Ads by: Mithila Vaani

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

----------गीत-----------

आँखिमे चित्र हो मैथिलि केर,हृदयमे हो माटिक ममता
माएक सेवामे जीवन बितादी, अछि बस इएह एकता सिहन्ता!
अछि करेजाक टुकड़ी हमर ई तिरंगा
धमनीमें हिमालय आ शोणितमें गंगा
अछि हमर ऐस्वर्यक कोनो चाह नै
बाट चलिते विपत्तिक परवाह नै
हम टूटी जा सकैछी, हम झुकी ने सकब
तुफनोक भय सँ हम रुकी ने सकब
हमर संग-संग बहय उनचासो पवन
बंधी देने छि तें माथमे हम कफ़न
हम रही ने रही ई तिरंगा रहय
फेर वनबास ने होइन्ह रामक, फेर जंगलमे कानथी ने सीता
माएक सेवामे जीवन बितादी, अछि बस इएह एकटा सिहन्ता !
.कल्पनामे करोडों नदी आ नहरि
भावनामे हो लाखो समुन्द्रक लहरी
चिंतनमें उठैत अछि तेहने लहास
जेना हाथ होथि ओरने भगत आ सुभाष
माटी चमकैए माथपर जन्मभूमि केर
हमर कर्मभूमि केर, हमर धर्मभूमि केर
जतs खल -खल जनकिक आँगन हंसय
आ चकमक सावित्रिक कंगन करय
विण अपनही बजैब हम भारतीक मित्र
मरितो दम तक सजाएब हम मैथिलिक चित्र
गीतमे राखी क्रांतिक ज्वाला, सरगममें विजय केर भनिता
माएक सेवो जीवन बितादी, अछि बस इएह एकटा सिहन्ता!

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

  © Mithila Vaani. All rights reserved. Blog Design By: Chandan jha "Radhe" Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP