हमर इच्छा
सात जन्म हम लि बिधाता त मिथिले माय के कोरा मे
चाहे ओ मनुख मे हुवे या फिर किरा मकोरा मे ।
बैढ क हम फुली फली जेना तुल्सी फुलए चौरा मे
चान्द के सितल समेट् क राखी अपने मिथिलाक झोरा मे।
साँझ मे जखन थाकल आबी बैसी अपन असोरा मे
नेना भुट्का दौर क आबै बैसेला हमरा कोरा मे ।
सब दिन हम पूजा करी आसिन मास दसेहरा मे
पान मखान् हम प्रेम के बाटि पुर्णिमाक कोजेग्रा मे ।
भोजन हाम्रा सब्दिन भेटा अपने मिथिलाक बारी के
चाहे तरल तिल्कोर होइ चाहे साग गेन्हारी के ।
अन्त क्षण ज दिह बिधाता अपने मिथिलाक आङन मे
आमक गाछी आमक लकरी सरर हुवा जलावन मे ।
रचना:
धिरेन्द्र झा
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें