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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

कविता-हम एहन किएक छी ?

हम एहन किएक छी ?
माटि-पानि छोरि क
जाति-पाति पर लडैत किएक छी ?
हम एहन किएक छी ?

आएल कियो हाँकि लेलक
जाति-पाति पर बँटि देलक
ऊँच-निच कए झगरा में
अपन विकास छोरि देलौंह
हम एहन किएक छी ?

कए छी अगरा
कए छी पछरा
सब मिथिलाक संतान छी
फोरि कपार देखु त
सबहक सोनित एके छी
हम एहन किएक छी ?

मुठ्ठी भरि लोक
अपन स्वारथक कारणे
अपना सब कए
तोर रहल अछि
मोर रहल अछि
जाति पाति में उलझा कय
मिथिलाक विकास रोकि रहल अछि

धरति कए कोनो जाति है छै ?
मायक कोनो जाति है छै ?
त हम सब सन्तान
बटेलौंह कोना ?
हम एहन किएक छी ?

आबो हम सँकल्प करि
जाति-पाति पर नहि लरि
अपन मिथला हमहि संभारब
सप्पत मात्र एतबे करि
हम एहन किएक छी ?
*********जगदानंद झा 'मनु'

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