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गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

हास्य कथा - अजय ठाकुर (मोहन जी)

     प्रभाकर चौधरी डॉक्दरी के परीक्षा उत्रिन्न भेला के बाद ओ अपन दोस्त सब के खुब  भोजन करोलैथ ! और ओहे संगे एक टा मुर्गा खुब तेल में लाल कैल और एक बोतल देशी दारू सेहो लक भाल्पट्टी गाँव के मुखिया जी लम पहुचला ! प्रभाकर चौधरी मुखिया जिक आगा हाथ जोरी क ठाड़ भ गेला और बजला मालीक  इ हमरा तरप एक छोट-छीन भेट स्वीकार करियों !
मुखिया जी वाह बहुत नीक  सुनलो हन आहा डॉक्दरी के परीक्षा उत्रिन्न भेलो हन, प्रभाकर चौधरी जी मालीक,  मुखिया जी अपन नोकर के आवाज़ देलखिन और नोकर एलेन और ओ समान ल जै लगलैन, मुखिया जी बुझ्लैथ इ नोकर बहुत चलाक या एकरा कोन तरहे समझैल जे ! मुखिया जी बजला रओ ओही कपरा में बंद एक टा चिरैई छै और ओ बोतल में जहर  छै, ताहि लक् तु रस्ता में ओ कपरा नहीं खोलिहे बुझलही, नोकर जी मालीक हम आहा के बात बुझी गेलो !  नोकर समान लक् आगा बढल और एक कात कोंटा में चुपचाप अपन सबटा मुर्गा खा  लेलक और दारू सेहो पीबी लेलेक और मचान पर जा क सूती रहल !
 मुखिया जी दाँत मजेत, सुंदर सागर पोखेर स नेहेने आबी गेला और अपन कनियाँ स बजला हे यै सुनैत छी हमरा सकरी बजार जै के अछी ताहि दुआरे आहा हमरा किछु  जलपान द दिय ! कनियाँ बजलेंन अखन कनी समय लगत कने रुकी जउ !
मुखिया जी अच्छा ओ छोरु नोकर जे देलक से द दिय ओहे काफी या जलपान जोकरक ! कनियाँ बजलेंन नोकर हमरा कहा किछु देलक हन ओ जे एक भोर गेल से अखन तक  नजरीओ कहा परल या, इ सुनी क मुखिया जिक तामस माथ और नोकर के ताकअ लगला,  ओ देखे छथि सीधी के निचा में सुतल छल मुखिया जी एक लात मारी क उठेला और पुछलखिन त नोकर बजलेंन यऊ मालीक हम लक् आबी रहल छलो त रस्ता में एक  आँधी आयल और ओ कपरा उरी गेल जाही में स ओ चिरैई उरी गेल ताहि के डरे हम  ओ जहर पी लेलो और हम सूती क मौत के इंतज़ार क रहल छी !  

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