Ads by: Mithila Vaani

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

खिस्सा जीवनक - जितमोहन झा (जितू)

एक आदमीक घर एक सन्यासी पाहुन बनि कs एलखिन। रातिमे गपशपक बीच ओऽ संन्यासी आदमीसँ कहलखिन की अहाँ एहि ठाम ई छोट-मोट खेतीमे की लागल छी ! साइबेरियामे किछु दिन पहिने हम यात्रा पर रही, ओइ ठाम जमीन एतेक सस्ता अछि मानू अहाँकेँ मँगनीम्वे भेट जाएत! अहाँ अपन ई जमींन बेचि कऽ साइबेरिया चलि जाऊ ! ओहिठाम हजारो एकड़ जमीन भेट जाएत एतबे जमीनमे !

ओइ ठामक जमीन बड उपजाऊ छइ, आर ओइ ठामक लोक एतेक सीधा-साधा की करीब-करीब जमींन मुफ्तेमे दऽ देत! ओइ आदमीकेँ वासना जगलनि! ओऽ दोसरे दिन अपन सभ जमीन बेचि कऽ साइबेरिया चलि देलथि! जखन ओऽ साइबेरिया पहुँचला तँ सन्यासीक गप हुनका सत्य लगलनि! ओ ओइ ठामक आदमीसँ पुछलखिन की हम जमीन कीनय लय चाहए छी ! तँ हुनका जबाब भेटलनि, जमीन कीनए हेतु अहाँ जतेक पाइ अनलहुँ यऽ ओकरा राखि दियौ ; आर जीवनक हमरा लग खाली इएह उपाय अछि की जमीन बेचि दी! काल्हि भोर सूरज उगइ पर अहाँ निकलब आर साँझ सूरज अस्त होएबा धरि जतेक जमीन अहाँ घेर सकी घेर लेब ओऽ अहाँक भऽ जाएत!
बस चलैत रहब .........

साँझ सूरज डूबए तक जतेक जमीन अहाँ घेर सकब घेर लेब ओऽ अहाँक भऽ जाएत! बस शर्त ई अछि की जतएसँ अहाँ चलब शुरू करब साँझ सूरज डूबएसँ पहिने अहाँकेँ ओही ठाम वापस आबए पड़त !
ओऽ आदमी राति भरि सूति नञि सकलाह, सत्य पुछू तँ यदि हुनका जगह पर अहूँ रहितहुँ तँ ओहिना होइतए; एहेन क्षणमे कियो सुति सकैत छथि? ओऽ आदमी राति भरि योजना बनाबैत रहलाह की कोन तरहसँ कतेक जमीन घेरल जाय! भोर होइते पूरा गामक लोक जमा भऽ गेलखिन। जहिना सूरज उगलथि ओऽ आदमी चलब शुरू केलाह ! चलएसँ पहिने ओऽ रोटी आर पानि सभ संगमे लऽ लेलथि रहए !

रास्तामे भूख प्यास लागै पर सोचने रहथि चलिते-चलिते भोजनो कऽ लेताह! हुनकर खाली इएह सोचब रहनि की कुनू भी स्थितिमे रुकनाइ नञि छइ ! चलैत-चलैत आब ओऽ दौड़ब शुरू कऽ देलखिन सोचलथि बेसी जमीन घेर लेब ! ओऽ दौगैत रहलाह, सोचने रहथि ठीक बारह बजे घुरि जाएब , ताकि सूरज डूबैत-डूबैत वापस पहुँचि सकी ! बारह बाजि गेलनि, ओऽ मीलो चलि चुकलथि रहए, मुदा वासनाक कोनो अंत छइ ? ओऽ सोचऽ लगलाह, बारह तँ बाजि गेलए आब लौटबाक चाही ; मुदा सोझाँ बला जमीन बड़ उपजाऊ छइ कनी ओकरो घेर ली! लौटेत समय कनी तेजीँ स दौगए पड़त आर की एके दिनक तँ बात छइ तेजीसँ दौग लेब !

दौड़ए के चक्करमे ओऽ भूख-प्यास सभ बिसरए देलखिन, नञि ओऽ किछु खेलथि नञि पिलथि बस दौगेत रहलाह! रास्तामे ओऽ रोटी पानि सभ फेक देलखिन ! बस लगातार दौगैत रहलाह। एक बाजि गेलनि मुदा हुनका घुरऽ के मोन नञि होइत रहनि, किएकी आगाँक जमीन आर सुन्दर-सुन्दर रहए ! मुदा आब ओऽ लौटएक प्लान बनेलथि; दु बजे ओऽ लौटब शुरू केलन्हि! हुनका डर सताबए लगलनि की घुरि सकब की नञि ! ओऽ अपन सभ ताकति वापस दौगएमे लगा देलथि ; लेकिन तागति ख़तम होइक करीब रहनि ! सुबहेसँ दौगैत-दौगैत हाँफऽ लगलाह, ओऽ घबराबऽ लगलाह की सूरज डूबए धरि घुरि सकब की नञि ! दुबारा अपन सम्पूर्ण तागति दौगएमे लगाऽ देलथि मुदा आब सुरजो डूबए लगलाह .......!

बेशी दूरीयो आब नञि बचलनि, ग्रामीण सभकेँ ओऽ देखऽ लगलाह ! सभ गामक लोक हुनका आवाज़ पर आवाज़ दैत रहनि, सब हुनका उत्साहित करैत रहथिन आबि जाऊ ......

आबि जाऊ। ओऽ आदमी सोचए लगलथि की अजीब आदमी एहिठामक छथि ! ओऽ अपन अंतिम दम लगाऽ देलथि, एम्हर सूरज डूबैत छथि आर ओम्हर ओ दौगैत छथि! सूरज डूबैत - डूबैत पाँच - सात गज पहिने ओऽ खसि पड़लाह, तैयो दम नञि तोड़लथि। आब हुनकासँ उठल नञि जाइ छनि, किछ दूरी बाँकी देखि ओऽ घुसकैत- घुसकैत पहुँचए के प्रयास करए लगलाह! सूरजक अन्तिम किरण विलिप्त होइसँ पहिने हुनकर हाथ ओहि जमीन पर पड़ि गेलनि जतएसँ ओऽ दौगब शुरू केलथि रहए ! एक तरफ सूरज डूबल दोसर तरफ हुनकर अंतिम साँस सेहो हुनकर साथ छोड़ि देलकनि। ओऽ मरि गेलाह, बहुत मेहनति केलखिन रहए ! शायद ह्रदयक दौरा पड़ि गेलनि !

ओइ ठाम जमा गामक सब सोझ-साझ कहाबए बला ओऽ दौगएक चक्करमे भूख-प्यास सभ बिसारि देलखिन नञि ओऽ किछ खेलथि नञि पिलथि बस दौगैत रहलाह ! रास्तामे ओऽ रोटी-पानि सभ फेक देलखिन ! बस लगातार दौड़ैत रहलाह। एक बाजि गेलनि मुदा हुनका घुरबाक मोन नञि होइत रहनि, किएकी आगाँक जमीन आर सुन्दर - सुन्दर रहए ! मुदा आब ओऽ लौटेबाक प्लान बनेलथि; दु बजे ओऽ लौटब शुरू केलाह ! हुनका डर लागऽ लगलनि की घुरि सकब की नञि ! ओऽ अपन सब ताकति वापस दौड़एमे लगाऽ देलथि ; लेकिन ताकत ख़त्म हेबाक करीब रहनि ! भोरेसँ दौड़ैत - दौड़ैत हाँफऽ लगलाह, ओऽ घबराबए लगलाह की सूरज डूबए तक घुरि सकब की नञि ! दुबारा अपन सम्पूर्ण तागति दौड़ैमे लगाऽ देलथि मुदा आब सुरजो डूबए लगलाह .......!

बेशी दूरियो आब नञि बचलनि। ग्रामीण सबकेँ ओऽ देखए लगलाह ! सब गामक लोक हुनका आवाज़ पर आवाज़ दैत रहनि, सब हुनका उत्साहित करैत रहथिन आबि जाऊ ......

आबि जाऊ। ओऽ आदमी सोचए लगलथि, की अजीब आदमी एहिठामक छथि ! ओऽ अपन अंतिम दम लगाऽ देलथि। एम्हर सूरज डूबैत छथि आर ओम्हर ओ दौड़ैतत छथि ! सूरज डूबैत - डूबैत पाँच - सात गज पहिने ओऽ खसि पड़लाह तैयोदम नञि तोड़लथि। आब हुनकासँ उठल नञि जाए छनि। किछु दुरी बाँकी देख ओऽ घुसकैत-घुसकैत पहुँचए के प्रयास करए लगलाह! हँसैत-हँसैत आपसमे बात करऽ लगलाह की अइ तरहक पागल आदमी आबिते जाइत रहैत छथि !

ई कुनू नव घटना थोड़े अछि ! अक्सर लोग खबर सुनला पर आबैत रहथि आर अहिना मरैत रहथि ! ई कुनू अपवाद नञि, नियम रहए ओहि सब जमींदारक ! कियो ऐहन नञि भेलाह जे ओऽ जमीनकेँ घेरि कऽ ओकर मालिक बनलाह ! ई (लघु कथा) खाली कहानी मात्र न्ञि अछि ! ई घटना हमर, अहाँ आर सम्पूर्ण संसारक कहानी छी। हमर सभक जीवनक कहानी छी ! हुनके जेकाँ आइ हम सभ कऽ रहलहुँ-ए! हुनके जेकाँ जमीन घेरए के पाछाँ दौगि रहलहुँ-ए की कतेक जमीन घेर ली ! बारह बाजए-ए , दुफरिया होइ-ए, घुरए धरि समय भेलाक बाबजूद कनी आरक चक्करमे हम सब दौगि रहल छी ! ओकरा पाछाँ भूख प्यास सब बिसारि दए छी !

सत्य पुछू तँ हमरा अहाँक लग जीबए लेल समय नञि अछि ! हमसब चाहतक पीछाँ भागि रहलहुँ-ए! कहियो हमसब संतुष्ट नञि भऽ रहलहुँ-ए, हुनके जेकाँ हमर अहाँक सोच अछि, एहिसब चक्करमे गरीब - धनिक सब भूखे मरि रहलहुँ-ए कियो अपन जीनन जी नञि पबैत छ्थि ! जीबए हेतु कनी विश्रान्ति चाही ! जीबए लेल कनी समय चाही, जीवन मँगनी भेटए-ए बस ज्ञान भेनाय जरुरी अछि !!

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

  © Mithila Vaani. All rights reserved. Blog Design By: Chandan jha "Radhe" Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP