Ads by: Mithila Vaani

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

गजल


अहाँ केँ हमर इ करेज बिसरत कोना।
छवि बसल मोन मे आब झहरत कोना।

हवा सेहो सुगंधक लेल तऽ जरूरी,
बिन हवा फूलक सुगंध पसरत कोना।

अहीं टा नै, इ दुनिया छै पियासल यौ,
बिन बजेने इ चान घर उतरत कोना।

जवानी होइ ए नाव बिन पतवारक,
कहू पतवारक बिना इ सम्हरत कोना।

हमर मोन ककरो लेल पजरै नै ए,
बनल छै पाथर करेज पजरत कोना।
मफाईलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) ३ बेर प्रत्येक पाँति मे।

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

  © Mithila Vaani. All rights reserved. Blog Design By: Chandan jha "Radhe" Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP