गजल
मय मयखाना, साकी प्याला, केओ हमरा सन पिबै बाला
टुकडी टुकडी भेल जीबन के, हमरा सन जीबै बाला
चन्द्रमुखी आम्रपाली हटलै, पाकिट मे जे पाई घटल
पारो के अर्पण ने हम देखलौं, नित दर्पण देखै बाला
निशा छटल, निसाँ टुटल, पयलौ घर नै कोठरी छल
पारो छल नव राह पकडने, हारलौ हम जितै बाला
अर्थ'क अर्थ नै बुझलौं ,अनर्थ हेतै कहाँ बुझल छल
सगरो जीनगी बीक रहल अछि, मारी करै कीनै बाला
छद्म छुअन स हर्षित तन आत्मा'क स्पर्श बुझल'क नै
टोकिएै त हमही बौरायल कहाँ केओ अछि मानै बाला
रंग रभस के भरम मे, छै जे जुआनी उजडि रहल
जीबन रंग लूटि रहल, नित नव रंग'क मधुशाला
रचना:-
अनिल मल्लिक
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें