Ads by: Mithila Vaani

रविवार, 8 अप्रैल 2012

गजल.

सिहकल जखन पुरबा बसात अहाँ अयलहु किये नहि
मोन उपवन गमकल सूवास अहाँ अयलहु किये नहि

चिहुकि उठि जगलहु आध-पहर राति सपन हेरायल
आँखि खुजितहि टुटिगेल भरोस अहाँ अयलहु किये नहि

चेतना हमर प्रियतम फेर किएक देलहु अहाँ बौराय
बेकल उताहुल भेलहु हताश अहाँ अयलहु किये नहि

नम्र-निवेदन हम करइत छी अहाँ सँ प्रियतम हमर
गेलहु कतय नुकाय जगा आस अहाँ अयलहु किये नहि

भेल आतुर मोन रूबी केर निरखि-निरखि सुरत अहाँके
फागुन-चैत बित गेल मधुमास अहाँ अयलहु किये नहि

रुबी झा

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

  © Mithila Vaani. All rights reserved. Blog Design By: Chandan jha "Radhe" Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP