँ आज इतना तो जरुर है कि मिथिलाके मिट्टी और पानीसे सींचित व्यक्तित्व न केवल राष्ट्रमे बल्कि समूचे ग्लोबपर अपनी उपस्थिति ऊपरसे नीचेतक हर पद व स्थानपर महिमामंडित करते हैं, लेकिन मूलसे बिपरीत आज सामुदायिक कल्याण निमित्त नहीं होता - बस व्यक्तिगत विकास केवल लक्ष्य बनकर पहचानविहीनताके रोगसे मिथिला-संस्कृति विलोपान्मुख बनते जा रहा है। ऐसेमें यदि अब स्वतंत्रताका लगभग ७ दशक बीतने लगनेपर भी मिथिलाको स्वराज्यसे संवैधानिक सम्मान नहीं दिया गया तो मिथिलाका मरणके साथ भारतकी एक विलक्षण संस्कृतिका खात्मा तय है।

           भारतमे विभिन्न नये राज्य बनानेकी परिकल्पना आज भी निरंतर चर्चामें रहता ही है। संसदसे सडकतक इस विषयपर नित्य विरोधसभा और संघर्ष कर रही है यहाँकी जनता, खास करके जिनका पहचान समाप्तिकी दिशामे बढ रहा है और उपनिवेशी पहचानकी बोझसे अधिकारसंपन्नताकी जगह विपन्नता प्रवेश पा रहा है वहाँपर नये राज्योंकी सृजना अनिवार्य प्रतीत होता है। बिहार अन्तर्गत मिथिला हर तरहसे पिछड गया, ना बाढसे मुक्ति मिल सका, ना पूर्वाधारमें किसी तरहका विकास, ना उद्योग, ना शिक्षा, ना कृषिमें क्रान्ति या आत्मनिर्भरता, ना भूसंरक्षण या विकास, ना जल-प्रबंधन और ना ही किसी तरहका लोक-संस्कृतिकी संवर्धन वा प्रवर्धन हुआ। बस नामके लिये सिर्फ मिथिलादेश अब मिथिलाँचल जैसा संकीर्ण भौगोलिक सांकेतिक नामसे बचा हुआ है। राजनीति और राजनेताके लिये मिथिलाका पिछडापण मुद्दा तो बना हुआ है लेकिन वो सारा केवल कमीशनखोरी, दलाली, ठीकेदारी, लूट-खसोट और अपनी राजनैतिक लक्ष्यतक पहुँचने भर के लिये। मिथिला भारतीय गणतंत्रमें मानो दूधकट्टू संतान जैसा एक विचित्र पहचान 'बिहारी' पकडकर मैथिली जैसे सुमधुर भाषासे नितान्त दूर 'बिहारी-हिन्दी'की भँवरमें फँसकर रह गया है।


                जिस बलसे मिथिला कभी मिथिलादेश कहा जाता रहा, जिस तपसे जहाँकी धरासे साक्षात् जगज्जननी स्वयं सिया धियारूपमे अवतार लीं, जहाँ राजनीति, न्याय, सांख्य, तंत्र, मिमांसा, रत्नाकर आदि सदा हवामें ही घुला रहा... उस मिथिलाको पुनर्जीवन प्रदान करने के लिये स्वराज्य देना भारतीय गणतंत्रकी मानवृद्धि जैसा होगा ‍- अत: मिथिला राज्यकी माँगवाली विधेयक काफी अरसेके बाद फिरसे भारतीय संसदमें बहसके लिये आ रही है। किसी एक नेता या किसी खास दलका प्रयास भले इसके लिये ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो, लेकिन जरुरत तो सभी पक्षों और राष्ट्रीय सहमतिका है जो इस माँगकी गंभीरताको समझते हुए वगैर किसी तरहका विद्वेषी और विभेदकारी आपसी फूट-फूटानेवाली राजनीति किये न्यायपूर्ण ढंगसे मिथिला राज्यको संविधान द्वारा मान्यता प्रदान करे। इसमें कहीं दो मत नहीं है कि नेतृत्वकी भूमिकामें जितने भी संस्था, व्यक्ति, समूह, आदि भले हैं, पर मुद्दा तो एकमात्र 'मिथिला राज्य' ही है और इसके लिये एकजुटता प्रदर्शनके समयमें हम सब मात्र मिथिला राज्यका समर्थक भर हैं और मिथिलाकी गूम हो रही अस्मिताकी संरक्षणके लिये, मिथिलाकी चौतरफा विकासके लिये, मिथिलाकी खत्म हो रही लोक-संस्कृति और लोक-पलायनको नियंत्रित रखने के लिये अपनी उपस्थिति जरुर दिल्लीके जन्तर-मन्तरपर और भी अधिक लोगोंको समेटते हुए जरुर दें। तारीख ५ दिसम्बर, समय १० बजेसे, स्थान जन्तर-मन्तर, संसद मार्ग, नयी दिल्ली!


मिथिलावासी एक हो! एक हो!! एक हो!!

एकमात्र संकल्प ध्यानमे!
मिथिला राज्य हो संविधानमे!!

भीख नहि अधिकार चाही!
हमरा मिथिला राज्य चाही!!

जय मिथिला! जय जय मिथिला!!

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बुधवार, 27 नवंबर 2013

२६म् अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन मे उठल आवाज देवय पडत मिथिला राज्य

२६म् अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन मे उठल आवाज
देवय पडत मिथिला राज्य

               अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली परिषद्क २६म् अन्तर्राष्ट्रिय सम्मेलन में अलग मिथिला राज्य कऽ माँग जोरदार रुप में उठल । सम्मेलन में मैथिली भाषा के मजबुत करबा कऽ लेल सम्पूर्ण मैथिली भाषी के एक जुट भऽ आगु बढेबा के लेल आह्वान कएल गेल । अई सम्मेलन में भारत तथा नेपाल कऽ प्रतिनिधि सब के उपस्थिति छल । मुख्य अतिथी कृष्णानन्द झा कहलनि भाषा के आधार पर अलग राज्य भेटनाई मुस्किल अछि, अलग राज्य कऽ बास्ते सम्पूर्ण मापदंड के पुरा करय परत, जेकर आवश्यकता अछि । मिथिला के संस्कृति के जा धरि अन्य प्रान्त कऽ संस्कृति के संग समन्वय स्थापित नहि होइत, ता धरि, अलग राज्य बनेनाई संभव नहि अछि । जखन अपन भाषा के अन्य राज्य कऽ संग जोडल जायत तखने देश के ४० प्रतिशत आबादी स्वतः जुडि जायत ।
अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली परिषद अध्यक्ष डा. कमलकान्त झा कहलनि जे मिथिला राज्य के माग उठल तऽ सरकार मैथिली भाषा के मान्यता देलनि । मिथिला राज्य कऽ मान्यता के वास्ते देशक सब प्रान्त कऽ लोक के आगु आबय परत । संगे ओ झारखण्ड सरकार सँ मैथिली भाषा के राज्य के द्वितीय राजभाषा के रुप में शामिल करबा कऽ माग जेहो केलनि । झारखण्ड मे मैथिली के द्वितीय राजभाषा में शामिल करबा कऽ लेल काँग्रेस के पूर्व मन्त्री कृष्णानन्द झा सँ सहयोग सेहो मागलनि । कृष्णानन्द झा अपन पुरा सहयोग देबा कऽ प्रतिबद्धता सेहो जाहिर केलनि । सम्मेलन के उद्घाटन पूर्व मंत्री कृष्णानन्द झा, अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली परिषद कऽ अध्यष डा. कमलकान्त झा, नेपाल कऽ परिषद क अध्यक्ष करुणा झा, संस्थापक अध्यष डा. घनाकर ठाकुर, भूवनेश्वर प्रसाद गुरमैता, बैद्यनाथ मिथिला संस्कृति मंच के अध्यक्ष ओम प्रकाश मिश्र संयुक्त रुप में दीप प्रज्वलित कऽ उद्घाटन केलनि ।

नेपालक मैथिली परिषद कऽ अध्यक्ष करुणा झा कहलनि मैथिली भाषा तथा मिथिला राज्य कऽ मान्यता के लेल आन्दोलन के दौरान पाँच लोग शहीद हो गये जिनमें एक महिला भी । लेकिन इसके बाद भी नेपाल में जोर शोर से मिथिला राज्य के माग उठी रहल अछि । ओ कहलनि – अपना भाषा आ संस्कृति के पंति सब कियो के गम्भीर होब परत । मिथिला राज्य क लेल समाज के सब वर्ग के लोग के साथ लऽ कऽ चलय परत । संगे ओ अन्तर्राष्ट्रिय मैथिल महिला परिषद के गठन करबा कऽ वास्ते जोर देलनि जाई सँ अई अभियान में महिला सब के जोडय कऽ आगु बढला सँ ई अभियान बेसी प्रभावकारी होयत ।

कार्यक्रम के आयोजना बैद्यनाथ मिथिला संस्कृति मंचद्वारा कएल गेल छल । आई दु दिवसीय समारोहमें दोसर दिन पहिल सत्र में जीवकान्त झा आ मायानन्द मिश्र के श्रद्धाञ्जली सभा तथा दोसर सत्र में रंगारंग सांस्कृतिक सन्ध्या में देश विदेशक कलाकार सब द्वारा कएल गेल । अई मौका पर भूतपूर्व डिआईजी के.डी. सिंह, प्रदेश महासचिव रविन्द्र चौधरी, जमशेदपुर के श्यामल सुमन तथा सैकडो मिथिलाबासी के उपस्थिति रहल । धन्यवाद ज्ञापन बैद्यनाथ मिथिला संस्कृति मंच के अध्यक्ष ई. ओमप्रकाश मिश्र जी केलनि । अस्तु ।।


 – करुणा झा
 नेपाल 

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गुरुवार, 21 नवंबर 2013

आब नै चुप रहव - चल्लू डेल्ही

मिथिला राज्य निर्माण सेना केर द्वारा २४ नवम्बर क दिन के २ बजे कॉफ़ी हाउस दिल्ली स हरीश रावत के घर तक जत्था मार्च करत और हरीश रावत के घर के सामने हरीश रावत के पुतला दहन करत तथा अपन विरोध दर्ज करत | सब मैथिल भाई बहिन और मिथिला संस्था स आग्रह जे बेसी स बेसी संख्या में आबि क अपन घोर विरोध दर्ज करी | दिल्ली में रहै वाला सब मैथिल स आग्रह जल्दी स संपर्क करू और अई आंदोलन में अपन सहयोग करू | राजेश झा-08607817171 संजय कुमार- 09910644894 कमलेश मिश्र - 9560437000 , मदन ठाकुर -9312460150  , 
ई एहन  शब्द बजल कोनो -? 
   


























चमचागिरी आ चाटुकारिता के एकटा सीमा होइत अछि , हद भा गेल सीता मैया के सेहो ई विदेशी मूल के कहि रहल अछि , सर्वविदित अछि अदौकाल सं जकर प्रमाणिक इतिहास अछि जे माँ सीताक जन्म सीतामढ़ी जिला अंतर्गत पुनौरा धाम मे भेल अछि , तिनका विदेशी मूल के कही एकर तुलना सोनिया गाँधी से क रहल छथि ई पाखान्द्शिरोमानी हरीश रावत , रावत जी ज क इतिहास पदु आ अपन वक्तव्य के वापस लिय , सरिपहुं ई हरेक मैथिलक मुहं पर थापर समान थिक जे हमर धरोहर माँ समान सीता मैया के सोनिया सन महिला सं तुलना कायल गेल अछि | एकरा हम व्यक्तिगत रूपेण अपन संस्था मिथिला राज्य निर्माण सेना के तरफ सं घोर निंदा करैत छी , अगर अहाँ सब हमरे जकाँ लागैत अछि त आऊ coffe हाउस रवि दिन २ बजे अपरान्ह आ एही कुकृत्य के लेल हरीश रावत के पुतला दहन कायल जाय आ हिनका ई वक्तव्य के वापस लेबा पर मजबूर करू |

एहन चमचा शिरोमणि के की कायल जाय ,
कालिख पोअति चुगला बनायल जाय ,
आऊ सब मिलि एकर पुतला दहन करी ,
मैथिल होयबाक किछु त स्वाभिमान करी ,
जा तक रहत एहन एहन लोक जेना की रावत ,
मैथिलि अपमानित होइत रहत ....... तावत
आऊ सब मिलि देखाऊ अपन त|गत | 




हरिश रावत तोहर ओकात कि छउ तकर थाह तोरा 24 के पता चलतउ । माता सिताके अपमानित कैला के बाद रावण एहन प्रतापि राजाके नाश भ गेल तु कोन खेत के मूली छे रे रावत...24 november ke din ke 2 bje Coffee house,CP Delhi enay nay bisru.....CP s harish Rawat ke ghar tak march kel jet ekar bad putla Dahan-

हिन्दू धर्म के ठेकेदार और ठीकेदारी लेने वाली संगठने चुप क्यूँ हैं l क्या उन्हें काठ मर गया है, या संज्ञा सुन्यता मे है ?

आखिर राम की राजनीति चमकाने वाले और इलेक्शन के समय ८४ कोशी यात्रा करनेवालों की जड़ता कब टूटेगी ?

माता सीता का यह अपमान, कब तक सहेगा हिंदुस्तान ?
 ऐसे नेता देश को क्या विकास के राह पर ले कर जाएंगे जिनको इतिहास पता ही नहीं है, सीता माता विदेशी कैसे?????
जब सीता माता थी तब इंडिया, भारत, हिंदुस्तान, या नेपाल ही नहीं बना था, उस समय तो मिथिला राज्य हुआ करता था, क्या सही में अज्ञानी नेताओ के संख्या जयादा होगया है इस देश में ?

कांग्रेस के हरीश रावत ने आज मुझे अर्थात बिहार खास कर मिथिला की बेटी को विदेशी कहा है। तिरहुत सरकार लक्ष्‍मेश्‍वर सिंह ने कांग्रेस को पहला दान देकर सही में रावत जैसे लोगों को देशभक्‍त बना दिया।

Gopal Jha हरीश को इतिहास की जानकारी लेनी होगी की जहां माता सीता का जन्म हुआ वह स्थान आज भी भारत में है सत्ता के नशे में झूठ बोलने से सच नहीं हो जाती माता सीता का जन्म सीतामढ़ी में है और मैं सीतामढ़ी वासी होने के नाते इस बयान का घोर निंदा करता हूँ

ई कांग्रेस त मैथिला के खा गेलभाई 1.अंग्रेज मिथिलाक दू भाग मे बटलक ,आजादि के बाद cong. सरकार अङि मुद्दा पर चूप रहल..2.नेपाल स हर साल जे पईन छोरल जोईत अछि जहि स मिथिला मे हर साल भंयकर बाईढ आवैत अछि cong.के देन छि 3.आब राबत कहैत अछि जे सिता माता बिदेसी छलिह..
आब  कहु  कि -२  सुनई लेल  बांकी  अच्छी - ? 
आब नै  चुप रहव - चल्लू डेल्ही 

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बुधवार, 13 नवंबर 2013

HAKAAR....HAKAAR.....HAKAAR....


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मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

आदरनीय, जगदानन्द झा ‘मनू’ भाइ आइ अपने द्वारा कयल गेल भाइ अनमोल झा केर पोथी टेक्नोलिजी केर समक्षा पढ़लौ।

आदरनीय,
जगदानन्द झा ‘मनू’

भाइ आइ अपने द्वारा कयल गेल भाइ अनमोल झा केर पोथी टेक्नोलिजी केर समक्षा पढ़लौ। समीक्षा नीक अछि वा बेजाय एहिपर हम अपनेसँ किछु प्रश्न नञि करऽ चाहब। कारण पोथीक समक्षा क्यौ अपना स्तरसँ करैत अछि। सम्भव अछि जे रचना हमरा नीक लागल होयत से अपनेक नीक नञि लागल होयत। तहिना एहि पोथीक जे कथा अहाँके ँ नीक लागल होयत से हमरा नञि। आब आबी अपन मूल उद्देश्यपर........भाइ समीक्षाक क्रममे अहाँ विहनि कथाक पुरजोर पैरवी करैत लिखलहुँ अछि जे ‘विहनि कथा आब कोनो तरहक परिचय लेल मोहताज नहि अछि। श्री जगदीश प्रसाद मंडलजी अपन विहनि कथा संग्रहपर टैगौर पुरस्कार जीत कए दुनियाँक बड़का-बड़का भाषाकेँ एहि दिस सोचै लेल बिबस कए देलखिन्ह। अंग्रेजी एकरा SEED सीड स्टोरीह्व कहि सम्बोधित केलक। हिंदी अंग्रेजीमे जकर कोनो स्थान नहि ओहेन एकटा नव बिधाक अग्रज मैथिली साहित्य आ ओ बिधा, ह्लविहनि कथाह्व।
विहनि कथा आ लघु कथामे बहुत फराक अछि। विहनि अर्थात बिया। बिया वटवृक्षकेँ सेहो भऽ सकैए आ सागक सेहो। तेनाहिते मोनक बिचारक बिया जे कोनो आकारमे फूटि सकैए, विहनि कथा। विहनि, बिया, सीडमे सँ केहन गाछ पुट्टै कोनो आकारक सीमा नहि। लघु कथा मने एकटा छोट कथा जेकर आरम्भ आ अन्त दुनू छैक’।

भाइ अपनेसँ हम किछु प्रश्नक उत्तर जानबाक इच्छूक छी। जँ अपने उत्तर देब तँ नीक रहत आ हमर अज्ञानता कम होयत। भाइ अंग्रेजीमे बहुत एहन रास शब्द अछि जेकर हुबहु अनुवाद मैथिलमे सम्भव नञि अछि। अपने तर्क देलौ अछि जे अंग्रेजीक सीड्स स्टोरी तर्जपर विहनि कथाकेँ मान्यता देल गेल अछि। के देलक ई मान्यता? कहिया स्थापित भेल ई विहनि कथाक विद्याा? की मात्र किछु गोटे द्वारा लिखल वा अपनाओल गेल विद्याकेँ मान्यता देल जा सकैत अछि। जँ हाँ तँ सम्भव अछि जे काल्हि किछु गोटे कहता जे हम एहि विद्याकेँ विहनि नञि मानि पनका कथा कहब। उल्लेखनीय अछि जे बियासँ पहिल अंश निकलैत अछि ओकरा पनका कहल जाइत अछि।

जँ दू क्षण लेल विहनि कथाकेँ मान्यता देले जाय तँ अहाँक अनुसार जगदीश प्रसाद मण्डलक ‘गामक जीनगी’ विहनि कथा कोना भेल? की 1000-12000 शब्दमे लिखल कथाकेँ विहनि कहल जाइत अछि। जँ एकरा विहनि कहबै तँ 1500-2500 शब्दक बीचमे लिखल कथाकेँ कहल जायत??

भाइ हमरा जनतबे आइ धरि मैथिलीमे लघु आ दीर्घ कथाक मान्यता छल। आइयो अछि। एहिमे कोनो गलत बात नञि जे 2000 शब्द वा एहिसँ किछु बेसी शब्द वला कथाकेँ लघु आ एहिसँ बेसी शब्द वलाकेँ दीर्घ कहल जाइत अछि।

सावधान भाइ मात्र किछु गोटे केर समर्थन पेबा लेल आ अपन नाम कमेबा लेल किछु नञि लिखी कारण हमरा अहाँ सुमनजी, किरणजी, यात्री, मधुप, मण्पिद्म, राजकमल, ललित, प्रभास चौधरी, भीम नाथ झा, आदि लेखकसँ बेसी ज्ञानी वा बूझनूक तँ एखन धरि नञि भेलौ अछि। ईहो बात नञि अछि जे हिनका लोकनिक समयमे ई विद्या नञि रहल होयत।

जँ विहनि कथा पहचान बना लेलक अछि तँ अकादेमी वा अन्य मैथिली साहित्य संस्था एकरा एखन धरि मान्यता कियक नञि देलक??

अन्तमे जँ हमरा बातसँ अपनेक कोनो तरहक कष्ट पहुँचल हो...तँ छोट भाइ जानि माफ करब


अपनेक
रोशन कु मार मैथिल
मिथिला आवाज, दरभंगा मिथिला
08292560971

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सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

एतेक दिन कोना कऽ बितल, कहिया किछु बतलायब,

एतेक दिन कोना कऽ बितल, कहिया किछु बतलायब, 
की सभ दिन एहिन चुपचाप रहि ,जीते-जी मरि जायब,...

सुनलौ अछि यादक फुलवारी, उजड़ि चुकल अछि रमन चमन,
हमरा हृदयक पनघटकेँ कहिया ,स्नेह-सिञ्चित कऽ जायब,.....

अहाँक पत्रकेँ एखनो सदखिन, हम पढ़ै छी एसगरमे,
कहिया आहा पहिने जका, चिट्ठिमे दरश देखायब,....

मानै छी रञ्जिश अछि, दुख अछि, कतऽ नञि अछि, अही कहु?
बस एतबे बातक खातिर की हमरा छोडि चलि जायब,....

सुनलौ अछि जे एहि बेरक सावन आयल आ चुप चुप चलि गेल,
अरमानक पतझड़िमे की अहाँ पत्तासँ झरि जायब ,.....


लेखक- गुञ्जन श्री
अनुवादक-रोशन कुमार मैथिल

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गुरुवार, 12 सितंबर 2013

गजल

आइ किछु मोन पडलै फेरसँ किए
भाव मोनक ससरलै फेरसँ किए

टाल लागल लहासक खरिहानमे
गाम ककरो उजडलै फेरसँ किए

आँखि खोलू, किए छी आन्हर बनल
नोर देशक झहरलै फेरसँ किए

चान शोभा बनै छै गगनक सदति
चान नीचा उतरलै फेरसँ किए

"ओम" जिनगी अन्हारक जीबै छलै
प्राण-बाती पजरलै फेरसँ किए
(दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)-(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)
(फाइलातुन-फऊलुन-मुस्तफइलुन) - १ बेर प्रत्येक पाँतिमे

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शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

कृष्ण लेखक- राममनोहर लोहिया अनुवाद केनिहार- रोशन कुमार मैथिल

कृष्ण 
कृष्ण 
लेखक- राममनोहर लोहिया 
अनुवाद केनिहार- रोशन कुमार मैथिल



कृष्णक सभ किछु दू गोट अछि। दू गोट माइ, दू गोट पिता, दू गोट नगर, दू गोट पे्रमिका वा ई कहु जे अनेक। जे वस्तु संसारी अर्थमे बादक वा स्वीकृत एवं सामाजिक अछि, ओ असलसँ सेहो श्रेष्ठ अछि आओर बेसी प्रिय भऽ गेल अछि। ओना कृष्ण देवकीनन्दन सेहो छथि, मुदा यशोदानन्दन बेसी। एहन लोक भेट सकै छथि जे कृष्णक असली माइ, जन्म दै वाली माइ केर नाम नञि जानैत हो। ओना बाद वाली दूध वाली, यशोदाक नाम नञि जानऽ वला क्यौ निराला मात्र होयत। ओहि तरहे वसुदेव किछु हारल सन छथि, आ नन्दकेँ असली बापसँ किछु बेसी रुतबा भेट गेल छनि। द्वारिका आ मथुराक बीच तुलना करब ठीक नञि, कारण भूगोल आ इतिहासमे मथुराक संग देल अछि। ओना जँ कृष्णक चलय तँ, द्वारिका आ द्वारिकाधीश, मथुरा आ मथुरापतिसँ बेसी प्रिय रहला। मथुरासँ तँ बाललीला आ यौवन-क्रीड़ाक दृष्टिसँ, वृन्दावन आ बरसाना आदि बेसी महत्वपूर्ण अछि। प्रेमिका लोकनिक प्रश्न कनी ओझरायल अछि। किनकर तुलना कयल जाय, रुक्मिणी आ सत्यभामाक, राधा आ रुक्मिणीक वा राधा या द्रौपदीक। प्रेमिका शब्दक अर्थ संकुचित नञि कऽ सखा-सखी भावकेँ लऽ कऽ चलऽ पड़त। आब तँ मीरा सहो होड़ लगायब आरम्भ केलनि अछि। जे होउ, एखन तँ मात्र राधा बड़भागिनी अछि। तीन लोकक स्वामी ओकरा चरणक दास अछि। समयक फेर आ महाकाल सम्भवत: द्रौपदी वा मीराकेँ राधाक स्थान धरि नञि पहुँचेलक, मुदा एतेक सम्भव नञि लगैत अछि। कोनो कीमतपर रुक्मिणी राधासँ टक्कर कहियो नञि लऽ सकती। 

मनुष्यक शारीरिक सीमा ओकर चमड़ा आ नह अछि। ई शारीरिक सीमा, ओकरा अपन एक गोट संगी, एक गोट माइ, एक गोट बाप, एक गोट दर्शन आदि दैत रहैत अछि। ओना समय सदिखन एकरा सीमासँ बाहर उछलबाक प्रयास करैत रहैत अछि। मात्र मन केर द्वारा ओ उछलि सकैत अछि। कृष्ण ओहि तत्व आ महान प्रेमक नाम अछि जे मनकेँ प्रदत्त सीमा सभसँ लांघति-लांघति सभमे मिला दैत अछि, केकरोसँ फराक नञि रखैत अछि। कारण कृष्णतँ घटनाक्रम वला मनुष्य-लीला अछि, मात्र सिद्धान्त आ तत्वक विवेचन नञि, एहिलेल ओकर सभ वस्तु अपन आ एक केर सीमामे नञि रहि दू आर निरालापनी भऽ गेल अछि। ओना तँ दुनूमे कृष्णक निरालापन अछि, मुदा लीलाक रूपमे अपन माइ, पत्नी आ नगरीसँ परायापन बढ़ि गेल अछि। परायापनकेँ सेहो बढ़ाबा देब एक मानेमे अपनापनकेँ खत्म करब अछि। मथुराक एकाधिपत्य खत्म करैत अछि द्वारिका, ओना ओहि क्रममे द्वारिका अपना श्रेष्ठतत्व सन बना लैत अछि। 
भारतीय साहित्यमे माइ यशोदा आ लला छथि कृष्ण। माइ-ललाक एहिसँ बढ़ि हमरा कोनो सम्बन्ध मालूम नञि, ओना श्रेष्ठत्व भरि क ायम होइत अछि। मथुरा हटत नञि आ ने रुक्मिणी, जे मगधक जरासन्धसँ लऽ शिशुपाल होइत हस्तिनापुरक द्रौपदी आ पाँच पाण्डव धरि एक रूपता बना रखैत अछि। 
परकीया स्वकीयासँ बढ़ि ओकरा खत्म तँ करत नञि, मात्र अपना आ परायाक से बढ़कर उसे खत्?म तो करता नहीं, केवल अपना आ आन केर देवारकेँ ढ़ाइ दैत अछि। लोभ, मोह, ईर्ष्या, भय इत्यादिक छहरदेवारीसँ अपना आ स्वकीय छुटकरा पाबि जाइत अछि। सभ अपन आ अपन सभ भऽ जाइत अछि। बड़ रसीला लीला अछि कृष्णक, एहि राधा-कृष्ण वा द्रौपदी-सखा आओर रुक्मिणी-रमणक कतौ चर्म सीमित शरीरमे, प्रेमानन्द आ खूनक गर्मी आर तेजीमे कमी नञि। ओना ई सभ रहबाक बाद ई केहन निरालापन। 
कृष्ण के छथि? गिरधर, गिरधर गोपाल! ओना तँ मुरलीधर आ चक्रधर सेहो छथि, मुदा कृष्णक गुह्यतम रूपतँ गिरधर गोपालमे मात्र निखरैत अछि। कान्हाकेँ गोवर्धन पहाड़ अपन क ङुरिया आङुरपर कियक उठाबऽ पड़ल छलनि? एहिलेल ने जे ओ इन्द्र पूजा बन्न करवा देलनि आ इन्द्रक भोग स्वंय खा गेला, आर सेहो खाइत रहला। इन्द्र तमशा कऽ पानि, ओला, पाथर बरसायब आरम्भ केलनि, तखने तँ कृष्णकेँ गोवर्धन उठा अपन गो आ गोपाल सभक रक्षा करऽ पड़लनि। कृष्ण स्वंय इन्द्रक भोग कियक खाय चाहलनि? यशोदा आ कृष्णक एहि सम्बन्धमे ग्हय विवाद अछि। माँ इन्द्रकेँ लागबऽ चाहै छथि, कारण ओ पैघ देवता छथि, मात्र वाससँ तृप्त भऽ जाइ छथि, आ ओकर पैघ शक्ति अछि, प्रसन्न हेबापर बड़ बेसी वरदान दैत छथि आओर तमशेलापर फिरिसान। बेटा कहै छथि जे ओ इन्द्रसँ बेसी पैघ भगवान छथि, कारण ओ तँ वाससँ तृप्त नञि होइ छथि आ बहुत रास खा सकै छथि, आर हुनकर खेबाक कोनो सीमा नञि अछि। यैह अछि कृष्ण-लीलाक गुढ़ रहस्य। वास लेबऽ वला देवता लोकनिसँ खाय वला देवता लोकनि धरि भारत-यात्रा कृ ष्ण लीला अछि। 
कृष्णक पहिने, भारतीय देव, आकाशक देवता छथि। निस्सन्देह अवतार तँ कृष्क बहुत पहिने आरम्भ भऽ गेल। ओना त्रेताक राम एहन मनुष्य छथि जे निरन्तर देव बनबाक प्रयास करैत रहल। एहिलेल हुनकामे आकाशक देवाता सभक अंश किछु बेसी अछि। द्वापरक कृष्ण एहन देव छथि जे निरन्तर मनुष्?य बनबाक प्रयास करैत रहला। हुनका एहिमे सम्पूर्ण सफलता भेटलनि। कृष्ण सम्पूर्ण अबोध मनुष्य छथि, खूब खेलनि-खूवेलनि, बहुत प्रेम केलनि आ प्रेम सिखेलनि, जनगणक रक्षा केलनि आ सभकेँ बाट देखेलनि, निर्लिप्त भोगक महान त्यागी आ योगी बनला।
एहि प्रसंगमे ई प्रश्न बेमतलबक अछि जे मनुष्य लेल, विशेष कऽ कऽ राजकीय मनुष्य लेल, रामक रास्ता सुकर आ उचित अछि वा कृष्णक। मतलबक बात तँ ई अछि जे कृष्ण देव हेबाक बादो निरन्तर मनुष्य बनैत रहला। देव आ नि:स्व आ असीमित हेबाक कारणे कृष्णमे जे असम्भव मनुष्यता अछि, जेना फुसि बाजब, ठकब आ हत्या करबामे, हुनक नकल केनिहार लोक मूर्ख छथि। ओहिमे कृष्णक कोन दोष। कृष्णक सम्भव आ पूर्ण मनुष्यता सभपर ध्यान देब मात्र उचित अछि, आ एकाग्र ध्यान। कृष्ण, इन्द्रकेँ हरेलनि, वास लेबऽ पलर देव लोकनिकेँ भगेलनि, खाय वला देव सभकेँ प्रतिष्ठित केलनि, हाड़, खून, माउस वला मनुष्यकेँ देवता बनेलनि, जन-गणमे भावना जागृत केलनि जे देवताकेँ आकाशमे नञि ताकू, ताकू एहि ठाम अपना बीच, पृथ्वी पर। पृथ्वी वला देव खाइत अछि, प्रेम करैत अछि, मिल कऽ रक्षा करैत अछि। 

कृष्ण जे कि छु करै छला, जमि कऽ करै छला, जमि कऽ प्रेम करै छला, रक्षा सेहो जमि कऽ करै छला। पूर्ण भोग, पूर्ण प्रेम, पूर्ण रक्षा। कृष्णक सभटा क्रिया सभ हुनकर शक्तिक पूर्ण प्रयोगसँ ओत-प्रोत रहैत छल, शक्तिक कोनो अंश बचा कऽ नञि रखैत छला, कञ्जूस बिल्कूल नञि छला, एहन दिलफे क, एहन शरीरफेक चाहे मनुष्य सभसँ सम्भव ने हो, मुदा मनुष्य मात्रसँ भऽ सकैत अछि, मनुष्यक आदर्श, चाहे जेकारा पहुँचबा धरि सदिखन एक सीढ़ी पहिने रुकि जाय पड़ैत हो। कृष्ण, अपने गीत गेलनि अछि, एहन मनुष्य केर जे अपन शक्तिक पूर्ण आ जमि कऽ प्रयोग करैत हो। 'कूमोर्गानीव' कहल गेल अछि एहन लोककेँ। कछुआक तरह ई व्यक्ति अपना अंगकेँ बटोरैत अछि, अपन इन्द्रि सभपर एतेक सम्पूर्ण प्रभुत्व अछि जे एकर इन्द्रियार्थसँ एकरा पूर्ण तरहे हटा लैत अछि, किछु लोक कहता जे ई तँ भोगक उन्टा भेल। एहन बात नञि अछि। जे करी जमि कऽ - भोग सेहो, त्याग सेहो। जमल भोगी कृष्ण, जमल योगी तँ छलाहे। सम्भवत: दुनूमे विशेष अन्तर नञि अछि। तहियो कृष्ण एकांगी परिभाषा देलनि, अचल स्थितप्रज्ञक, चल स्थितप्रज्ञक नञि। ओकर परिभाषा तँ देलनि तँ इन्द्रियार्थमे लपेट कऽ, घेलि कऽ। कृष्ण अपने दुनू छला, परिभाषामे एकांगी रहि गेला। जे काम जाहि समय कृष्ण करै छला, ओहिमे अपन समग्र अंग सभक एकाग्र प्रयोग करै छला, अपना लेल किछु नञि बचबैत छला। अपन तँ छलनिहे ने किछु ओहिमे। 'कूमोर्गानीव' केर संग संग 'समग्र-अंग-एकाग्री' सेहो परिभाषामे सम्मिलित हेबाक चाही छल। जे काम करी, जमि कऽ करी, अपना सभटा मन आ शरीर ओहिमे फेक कऽ। देवता बनबाक प्रयासमे मनुष्य कुछ कृपण भऽ गेला अछि, पूर्ण आत्मसमर्पण ओ जेना बिसरि गेला अछि। आवश्यक नञि अछि जे ओ अपना आपकेँ कोनो आनक सोझा समर्पण करय। मात्र अपना काममे पूर्ण आत्मसमर्पण करी। झाड़ू लगाबी तँ जमि कऽ, वा अपन इन्द्रि सभक प्रयोग कऽ युद्धमे रथ चलाबी तँ जमि कऽ, श्यामा मालिन बनि कऽ राधाकेँ फूल बेचबा लेल जाय तँ जमि कऽ, अपन शक्तिक दर्शन ताकी आ गाबी तँ जमि कऽ। कृष्ण ललकारैत अछि तँ मनुष्यकेँ अकृपण बनेबा लेल, अपन तागतिकेँ पूर्ण तरहे आर एकाग्र उछालबा लेल। लोक करैत किछु आर अछि, ध्यान दैत अछि कोन आर दिस। झाड़ू लगबैत अछि तहियो गर्दा कोनमे पड़ल रहैत अछि। एकाग्र ध्यान ने हो तँ सभ इन्द्रि सभक अकृपण प्रयोग कोनो होयत। 'कूमोर्गानीव' आ 'समग्र-अंग-एकाग्री' मनुष्यकेँ बनेबाक अछि। यैह तँ देवताक मनुष्य बनेबाक प्रयास अछि। देखू माँ, इन्द्र मात्र वास लैत छथि, हम तँ खाइतो छी। 

आसमानक देवता लोकनिकेँ जँ भगाबय ओकरा पैघ पराक्रम आ फिरिसानी लेल तैयार रहक चाही, तखने कृष्णकेँ पूरा गोवर्धन पहाड़ अपन छोट आङुरपर उठाबऽ पड़ल। इन्द्रकेँ ओ तमशा देता आ अपन गायक रक्षा ने करता, तँ एहन कृष्ण कोन कामक। फेरो कृष्णक रक्षा-युगक आरम्भ होबऽ वला छल। एक तरहसँ बाल आ युवा-लीलाक शेष मात्र अछि गिरिधर लीला। कालिया-दहन आ कंस वध ओकरा लग पासक अछि। गोवर्धन उठेबामे कृष्णक आङुर दु:खआओल होयत, अपन गोप आ सखा लोकनिकेँ किछु झुञ्झला कऽ मदति देबा लेल कहने हेता। माँकेँ किछु नखरा देखा आङुर दुखेबाक उपराग देने हेता। गोपी लोकनिसँ आखि मटका करैत अपन मुस्कान द्वारा कहने हेता। हुनकर पराक्रमपर आश्चर्य करबा लेल राधा आ कृष्णक तँ आपसमे गम्भीर आ प्रफल्लित मुद्रा रहल होयत। कहब कठिन अछि जे केकरा दिस कृष्ण बेसी काल धरि तकने हेता, माँ केर दिस नखरा करैत, राधा केर दिस प्रफुल्लित भऽ। आङुर बेचाराक दुखा रहल छल। एखन धरि दुखा रहल अछि, गोवर्धनमे तँ यैह लगैत अछि। ओहि ठामपर मानस गंगा अछि। जखन कृष्ण गउ वंश रूपी दानवकेँ मारने छला, राधा तमशा गेलनि आ एहि पापसँ बचबा लेल ओ ओहि स्थलपर कृष्णसँ गङ्गा माङलनि। बेचारा कृष्णकेँ कोन कोन असम्भव काम करऽ पड़लनि अछि। हर समय ओ किछऊ ने किछु करैत रहला अछि दोसरकेँ सुखी बनेबा लेल। हुनकर आङुर दुखा रहल छल। चलू हुनकर किछु मदति कऽ दियनि। 

गोवर्धनमे बाट चलैत किछु गोटे, जाहिमे पण्डा लोकनि होइ छथि, प्रश्न केलनि जे हम कोन ठामक छी? हम जवाब देने रही जे, रामक अयोध्याक। पण्डा जवाब देलनि, सभ माया एक अछि। जखन हमर बात चलैत रहल तँ एक गोट कहलनि जे आखिर सत्तू वल रामसँ गोवर्धन वासी लोकनिक नेह कोनो भऽ सकैत अछि। हुनका लोकनिक हृदय तँ माखन-मिसरी वल कृष्णसँ लागल अछि। माखन-मिसरी वला कृष्ण, सत्तू वला राम किछु सही छथि, मुदा हुनकर अपन आङुर एखनो दुखा रहल छनि।

एक बेर मथुराक बाटपर चलबाक क्रममे एक गोट पण्डासँ हमर गपशप भेल। पण्डा सभक साधारण कसौटीसँ ओहि गपशपक कोनो पिरणाम नञि निकलल, ने निकलऽ वला छल। ओना की मधुर मुस्कीक संग ओ पण्डा कहलक जे जीवनमे मात्र दू गोट बात तँ अछि सभ किछु। कृष्ण मीठगर बात करब सीखा गेला अछि। आकाश वला देवात लोकनिकेँ भगा गेला अछि, माखन-मिसरी वला देव लोकनिक प्रतिष्ठा दिया गेला अछि, मुदा हुनकर एखन धरि कोन-कोन अङ एखन धरि दुखा रहल छनि। 

कृष्णक तरहे एक गोट आर देवता भेला अछि जे मनुष्य बनबाक प्रयास केलनि। हुनकर राज्य संसारमे बेसी पसरल। सम्भवत: एहि लेल जे ओ गरीब कमारक बेटा छला आ हुनकर अपन जीवनमे वैभव आ सुख सुविधा नञि छलिनि। सम्भवत: एहि लेल जे जन-रक्षाक ओकर अन्तिम काम एहन छल जे मात्र ओकर आङुर नञि दुखायल, ओकर देहक रोम रोम सिहरि गेल आ अङ अङ टुटि कऽ ओ मुइला। एखन धरि लोक हुनकर ध्यान कऽ कऽ अपन सीमा बान्हऽ वला चमड़ासँ बाहर फेकैत छथि। भऽ सकैत अछि जे इसा मसीह दुनिञामे मात्र पसिर गेला अछि जे ओकर हुनकर विरोध ओहि रोमी लोकनिसँ छल जे आइ केर मालिक सभ्यताक पुरखा छथि। इसू रोमी सभपर चढ़ला। रोमी आइ केर यूरोपि सभपर चढ़ला। सम्भवत: एक गोट कारण ईहो अछि जे कृष्ण-लीलाक मजा ब्रज आ भारतभूमिक कण-कणसँ एतेक लटपटायल अछि जे कृष्णक नियति कठिन अछि। जे होउ, कृष्ण आ क्रिस्टोस दुनू आकाशक देवता लोकनिकेँ भगेलनि। दुनू केर नाम आ किस्सामे सेहो कतौ-कतौ सादृश्य अछि। कखनो कखनो दू गोट महाजनक तुलना नञि करक चाही। दुनू अपना क्षेत्रमे श्रेष्ठ छथि। तहियो, क्रिस्टोस प्रेमक आत्मोसर्गी अङ लेल बेजोड़ आ कृष्ण सम्पूर्ण मनुष्य-लीला लेल। कहियो कृष्णक वंशज भारतीय शक्तिशाली बनता, तँ सम्भव अछि जे हुनकर लीला विश्व भरिमे रस पसारत। 
कृष्ण बड़ बेसी हिन्दुस्तानक संग जुड़ल छथि। हिन्दुस्तानक बेसी देव आ अवतार अपन माटि केर सनल छथि। माटिसँ फराक करबापर ओ बड़ बेसी निष्प्राण भऽ जाइ छथि। त्रेताक राम हिन्दुस्तानक उत्तर-दक्षिण एकताक देव छथि। द्वापरक कृष्ण देशक पूर्व-पश्चिम एकताक देव छथि। राम उत्तर-दक्षिण आ कृष्ण पूर्व-पश्चिम धुरीपर घूमला। कखनो कखनो तँ लगैत अछि जे देशकेँ उत्तर-दक्षिण आ पूब-पश्चिम एक करब मात्र राम आ कृष्णक धर्म छल। ओना सभ धर्मक उत्पत्ति राजनीतिसँ अछि, छिटायल स्वजन लोकनिकेँ सङोर करब, कलह मिटायब, सुलह करब आ भऽ सकै तँ अपन आ सभक सीमाकेँ ढ़ाहब। संग संग जीवनकेँ किछु उँच धरि उठायब, सदाचारक दृष्टिसँ आ आत्म-चिन्तन केर सेहो। 
देशक एकता आ समाजक शुद्धि सम्बन्धी कारण आ आवश्यकता सभसँ संसारक सभ महान धर्मक उत्पत्ति भेल अछि। अन्तत: धर्म एहि आवश्यकता सभसँ ऊपर उठि कऽ, मनुष्यकेँ पूर्ण करबाक प्रयास सेहो करैत अछि। ओना भारतीय धर्म एहि आवश्यकता सभसं जतेक ओत-प्रोत अछि, ओतेक कोनो आन धर्म नञि अछि। कखनो कखनो तँ एहन लागैत अछि जे राम आ कृष्णक किस्सा मनगढ़न्त गाथा अछि, एहिमे एक गोट अद्वितीय उद्देश्य प्राप्त करब छल, एतेक पैघ देशक उत्तर-दक्षिण आ पूब-पश्चिमकेँ एक रूपमे बान्हबाक छल। एहि विलक्षण उद्देश्यक अनुरूप मात्र ई विलक्षण किस्सा बनल। हमर माने ई नञि अछि जे सभ किस्सा फुसि अछि। गोवर्धन पहाड़क किस्सा जाहि रूपमे प्रचलित अछि ओहि रूपमे ओ गलत तँ अछिये, संग संग नञि जानि कतेक आर किस्सा, जे कतेक आन लोकक रहल हो, एक गोट कृष्ण अथवा रामक संग जुड़ि गेल अछि। जोड़ऽ वलाकेँ कमाल प्राप्ति भेल। ईहो भऽ सकैत अछि जे कोनो ने कोनो चमत्कारिक पुरुष राम आ कृष्णक नाम भेल हो। चमत्कार सेहो हुनका संसारक इतिहासमे अनहोनी रहल हो।  ओना ओहि ओहि गाथाकार लोकनिक ई कम अनहोनी चमत्कार नञि अछि, जे राम आ कृष्णक जीवनक घटना सभकेँ एहि क्रममे बान्हलक अछि जे इतिहास सेहो ओकरा सोझामे लजा गेल अछि। आइ केर हिन्दुस्तानी राम आ कृष्णक गाथा केर एक-एक व्याख्याकेँ चावसँ आ सप्रमाण जानै छथि, जखनकि ऐतिहासिक बुद्ध आ अशोक हुनका लेल धुन्धला स्मृति-मात्र रहि गेल अछि। 
महाभारत हिन्दुस्तानक पूर्व-पश्चिम यात्रा अछि, जाहि तरहे रामायण उत्तर-दक्षिण यात्रा अछि। पूर्व-पश्चिम यात्राक नायक कृष्ण छथि, जाहि तरहे उत्तर-दक्षिण यात्राक नायक राम छथि। मणिपुरसँ द्वारिका धरि कृष्ण वा हुनकर सहचर लोकनिक पराक्रम भेल अछि, जेना जनकपुरमे श्रीलंका धरि राम वा हुनकर सहचर लोकनिक। रामक काम अपेक्षाकृत सहज छल। कमसँ कम ओहि काममे एकरसता बेसी छल। रामक तुलना वा दोस्ती भेल भील, किरात, किन्नर, राक्षस इत्यादिसँ, जे हुनका अपन सभ्यतासँ फराक छल। रामक काम छल हिनका लोकनिकेँ अपनामे सम्मिलित करब आ हुनका सभकेँ अपना सभ्यतामे ढ़ालब, चाहे हरेबाक बाद वा हरेने बिनु।

कृष्णक वास्ता पड़ल अपने लोकसँ। एक्क सभ्यताक दू गोट अङमेसँ एककेँ लऽ भारतक पूर्व-पश्चिम एकता कृष्णकेँ स्थापित करऽ पड़ल। एहि काममे पेच बेसी छल। तरह-तरहक सन्धि आ विग्रहक क्रम चलल नञि कतेक चालाकी सभ आ धूर्तता सभ सेहो भेल। राजनीतिक निचोड़ सेहो सोझा आयल- एहन छनि कऽ जेहन फेर कहियो ने भेल। अनेक ऊंचाइ सेहो छूबल गेल। अश्चर्य चकित करऽ वाल किस्सा सहो भेल। जेना पूब-पश्चिमक राजनीति जटिल छल, तहिना लोक सभक अपसी सम्बन्ध सेहो, विशेषत: पुरुष-महिलाक। अर्जुनक मणिपुर वाली चित्रागंदा, भीमक हिडम्बा आ पाञ्चालीक  तँ किस्सा की कहल जाय। कृष्णक पीसी कुन्तीक एक गोट बेटा छल अर्जुन, दोसर कर्ण, दुनू गोटे फराक फराक बापसँ, अर्जुनक वध छलसँ करबा लेल अर्जुनके ँ कृष्ण उकसेलनि। तहियो कियक जीवनक निचोड़ छनि कऽ आयल? कारण कृष्ण सन निस्वार्थ मनुष्य कहियो नञि भेल आ ओहिसँ बढ़ि कऽ तँ कहियो होयब सेहो असम्भव अछि। राम उत्तर-दक्षिण एकताक ने मात्र नायक बनला, राजा सेहो भेला। कृष्ण तँ अपन मुरली बजबैत रहला। महाभारतक नायिका द्रौपदीसँ महाभारतक नायक कृष्ण कहियो किछु नञि लेलनि, मात्र देलनि। 

पूब-पश्चिम एकताक दू गोट धुरी स्पष्ट अछि जे कृष्णक कालमे छल। एक  गोटपटना-गयाक मगध-धुरी आ दोसर हस्तिनापुर-इन्द्रप्रस्थक कुरु-धुरी। मगध-धुरीक सेहो पसराव अपने कृष्णक मथुरा धरि छल जतऽ मगध-नरेश जरासन्धक जमाइ कंस राज्य करै छला। बीचमे शिशुपाल आदि मगधक आश्रित-मित्र छला। मगध-धुरीक विरुद्ध कुरु-धुरीक सशक्त निमार्ता कृष्ण छला। कतेक पैघ पसाराव केलनि कृष्ण एहि धुरीक। पूबमे मणिपुरसँ लऽ पश्चिममे द्वारिका धरि एहि कुरु-धुरीमे समावेश केलनि। देशक दुनू सीमा, पूबक पहाड़ी सीमा आ पश्चिमक समुद्री सीमाकेँ फाँसलनि आ बान्हलनि। एहि धुरीकेँ कायम आर बेसी शक्तिशाली करबा लेल कृष्णकेँ कतेक मेहनति आ कतेक पराक्रम करऽ पड़ल, आर कतेक नम्मा बुद्धि सोचऽ पड़लनि। ओ अपन पहिल प्रहार अपने घर मथुरामे मगधराजक जमादपर केलनि। ओहि समय सम्पूर्ण हिन्दुस्तानमे ई  लड़ाइ गूञ्जल होयत। कृष्णक ई पहिल ललकार छल। वाणी द्वारा नञि, ओ कर्म द्वारा रण-भेरी बजौलनि। के एकरा अनसुनी कऽ सकैत छलञ सभकेँ निमंत्रण भऽ गेल ई सोचबा लेल जे मगध राजाकेँ अथवा जिनका कृष्ण कहय ओकरा सम्राटक रूपमे चुनी। अन्तिम चुनाव सहो कृष्ण पैघ छल रूपमे रखलनि। कुरु-वंशमे मात्र न्याय-अन्यायक आधारपर दू टुकड़ी भेल आ ओहिमे अन्यायी टुकड़ीक संग मगध-धुरीकेँ जुड़वा देलनि। कृष्ण नञि सोचने हेता जे ओ तँ कुरुवंशक आपसी झगड़ा अछि। कृष्ण जानै छला जे ओ तँ इन्द्रप्रस्थ-हस्तिनापुरक कुरु-धुरी आ राजगिरिक मगध-धुरीक झगड़ा अछि। 

राजगिरि राज्य कंस-वधपर तिलमिला उठल होयत। कृष्ण पहिल बेरमे मगधक पश्चिमी शक्तिकेँ साफ खत्म कऽ देलनि। ओना एखन तँ तागति बड़ बेसी बटोरबाक छल आ बढेबाक 
छल। ई तँ मात्र आरम्भ छल। नीक आरम्भ भेल। सम्पूर्ण जगतकेँ ज्ञात भऽ गेल। ओना कृष्ण कोनो बुरबक थोरेहि छला जे आरम्भक लड़ाइकेँ अन्तक बना देता। हुनका लग एतेक तागति तँ छलनि नञि जे कंसक ससुर आ सम्पूर्ण हिन्दुस्तानक तागतिसँ लड़ि बैसता। प्रहार कऽ कऽ, संसारकेँ डंका सुना कऽ कृष्ण भागि गेला। बेसी दुर सेहो नञि भागला, द्वारिकामे। तखनेसँ हुनक नाम रणछोड़दास पड़लनि। गुजरातमे आइयो हजारो लोक, सम्भवत: एक लाखसँ सेहो बेर लोक हेता, जिनकर नाम रणछोड़दास छनि। पहिने हम एहि नाम हसि दैत छला, मुस्कायब तँ कहियो नञि छोड़ब। ओना तँ हिन्दुस्तानमे आरो देवता लोकनि छथि जे अपन पराक्रम भागि कऽ देखेलनि, जेना ज्ञानवापीक शिव। ई पुरान देश अछि। लड़ैत-लड़ैत थाकल हड्डी सभकेँ भागवाक अवसर भेटक चाही। ओना कृष्ण थाकल पिण्डली सभक कारण नञि भागलनि। ओ भागला बढ़ैत जुआनीक हड्डी सभक कारणे ँ। एखन हड्डी सभकेँ बढ़बा लेल आ पसरबा लेल आर अवसर भेटक चाही छल। कृष्णक पहिल लड़ाइ तँ आइ धरिक छापामार लड़ाइ केर समान छल, वार करी आ भागि जाय। अफसोच अछि जे किछु भक्त लोकनि भागबा मात्रमे मजा लै छथि। 

द्वारिका मथुरासँ सीधा दुरीपर लगभग 700 मील अछि। वर्तमान सड़कक दुरी जँ मापल जाय तँ लगभग 1,050 मील होइत अछि। बिचका दूरी एहि तरहे लगभग 850 मील होइत अछि। कृष्ण अपन शत्रुसँ बेसी दूरसँ निकलिये गेला, संगे संग देशक पूर्व-पश्चिम एकता हासिल करबा लेल ओ पश्चिमक अन्तिम बान्हकेँ बान्हि लेलनि। बादमे, पाँचो पाण्डव लोकनिक बनवास युगमे अर्जुनक चित्रांगदा आ भीमक हिडम्बाक माध्यमे ओ पूबक अन्तिम नाकाकेँ सेहो बान्हलनि। एहि दूरी सभकेँ मापबा लेल मथुरासँ अयोध्या, अयोध्यासँ राजमहल आ राजमहलसँ इम्फालक दूरी जानब आवश्यक अछि। यैह रहल होयत ओहि समयक महान राजमार्ग। मथुरासँ अयोध्याक बिचक दूरी लगभग 300 मील अछि। अयोध्यासँ राजमहल लगभग 470 मील अछि। राजमहलसँ इम्फालक  बिचका दूरी लगभग सवा पाँच सय मील अछि, ओना वर्तमान सड़कसँ दूरी लगभग 850 मील आ सीधा दूरी लगभग 380 मील अछि। एहि तरहे मथुरासँ इम्फालक फासिला ओहि समयक राजमार्ग द्वारा लगभग 1,600 मील रहल होयत। कुरु-धुरीक केन्द्रपर कब्जा करब आ ओकरा सशक्त बनेबाक पहल कृष्ण केन्द्रसँ 800 मील दूर भागि आ अपन सहचर आ चेला चपाटी लोकनिकेँ ओ 1,600 मील दूर धरि घूमेलनि। पूब-पश्चिमक पूर्ण भारत यात्रा भऽ गेल। ओहि समयक भारतीय राजनीतिकेँ समझबा लेल किछु आर दूर जायब आवश्यक अछि। मथुरासँ बनारसक फासिला लगभग 370 मील आ मथुरासँ पटना लगभग 500 मील अछि दिल्लीसँ, जे तखन इन्द्रप्रस्थ छल, मथुराक फासिला लगभग 90 मील अछि। पटनासँ कलकत्ताक फासिला लगभग सवा तीन सय मील अछि। कलकत्ताक फासिलाक कोनो विशेष तात्पर्य नञि, मात्र एतबे जे कलकत्ता सेहो किछु समय धरि हिन्दुस्तानक राजधानी रहल अछि, भने गुलाम  हिन्दुस्तानक। मगध-धुरीक पुनर्जन्म एक अर्थमे कलकत्तामे भेल। जाहि तरहे कृष्ण-कालीन मगध-धुरी लेल राजगिरि केन्द्र अछि, ओहि तरहे ऐतिहासिक मगध-धुरी लेल पटना वा पाटलिपुत्र के न्द्र अछि, आ एहि दुनूक फासिला लगभग 40 मील अछि। पटना-राजगिरि केन्द्रक पुनर्जन्म कलकत्तामे होइत अछि, एकर इतिहासक अध्ययन विद्यार्थी अपने करथु, चाहथि तँ अध्ययन करबाक क्रममे सन्तापपूर्ण विवेचन करय जे ई काम विदेशी तत्वावधानमे कियक भेल। 

कृष्ण मगध-धुरीक नाश कऽ कऽ कियक प्रतिष्ठा करऽ चाहलनि? एकर एक गोट जवाब तँ साफ अछि, भारतीय जागरणक बाहुल्य ओहि समय उत्तर आ पश्चिममे छल जे राजगिरि आ पटनासँ बहुत दूर पड़ि जाइत छल। ओकरा अतिरिक्त मगध-धुरी किछु पुरान बनि चुकल छल, शक्तिशाली छल, ओना ओकर पसराब संकुचित छल। कुरु-धुरी नव छल आ कृष्ण एकर तागति आ एकर पसराब दुनू केर सर्वशक्तिसम्पन्न निमार्ता छल, मगध-धुरीकेँ जाहि तरहे चाहिता सम्भवत: मोड़ि नञि सकत, कुरु-धुरीकेँ अपन इच्छाक अनुसार मोड़ि आ पसारि सकैत छल। सम्पूर्ण देशकेँ बान्हबाक जे छल हुनका। कृष्ण त्रिकालदर्शी छला। ओ देख नेने हेता जे उत्तर-पश्चिममे आगा चलि कऽ यूनानी, हूणा, पठान, मुगल आदि सभक आक्रमण होयत। एहिलेल भारतीय एकताक धुरीक के न्द्र कतौ ओहि ठाम रचक चाही, जे एहि आक्रमणक सशक्त मोकाबिला कऽ सकय। ओना त्रिकालदर्शी कियक ने देख पेलक जे एहि विदेशी आक्रमणक पहिने देशी मगध-धुरी बदला चुकाओत आ सैकड़ो बरख धरि भारतपर अपन प्रभुत्व कायम करत आ आक्रमणक समय धरि कृष्णक भूमिक लग माने कन्नौज आ उज्जैन धरि खिसकि चुकल होयत, ओना अशक्त अवस्थामे। त्रिकालदर्शी देखलनि सम्भवत: ई सभ किछु हो, ओना किछु नञि कऽ सकला हो। ओ सदिखन लेल अपना देशवासी लोकनिकेँ कोना ज्ञानी आ साधु दुनू बनिबतथि। ओ तँ मात्र बाट देखा सकैत छला। बाटमे सेहो सम्भवत: त्रुटि छल। त्रिकालदर्शीकेँ इहाहे देखक चाही छल जे ओकरा बाटपर ज्ञानी नञि, अनाड़ी सेहो चलता आ ओ कतेक भारी नुकसान उठेता। रामक बाट चलि कऽ अनाड़ीक सहो बेसी नञि बिगरैत, भने बनब सेहो कम होइत अछि । अनाड़ी कुरु-पाञ्चाल सन्धिक की के लक? 

कुरु-धुरीक आधार-शिला छल कुरु-पाञ्चाल सन्धि। लगपासक एहि दुनू क्षेत्रक वज्र समान एक कायम करबाक छल जे कृष्ण ओहि लीला सभक माध्यमे केलनि, जाहिसँ पाञ्चालीक विवाह पाँचो पाण्डवसँ भऽ गेल। ई पाञ्चाली सेहो अद्भुत नारी छली। द्रौपदीसँ बढ़ि, भारतक क्यौ प्रखर-मुखी आ ज्ञानी नारी नञि। कोनो कुरु सभाकेँ जवाब देबा लेल ओ ललकारैत अछि, जे व्यक्ति अपनाकेँ हारि चुकल हो कियक दोसरकेँ दावपर रखबाक ओकरामे स्वतंत्र सत्ता अछि। 

पाँचो पाण्डव आ अर्जुन सेहो ओकरा सोझा फीका छल। ई कृष्णा तँ कृष्णक लायक छली। महाभारतक नायक कृष्ण, नायिका कृष्णा। कृष्णा आ कृष्णक सम्बन्ध सेहो विश्व-साहित्यमे बेजोड़ अछि। दुनू सखा-सखीक सम्बन्ध पूर्ण रूपसँ मन केर देन छल वा ओहिमे कुरु-धुरीक निर्माण आ पसराबक अंश छल? जे हो, कृष्णा आ कृष्णक ई सम्बन्ध राधा आ कृष्णक सम्बन्धसँ कम नञि, मुदा साहित्यिक आ भक्त लोकनिक नजरि एहि दिस कम पड़ल अछि। भऽ सकैत अछि जे भारतक पूब-पश्चिम एकताक एहि निमार्ताकेँ अपन सीखक अनुसार मात्र कर्म, नञि कि कर्मफलक अधिकारी होबऽ पड़लनि, सम्भवत: एहिलेल जे जँ व्यस्क कर्मफल-हेतु बनि जेता, तँ एतेक अनहोनी निमार्ता ओ भये नञि सकैत छला। ओ कहियो लोभ नञि केलनि जे मात्र अपन मथुराकेँ धुरी-केन्द्र बनाबी, हुनका लेल दोसरक इन्द्रप्रस्थ आ हस्तिनापुर मात्र नीक रहल। ओहि तरहे कृष्णाकेँ सेहो सखी रूपमे रखलनि, जेकरा संसारक लोक अपन कहैत अछि, ओहन नञि बनेलक। के जानय जे कृष्ण लेल ई आसान छल वा एहिमे सेहो हुनकर हृदय दुखा रहल छल। 

कृष्णा अपन नामक अनुरूप लाली गोराइ वाली छली, बड़ बसी सुन्नर रहल हेती। हुनकर बुद्धिक तेज, हुनक चकित-हरिण जका आखिमे चमकैत रहल हेतनि। गोरकी केर अपेक्षा सुन्नर लाली गोराइ, नखशिख आ अंगमे बेसी छटगर होइत अछि। राधा गोर रहल हेती। बालक आ युवक कृष्ण राधामे एकरस रहला। प्रौढ़ कृष्णक मनपर कृष्णा छायल रहल हेती, राधा आ कृष्ण तँ एक छलाहे। कृष्णक सन्तान लोकनि कहिया धरि हुनकर गलती दोहराबैत रहता। बेसमझ जुआनीमे गारकीसँ उलझब आ अधेड़ अवस्थामे ललकी गोराइ वालीकेँ निहारब। कृष्ण-कृष्णा सम्बन्धमे आ किछु हो ने हो, भारतीय मर्द लोकनिकेँ श्याामाक तुलनामे गोरकीक प्रति अपन पक्षपातपर फेरोसँ विचार करक चाही। 

रामायणक नायिका गोर अछि। महाभारतक नायिका कृष्णा अछि। गारकीक अपेक्षा लाली गोराइ बेसी सजीव अछि। जे किछु हो, एहि कृष्ण-कृष्णा सम्बन्धक अनाड़ी हाथे फेरो पुनर्जन्म भेल। नञि रहल ओहिमे कर्मफल आ कर्मफल हेतु त्याग। कृष्णा पाञ्चाल यानी कन्नौजक क्षेत्रक छला, संयुक्ता सेहो। धुरी-केन्द्र इन्द्रप्रस्थक अनाड़ी राजा पृथ्वीराज अपन पुरखा कृष्णक बाट नञि चलि सकल। एकरा पञ्चाली द्रौपदीक माध्यमे कुरु-धुरीक आधार-शिला राखल गेल, ओकरा पाञ्चाली संयुक्ताक माध्यमे दिल्ली-कन्नौजक दौड़ जे विदेशी सभक सफल आक्रमणक कारण बनल। कखनो कखनो लगैत अछि जे व्यक्तिक तँ नञि, मुदा इतिहासक पुनर्जन्म होइत अछि, कहियो फीका आ कहियो रंगीला। कतऽ द्रौपदी आ कतऽ संयुक्ता, कतऽ कृष्ण आ कतऽ पृथ्वीराज, ई ठीक नञि। फीका आ मारात्मक पुनर्जन्म, मुदा पुनर्जन्म तँ अछिये। 

कृष्णक कुरु-धुरीक आर सेहो रहस्य रहल होयत। साफ अछि जे राम आदर्शवादी एकरूप एकत्वक निमार्ता आ प्रतीक छल। ओहि तरहे जरासन्ध भौतिकवादी एकत्वक निमार्ता छला। आइ काल्हि किछु गोटै कृष्ण आ जरासन्ध युद्धकेँ आदर्शवाद-भौतिकवादक युद्ध मानऽ लगला अछि। ओ ठीक लगैत अछि, मुदा आधा विवेचन अछि। जरासन्ध भौतिकवादी एकरूप एकत्वक इच्छुक  छला। बादक मगधीय मौर्य आ गुप्त राज्यमे किछु हद धरि एहि भौतिकवादी एकरूप एकत्वक प्रादुर्भाव भेल आ ओहि केर अनुरूप बौद्ध धर्मक। कृष्ण आदर्शवादी बहुरूप एकत्वक निमार्ता छल। जहाँ धरि हमरा बूझल अछि, एखन धरि भारतक निर्माण भौतिकवादी एकत्वक आधारपर कहियो नञि भेल। चिर चमत्कार तँ तखन होयत जखन आदर्शवाद आ भौतिकवादक मिलल-जुलल बहुरूप एकत्वक आधारपर भारतक निर्माण होयत। एखन धरि तँ कृष्णक प्रयास सर्वाधिक मानवीय प्रतीत होइत अछि, चाहे अनुकरणीय रामक एकरूप एकत्व मात्र हो। कृष्णक बहुरूपतामे ओ त्रिकाल-जीवन अछि जे आनमे नञि। 

कृष्ण यादव-शिरोमणि छला, मात्र क्षत्रिय राजा नञि, सम्भवत: क्षत्रिय ओतेक नञि छला, जतेक अहीर। तखने तँ अहीरिन राधाक स्थान अडिग अछि, क्षत्राणी द्रौपदी हुनका हटा ने पेलक। विराट् विश्व आ त्रिकालक उपयुक्त कृष्ण बहुरूप छला। राम आ जरासन्ध एकरूप छला, चाहे आदर्शवादी एकरूपतामे के न्द्रीयकरण आ क्रूरता कम हो, मुदा किछु ने किछु केन्द्रीयकरण तँ दुनूमे होइत अछि। मौर्य आ गुप्त राज्यमे कतेक केन्द्रीयकरण छल, सम्भवत: क्रूरता सेहो। 

बेचारो कृष्ण एतेक नि:स्वार्थ मेहनति केलनि, मुदा जन-मनमे मात्र राम आगा रहला। सिर्फ बंगाल मात्रमे शव - 'बोल हरि, हरि बोल' केर उच्चारणसँ - अपन अन्तिम यात्रापर निकालल जाइत अछि, नञि तँ किछु दक्षिणकेँ छोड़ि सम्पूर्ण भारतमे हिन्दू शव'राम नाम सत्य है' केर संग लऽ जाओल जाइत अछि। बंगालक एतेक तँ नञि तहियो उड़ीसा आ असममे कृष्णक स्थान नीक अछि। कहब कठिन अछि जे राम आ कृष्णमे के उन्नीस, के बीस छथि। सभसँ आश्चर्यक बात अछि जे स्वयं ब्रजक चारू कातक भूमिक लोक सेहो एकद दोसरकेँ 'जय रामजी' सँ नमस्कार करै छथि। सड़क चलैत अनचिन्हार लोककेँ सेहो 'जय रामजी' बड़ मीठ लागैत छनि, सम्भवत: एक कारण ईहो अछि। 

राम त्रेताक मीठे, शान्त आ सुसंस्कृत युगक देवता छथि। कृष्ण पकल, जटिल, करूगर आ प्रखर बुद्धि युगक देवता छथि। राम गम्य छथि, कृष्ण अगम्य छथि। कृष्ण एतेक बेसी मेहनति केलनि जे हुनक वंशज हुनका अपन अन्तिम आदर्श बनेबासँ घबड़ाइत छथि, जँ बनबैत छथि तँ हुनकर मित्रभेद आ कूटनीतिक नकल करै छथि, हुनकर अथक निस्व हुनका लेल असाध्य रहैत अछि। एहिलेल कृष्ण हिन्दुस्तानमे कर्मक देवता नञि बनि सकला। कृष्ण कर्म रामसँ बेसी केलनि अछि। कतेक सन्धि आ विग्रह आ प्रदेश सभक आपसी सम्बन्धक ताग हुनका पलटऽ पड़ैत छनि। ओ बड़ बेसी मेहनती आ पराक्रमी छला। एकर ई माने नञि जे प्रदेश सभक अपासी सम्बन्धमे कृष्ण नीति एखन सेहो चलाओल जाय। कृष्ण जे पूब-पश्चिमक एकता दऽ गेला। एकरा संग-संग हुनकर नीतिक औचित्य सेहो खत्म भऽ गेल। बचि गेल कृष्णक मन आर हुनकर वाणी। आओर बचि गेल रामक कर्म। एखन धरि हिन्दुस्तानी एहि दुनू केर समन्वय नञि कऽ पेला अछि। करी तँ रामक कर्ममे सेहो परिवर्तन आयल। राम कानै छथि, एतेक जे मयार्दा भंग होइत अछि। कृष्ण कहियो नञि कानै छथि। आँखि अवश्य नोराइत छनि हुनकर, किछु अवसरपर, जेना जखन कोनो सखी वा नारीकेँ दुष्ट लोक नाङट करबाक प्रयास करैत अछि। 
केहन मन आ वाणी छल ओहि कृष्णक। एखनो तखुनका गोपी लोकनि आ जे चाहै ओ, हुनकर वाणी आ मुरलीक तान सुनि कऽ रस विभोर भऽ सकै छथि। आओर अपन चमड़ाक बाहर उछलि सकै छथि। संगे कर्म-संगक त्याग, सुख-दु:ख, शीत-उष्ण, जय-अजयक समत्व केर योग आ सभ भूतमे एक अव्यय भावक सुरीला दर्शन, हुनकर वाणीसँ सुनि सकै छथि। संसारमे एक मात्र कृष्ण भेला जे दर्शनकेँ गीत बनेलनि। 

वाणीक देवी द्रौपदीसँ कृष्णक सम्बन्ध केहन छल। की सखा सखीक सम्बन्ध अपने एक अन्तिम सीढ़ी अछि आ असीम मैदान अछि, जेकरा बाद आर कोनो सीढ़ी आ मैदानक आवश्यकता नञि? कृष्ण छलिया अवश्य छला, ओना कृष्णासँ ओ कहियो छल नञि केलनि। सम्भवत: एहिलेल ओ वचनबद्ध छला। जखन कखनो कृष्णा हुनका याद केलनि, ओ एला। स्त्री-पुरुषक किसलय-मित्रताकेँ, आइ काल्हिक वैज्ञानिक, अवरुद्ध रसिकताक नामसँ स्मोबोधित करै छथि। ई अवरोध सामाजिक वा मन केर आन्तरिक कारणसँ भऽ सकैत अछि। पाँचो पाण्डव कृष्णक भाइ छला आ द्रौपदी कुरु-पाञ्चाल सन्धिक आधार-शिला छल। अवरोधक सभ कारण उपस्थित छल। तहियो भऽ सकैत अछि जे कृष्णकेँ अपन चित्त प्रवृत्ति सभक कहियो निरोध नञि करऽ पड़ल होनि। ई हुनका लेल आसान आ अन्तिम सम्बन्ध छल, ठीक ओतेक आसान आ रसमय, जेना राधासँ प्रेमक सम्बन्ध छलनि। जँ ई सय अछि तँ कृष्ण-कृष्णाक सखा-सखी सम्बन्धक विवरण विश्व भरिमे विश्वासक होबक चाही आ विस्तृतसँ, जाहिसँ स्त्री-पुरुष सम्बन्धक एक गोट नव कोलखी खूजि सकय। जँ राधाक छटा कृष्णपर सदिखन छायल रहैत छनि, तँ कृष्णक घटा सेहो हुनकापर छायल रहैत अछि। जँ राधाक छटा निराला अछि, तँ कृष्णक घटा सेहो। छटामे तुष्टिप्रदान रस अछि, घटामे उत्कण्ठा-प्रधान कर्तव्य।

राधा-रसतँ निराला अछिये। राधा-कृष्ण छथि, राधा कृष्णक स्त्री रूप आ कृष्ण राधाक पुरुष रूप। भारतीय साहित्यमे राधाक उल्लेख बहुत पुरान नञि अछि, कारण सभसँ पहिल बेर पुराणमे आबैत अछि 'अनुराधा' केर नामसँ। नामे कहैत अछि जे प्रेम आ भक्तिक ओ स्वरूप, जे आत्मविभोर अछि, जाहिसँ सीमा बान्हऽ वला चमड़ा नञि रहि जाइत अछि। आधुनिक समयमे मीरा सेहो आत्मविभोरताकेँ पेबाक प्रयास केलनि। बहुत दूर धरि गेली मीरा, सम्भवत: ओतेक दूर गेली जतेक कोनो सजीव देह लेल सम्भव हो। तहियो, मीराक आत्मविभोरतामे किछु गर्मी छल। कृष्णकेँ तँ के के जरा कसैत अछि, सुलगा सेहो नञि सकै छथि, ओना मीरा लग बैसबामे हुनका अवश्य घाम चूबैन, कमसँ कम गर्मी तँ लागय। राधा नञि गरम छथि आ नञि ठण्ड, राधा पूर्ण छथि। मीराक किस्सा एक आर अर्थमे बेजोड़ अछि। पद्मिनी मीराक पुरखिन छली। दुनू चित्तौड़क नायिका छथि। लगभग ढ़ाइ सय बरखक अन्तर अछि। के पैघ अछि, ओ पद्मिनी जे जौहर करै छथि वा ओ मीरा जेकरा कृष्ण लेल नाचबासँ क्यौ मना नञि कऽ सकल। पुरान देशक यैह प्रतिभा अछि। पैघ जमाना देखने अछि ई हिन्दुस्तान। की पद्मिनी थकै त-थकैत सैकड़ो बरखमे मीरा बनि जाइ छथि? वा मात्र मीरा पद्मिनीक श्रेष्ठ स्वरूप अछि? अथवा जखन प्रताप आबै छथि, तखन मीरा फेरो पद्मिनी बनैत अछि। हे त्रिकालदर्शी कृष्ण! की अहाँ मात्र एक गोटमे मीरा आ पद्मिनी नञि बना सकै छी?

राधा-रसक पूराक पूरा मजा तँ ब्रज-रजमे भेटैत अछि। हम सरयू आ  अयोध्याक बेटा छी। ब्रज-रसमे सम्भवत: कहियो ने ओंघरा सकब। ओना मनसँ तँ तँ ओंघरा चुकल छी। श्री राधाक नगरी बरसाने लग एक राति रहि हम राधानारीक गीत सुनने छी।

कृष्ण पैघ छलिया छला। कहियो श्यामा मालिन बनि, राधाकेँ फूल बेचऽ आबैत छला। कहियो वैद्य बनि आबैत छल, प्रमाण देबा लेल जे राधा एखन सासुर जाय लायक नञि छथि। कहियो राधा प्यारीकेँ गोदना गोदेबाक न्योता देबा लेल गोदनहारिन बनि आबैत छला। कहियो वृन्दाक सांड़ी पहिर आबैत छला आ जखन राधा हुनकासँ एक बेर चिपकि कऽ फराक होइत छली, सम्भवत: झुंझलाकऽ, सम्भवत: इतराकऽ, तहियो कृष्ण मुरारीकेँ छट्ठीक दूध याद आबैत छल, बैस कऽ समझाउ राधारानीकेँ जे वृन्दासँ आँखि नञि लड़ाबी। 

हमरा जानैत नारी जँ नर केर बराबर भेल अछि, तँ मात्र ब्रजमे आ कान्हाक लग। सम्भवत: एहिलेल आइयो हिन्दुस्तानक औरत वृन्दावनमे जमुनाक कात एक गाछमे रूमालक समान चुनड़ी बान्हबाक अभिनय करै छथि। के औरत नञि चाहत कन्हैयासँ अपनी चुनड़ी हरायब, कारण के औरत नञि जानैत अछि जे दुष्टजन द्वारा चीरहरणक समय  मात्र कृष्ण हुनक चुनड़ी घूरायत। सम्भवत: जे औरत गाछमे चीर बान्है छथि, हुनका ई सभ कहबापर ओ लजेती, ओना हुनक पुत्र, पुण्य आदिक कामनाक पाछा सेहो कोन कोन सुषुप्त याद अछि। 

ब्रजक मुरली लोककेँ एतेक विह्रल कोना बना दैत अछि जे ओ कुरुक्षेत्रक कृष्णकेँ बिसरि जेता आ फेर हमरा लगैत अछि जे अयोध्याक राम मणिपुरसँ द्वारिकाक कृष्णकेँ कहियो बिसरऽ नञि देत। जतऽ हम चीर बान्हबाक अभिनय देखलौ ओकरे नीचा वृन्दावनक गन्दा पानिक नाला बहैत देखलौ, जमुनासँ मिलैत अछि आ राधारानीक बरसाने केर रंगीली गलीमे पैर बचा-बचा कऽ राखऽ पड़ैत अछि जे कतौ कोनो गन्दगीमे नञि सना जाय। ई वैह रंगीली गली अछि, जतऽर्स बरसाने केर औरत फगुआमे लाठी लऽ कऽ निकलै छथि आ  जिनका नुक्कड़पर नन्द गाममे मर्द मोट साफा बान्हि आ पैघ ढालसँ अपन रक्षा करैत अछि। राधारानी जँ आबि जाय, तँ ओ एहि नाला आ गन्दगी सभकेँ समाप्त कऽ, बरसाने केर औरत सभक हाथमे इत्र, गुलाल आ कनी गमकऽ वला रंगक पिचकारी थमेती आ नन्द गामक मर्दकेँ फगुआ खेलबा लेल न्योता देती। ब्रजमे  महक आर नञि अछि, कुञ्ज नञि अछि, मात्र करील रहि गेल अछि। शीतलता खत्म अछि। बरसानेमे हम राधारानीक अहीरिन लोकनिकेँ बहुत ताकलौ। पाँच-दस घर होयत। ओतऽ बनियाइन आ ब्राह्मणि लोकनिक जुटाव भऽ गेल अछि। जखन कोनो जातिमे कोनो पैघ आदमी वा औरत भेल, तीर्थ-स्थान बनल आ मन्दिर आ दुकान देखैत देखैत आयल, तखन एहि द्विज नारी सभक चेहरा सेहो म्लान छल, गरीब, कृश आ रोगी। किछु गोटे हमरा मूर्खतावश द्विज-शत्रु समझऽ लगला अछि। हम तँ द्विज-मित्र छी, एहि लेल देख रहल छी जे राधारानीक गोपी सभकेँ, मल्लाहिन आ चमाइनकेँ हटा कऽ द्विजनारी सभ अपन कान्ति हेरा देलक अछि। मिलाउ ब्रजक रजमे पुष्पक महक, दू गोट हिन्दुस्तानकेँ कृष्णक बहुरूपी एकता, हटाउ रामक एकरूपी द्विज-शूद्र धर्म, ओना चली रामक मयार्दा वला बाटपर, सच आ नियमक पालन कऽ। 

सरयू आ गंगा कर्तव्यक धार अछि। कर्तव्य कहियो कहियो कठोर भऽ अन्यायी भऽ जाइत अछि आ घाटा कऽ बैसैत अछि। जमुना आ चम्बल, केन तथा दोसर जमुना-मुखी धार रसक धार अछि। रसमे मिलन अछि, कलह मिटबैत अछि। ओना आलस्य सेहो अछि, जे गिरावटमे मनुष्यकेँ निकम्मा बना दैत अछि। एहि रसभरी इतराइत जमुनाक कात कृष्ण अपन लीला केलनि, मुदा कुरु-धुरीक के न्द्र ओ गंगाक काते बसेलनि। बादमे हिन्दुस्तानक किछु राज्य जमुनाक कात बनल आ एक एखनो चलि रहल अछि। जमुना, की अहाँ कहियो बदलब, आखिर गंगामे जा अहाँ खसै छभ्। की कहियो एहि भूमिपर रसमय कर्तव्यक उदय होयत। कृष्ण! के  जानै अहाँ छलौ वा नञि। कोना अहाँ राधा-लीलाकेँ कुरु-लीलासँ निम्हालौ। लोक कहैत अछि जे युवा कृष्णक प्रौढ़ कृष्णसँ कोनो सम्बन्ध नञि। कहै छथि जे महाभारतमे राधाक नाम धरि अछि। बात एतेक सच नञि, कारण शिशुपाल तामशमे कृष्णक पुरान बात साधारण तौरपर बिना नामकरणक बतेने अछि। सभ्य लोक एहन उल्लेख असमय नञि कयल करैत, जे समझै छथि ओ, आ जे नञि समझै छथि सेहो। महाभारतमे राधाक उल्लेख कोना भऽ सकैत अछि। राधाक वर्णन तँ ओतहि होयत जतऽ तीन लोकक स्वामी हुनकर दास अछि। रासक कृष्ण आ गीताक कृष्ण एक छथि। नञि जानि हजारो बरखसँ एखन धरि पलड़ा एमहर वा ओमहर कियक भारी भऽ जाइत अछि? बताउ कृष्ण!

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