Ads by: Mithila Vaani

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

---गजल---

प्रियवर सँ आखिक नोर नुकौलो ने भेल हमरा
किछ कहलो ने गेल किछु बतौलो ने भेल हमरा

मुखक आभा देखि ओ बुझि गेला अपने सभकिछु

गाल परहक नोर धार मेटौलो ने भेल हमरा

जाइक बेर मनमीत सँ तऽ किछु कहलो ने भेल

आँचर तर अपन मुख नुकौलो ने भेल हमरा

हुनका यदि रोकितहुँ अटकि जैतथि ओ जरूर
बताहि भेल हम छी हाथ बढौलो ने भेल हमरा

प्रेमक डोरी सँ बान्हि आँचर नुका हम रखितहुँ
जौ छाती सटा के रोकितहुँ सटौलो ने भेल हमरा.
------------------वर्ण-१९----------------
रुबी झा

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

  © Mithila Vaani. All rights reserved. Blog Design By: Chandan jha "Radhe" Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP