Ads by: Mithila Vaani

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

गजल


भीख नै हमरा अपन अधिकार चाही
हमर कर्मसँ जे बनै उपहार चाही

कान खोलिकऽ राखने रहऽ पडत हरदम
सुनि सकै जे सभक से सरकार चाही

प्रेम टा छै सभक औषध एहिठाँ यौ
दुखक मारल मोनकेँ उपचार चाही

सभ सिहन्ता एखनो पूरल कहाँ छै
हमर मोनक बाटकेँ मनुहार चाही

"ओम" करतै हुनकरे दरबार सदिखन
नेह-फूलसँ सजल ओ दरबार चाही
बहरे-रमल
दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ (फाइलातुन) - प्रत्येक पाँतिमे तीन बेर

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

  © Mithila Vaani. All rights reserved. Blog Design By: Chandan jha "Radhe" Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP