धन्य-धन्य ओ मिथिला महान !
जय मिथिला जय मैथलि
धन्य-धन्य ओ मिथिला महान, हम सब छी जकर संतान ।
विश्व करैछ जकर गुणगान, धन्य-धन्य ओ मिथिला महान ।।
रामक सासुर छैन जाहि ठाम, कपिल, कणाद, गौतमक स्थान ।
सुर, नर, मुनि करैछ जकर यशगान, धन्य-धन्य ओ मिथिला महान ।।
सनातन धर्मक जखन भ गेल लोप, नास्तिक सभक सभतरि पसरि गेल कोप ।
तखनहु मिथिला में छल धर्मक इजोत, सामवेदक मंत्रोच्चार सॅ ओतप्रोत ।।
आदि शंकराचार्यक अछि इ प्रसंग, शास्त्रार्थ केला मंडन ओ भारतीक संग ।
वैदिक धर्मक पुन: भेल विस्तार, विश्व देखलक मिथिलाक संस्कार ।।
मैथिल होएबा पर अछि हमरा अभिमान, अतिथि सत्कार अछि जकर धर्मप्राण ।
सुर, नर, मुनि करैछ जकर यशगान, धन्य-धन्य ओ मिथिला महान ।।
धन्य-धन्य ओ मिथिला महान ।।।
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