Ads by: Mithila Vaani

रविवार, 29 जुलाई 2012

बाल गजल


प्रस्तुत कऽ रहल छी हम अपन पहिल बाल गजल। ई गजल एकटा बाल मजदूरक पीडा पर आधारित अछि। अहाँ सभक प्रतिक्रियाक आकांक्षी छी।
बाल गजल
करबा नै मजूरी माँ पढबै हमहूँ
नै रहबै कतौ पाछू बढबै हमहूँ

हम छी छोट सपना पैघ हमर छै गे
कीनब कार जकरा पर चढबै हमहूँ

टूटल छै मडैया आस मुदा ई छै
सोना अपन छत कहियो मढबै हमहूँ

चारू कात पसरल दुखक अन्हरिया छै
कटतै ई अन्हरिया आ बढबै हमहूँ

पढि-लिख खूब सब तरि नाम अपन करबै
जिनगी "ओम" सुन्नर ई गढबै हमहूँ
दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ
(मफऊलातु-मफाऊलातु-मफाईलुन)- एक बेर प्रत्येक पाँति मे

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

  © Mithila Vaani. All rights reserved. Blog Design By: Chandan jha "Radhe" Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP