आंगन में मिट पके या - अजय ठाकुर (मोहन जी)
जिनका मुह में लड्डू रहेत अछी /
हुनके मुह पर माक्षि पहेत अछी //
हुनका घर के तरप कुत्ता जय या /
जिनका घर आंगन में मिट पके या //
दुध / पैन स या मय स भरू /
जिंदगी त एक ग्लिस होया //
मूलतः सब वस्त्र हिन् होया /
सभ्यता त चद्दर होय //
यात्रा तखन तक होय अछी /
जखन तक आहा तलाश करे छी //
रचनाकार :- अजय ठाकुर (मोहन जी)
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