गज़ल - अजय ठाकुर (मोहन जी)
| ओष के अन्हरियॉ में भॅ गेल मुलाकॉत बुचियाँसँ | 
| नॅजॅर मिलल तॅ लागल सबटा गॅप भॅ गेल हुनकासँ | 
| हुनका आँखी में छल एहन सुरमा कि हम कि कहू | 
| हमर पुरा देह के रोंई क लेलक दिल्लगी हुनकासँ | 
| वस्त्र छल किछु एहन ऊपर लिपिस्टिक के एहसास | 
| आखिर धौला कुआं में क लेलो छेर-छार हुनकासँ | 
| गाबैऽ लगलैन् हुनकर चुप्पी किछु सुन्दर गज़ल | 
| समाँरल नै जै छलैन "मोहन जी" ख्याल हुनकासँ | 
 
 
 
 
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