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मंगलवार, 22 मार्च 2011

बीतल माघ फागुन आयल

बीतल माघ फागुन आयल
फूलो सय लहरैत खेत जग मागायल
जीवन में रस भर आयल
ढलैत ठंड तपते धरती
सरसों अलसी अरहर गेहू
ढो-ढो कर सब घर लयत
रोटी दोनों साझ पकते
काजल नैना पेट भर - भर खेती
फसल अछी निक खाए भरी के
खेत न आयत जायत कियो
और करू मजदूरी जा हम
ओ सब के सब घर पर रहता
नैना माय के हम कहबैन
ओ रोज खेत पर आती
साथ लगा देबैएन काजल नैना के
ताकि कुछ जायदा धन लौती
चाहथिन भगवन अगर तय
अग्न में पहुना औता
अबकी बेर बरी बेटिया
हाथ में हल्दी लगवायब
केथरी-कंबल साठ जे लेता
माघ के रैना गुरगुर करता

1 टिप्पणियाँ:

Kashi Kanta Mishra 10 जून 2011 को 9:04 am बजे  

चन्दन बाबू,
अहांक ब्लॉग देखलौं बहुत नीक लागल,सत पुछू त गजेन्द्र बाबुक इ पत्रिका में छपल कविता सबस नीक भगवान अहांके जश देथि.
हम गजहरा ग्राम जिला मधुबनी क छी. सद्यः प्रयाग रहैत छी.
श्री काशीकान्त मिश्र
acudiploma.blogspot

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