Ads by: Mithila Vaani

रविवार, 10 जून 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट



गजल

अप्पन जीनगी के अप्पने सजाएल करू
अप्पन स्वर्णिम भविष्य रचाएल करू

राह ककर तकैत छि इ व्यस्त जमाना में
अप्पन राह के कांट खुद हटाएल करू

बोझ कतेक बनल रहब माए बाप कें
कर्मशील बनी कय दुःख भगाएल करू

असफलता सं लडै ले अहाँ हिमत धरु
कर्मक्षेत्र सं मुह नुका नै पडाएल करू

हार मानु नै जीनगी सं जाधैर छै जीनगी
जीत लेल अहाँ हिमत के बढ़ाएल करू

चलल करू डगर सदिखन एसगर
ककरो सहारा कें सीढ़ी नै बनाएल करू

उलझन बहुत भेटत जीवन पथ में
पथिक बनी उलझन सोझराएल करू

हेतए कालरात्रिक अस्त नव-प्रभात संग
अमावस में आशा के दीप जराएल करू

------------वर्ण -१६------------
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

  © Mithila Vaani. All rights reserved. Blog Design By: Chandan jha "Radhe" Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP