बसंत अहाँ किया आबय छी
वसंत अहाँ फेर आबि गेलोंउ?
हमरा हमर मज़बूरी मोन पड़ाबै लेल
तितली जे कहियो उडैत रहे 
ओ गामक मेड पर 
जतय गहुमक खेतक बीच 
सरसों क पिरका फुल पर 
ओ बैसि जाएत रहे, आर हम 
चुप्पे चाप पाछां स जाए क 
धैर लैत रही हुनका अनझक्के में.
नै बिसरब हम ओ सांझ 
जखन आमक नबका बौरक महक
भैर दैत रहे हमर नाक
आ हवा म गुन्जैत
ओ फगुआ क विरह फाग 
हे बसंत अहाँ फेर आबि गेलोंउ 
ओही दर्द क मोन पड़ाबै लेल 
किया आबय छि अहाँ जखन अहाँ क बुझल अछि 
की जिनगीक भागम भाग स हम दूर जा चुकल छी 
आब रोटीक लड़ाई म गहुम मोन नै पडैत अछि 
सरसों क फुल खाली अखबार म देखायत अछि 
आ तितली त बुझु टका बनि गेल 
कतनो किछु क लिया हाथ नै आयत 
फगुआ क फाग "कोलावारी" क कलह बनि गेल 
हे बसंत अहाँ चुपचाप किया नै चलि जाएत छी
किया एते सताबै छी 
बसंत अहाँ किया आबय छी
 
 
 
 
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