Ads by: Mithila Vaani

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

गजल


बन्न घरमें भोरमें कानै किए छी

आंखिक नोर सँ सभ सानै किए छी

बुझै छी जनु लगै हमरा सँ भय
प्रिय आन बुझि मोन आनै किए छी

प्रथम भेंट क' अछि आजुक भोर
डॉर होय अहाँ क इ ठानै किए छी

संगे-संग गमायेब सुख आ दुःख
तहन गप अहाँ नै मानै किए छी

लाजे मरै छैक ''रूबी'' यौ प्रियबर
रहस्य एतबो टा नै जानै किए छी
सरल वार्णिक बहर वर्ण -१३
रूबी झा

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

  © Mithila Vaani. All rights reserved. Blog Design By: Chandan jha "Radhe" Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP