गजल-जगदानंद झा 'मनु'
निर्धन जानि अहुँ बिसरलौन्ह माँ
कोन अपराध हम कएलौन्ह माँ
निर्धन छी हम हमर नै गलती
इ निक सनेस अहीं दएलौन्ह माँ
मुल्यक तराजू में नै हमरा तौलु
ममता कए प्यासल रहलौन्ह माँ
दर-दर भटकैत खाक छनै छी
आँचर अहाँक नहि पएलौन्ह माँ
मनु के नै अपन स्नेह देलौं किछु
चरणों सँ आब दूर कएलौन्ह माँ
***जगदानंद झा 'मनु'
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें