Ads by: Mithila Vaani

सोमवार, 2 जनवरी 2012

गजल
हम तं कागज कलमक संयोग करबैत छी
कागज पैर शब्दक गर्भधारण करबैत छी 

कागज सियाहिक स्पर्श ले मुह बयेने रहैय
हम तं कागजक भाव बुझी किछु लिखदैत छी 

कागज जखन प्रसव पीड़ा सं छटपटाएत
तखन हम मोनक भाव सृजना करबैत छी 

मोनक उद्द्वेग कोरा कागज पैर उतरैय
लोग कहैय अहां बड निक रचना रचैत छी 

हम तं स्वर लय मात्र छन्द इ किछु नहीं जानी
लोग कहैय अहां बड निक गीत लिखैत छी 

हम तं वर्ण रदीफ़ काफिया किछु नै जनैत छी
लोग कहैय अहां बड निक गजल लिखैत छी 
.........................वर्ण:-१८........................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

  © Mithila Vaani. All rights reserved. Blog Design By: Chandan jha "Radhe" Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP