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रविवार, 29 जनवरी 2012

जातिवादिता के बढावा कोना आ के दऽ रहल अछि?


मंथन योग्य विषय बुझा रहल अछि - उपरोक्त प्रश्न! कारण जे अक्सरहाँ सुनैक लेल भेटत जे ब्राह्मणवादिता के प्रदर्शन तऽ अगड़ा-पिछड़ा तऽ आरक्षण - छुआछुत, अन्तर्जातिय विवाह, समावेशी प्रशासन एवं सरकारी तंत्र - आ पता नहि जातिय पहचान सँ जुड़ल अनेको विषय संग एहेन कोनो दिन नहि जहिया पाला नहि पड़ैत हो। ओ कोनो समाज होइक - हम अपन व्यक्तिगत अनुभवके आधार पर ४ गो राष्ट्रके विभिन्न समाजमें वस्तुगत स्थितिके अध्ययनके आधारपर कहि सकैत छी जे जातिवादिता के प्रकोप हर जगह भेटल। कतहु कोन रूप में तऽ कतहु कोन रूपमें। मिथिलामें सभसँ बेसी आ परिपक्व अनुभव भेटल अछि आ जखन आरो गहराई में अध्ययन के लऽ जाइत छी तखन बुझयमें अबैछ जे एहि जातिवादिताके मूल कारण कथी छैक। नेपाल में मधेशके मिश्रित जातिसंग आरो बहुत तरहके अनुभव समेटय लेल आइयो भेटि रहल अछि।

लोक में अन्तर्मन अन्तःकरणके कार्य-प्रणालीके आधारपर तय कैल जाइछ जे हम के - हमर असल पहचान कि - हमर जाइत कोन! वर्णाश्रम धर्म के जे व्यवस्था वास्तवमें सनातन धर्ममें चर्चा कैल गेल छैक, तेकर शुद्ध स्वरूप में परिवर्तन आबयके चर्चा सेहो धर्मशास्त्रमें कैल गेल छैक। एतेक तक कहि देल गेल छैक जे कलियुगमें व्यवस्था केहेन रहत। इ सभ कोनो आइ-काल्हिके नेता वा विधायिका वा न्यायपालिका वा प्रशासिका के लिखल बात नहि - आजुक कोनो नाटककार - कलाकार - कवि विद्वान् के मत नहि बल्कि पूर्वहि सऽ प्रख्यात वेद - पुराण - श्रुति आ ताहिपर आधारित अनेको उपशास्त्र, काव्य, आदिमें उल्लेख कैल गेल छैक। अपन आ दोसर - एहि अनुभवके हिन्दू दर्शनमें ‘माया’ के प्रभाव कहल गेल छैक। समत्त्व दृष्टि आ सभमें केवल एक परमात्माके असल दर्शन करब असल आध्यात्म चिन्तन के बात अनेको बेर कहल गेल छैक। तखन लोक यदि वर्णाश्रम धर्ममें अपन पहचान उच्च वा निच श्रेणीमें करैत ठमैक जाय तऽ एहिमें धर्मशास्त्रके वा वर्णाश्रम धर्मके कोन दोष? :)

आजुक समाजमें अनेको संघ आ संस्थाके निर्माण जातिय आधार पर कैल गेल छैक। अबैत-जाइत फेशबुक पर सेहो नजरि अबैछ जे लोक में जातियताके खुमारी कतेक प्रवेश केने छैक। मिथिलाके नाम पर जु्ड़ब तऽ एक हद तक मातृभूमि आ क्षेत्रवादके आधारपर जातीयता के निर्धारण करैछ, लेकिन मिथिलाके अन्दर प्रवेश कयलापर तमाशा देख लियौक। वैश्य समाज, केवट समाज, यादव समाज, कुर्मी समाज, कायस्थ समाज, ... सभ अपन-अपन जातिगत कल्याणके नामपर अपन समूह के निर्माण करैछ। जखन कि एक समय समाजमें धर्मके शुद्ध संस्करण रहलैक तखन तऽ ब्राह्मण समाजके लेल अलग सम्मान रहलैक आ फेर ब्राह्मण समाज अपन तीव्र बुद्धिके आ श्रेष्ठता के अवश्य दुरुपयोग कयलैथ, जेकर कारण सम्मान आ यशमें कमी आयल आ आजुक परिस्थिति एहेन बदतर अबस्था छन्हि जे इ सभ नहि तऽ अपन कोनो संस्थाके - संघके निर्माण कय सकैत छथि आ ने हिनका सभके पुरान सम्मान के तुरन्त पुनरावृत्ति संभव छैक। आ इहो बात तय छैक जे गैर सेहो ब्राह्मणे के सुनय पड़तन्हि कारण आइयो अग्र भुमिका निर्वहन के असल क्षमता हिनकहि में छन्हि। तखन आब इ सब केवल चाणक्य बनि नीति-निर्धारण के काज करैथ आ जेना चाणक्यके माता हुनका संग अपन आशंका व्यक्त केने छलखिन जे राजा बनि गेलाके बाद मायके सेवामें बेटाके ध्यान नहि लागत - ज्योतिषके कथन जे चाणक्य राजा बनताह से माय के चिन्तित कयने छलन्हि... आब मायके समाधान लेल चाणक्यके निर्णय जे हम राजा नहि बनब माय अहाँ निश्चिन्त रहू, हम कदापि अहाँके सेवा सँ विमूख नहि होयब... बस एहने निर्णय करैत ब्राह्मणकेँ आब केवल मातृसेवामें समर्पित होवय के उचित समय आबि गेल अछि। रहल बात, ओ कायस्थ समाज होइ वा कोनो अन्य जातिगत समाज - अपन कल्याण हेतु सोच बनाबयमें अग्रसर रहय में कदापि नकारात्मकता वा जातियताके प्रदर्शन नहि... लेकिन अनावश्यक पूर्वाग्रही बनब आ अन्य जातिपर अपन स्वार्थविरुद्ध ठाड़्ह रहब देखनाइ जरुर गलत बात होइछ। एहिसँ समाजिक सौहार्द्रता बनय के जगह आरो आपसी विश्वासमें कमी अबैछ। तखन पैघ-पैघ बात करब, ब्राह्मण समाजके दोषी मानब, सभ बात लेल ब्राह्मण समाज ऊपर आँगुर उठायब अनर्थ होयबाक संकेत दऽ रहल अछि। विप्रमें एकता नहि होयब प्राकृतिक स्वभाव होइछ। तखन सभकेँ ब्राह्मण सँ एतेक भय होयबाक कारण कि? हमरा बुझने जातियताके प्रदर्शन में केवल कल्याणकारी योजना आ सामुदायिक विकास हेतु प्रयास के चर्चा करब जरुरी अछि।


हरिः हरः-
द्वारा:- प्रवीन नारायण चौधरी


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