Ads by: Mithila Vaani

गुरुवार, 10 मई 2012

गजल
काइल्ह सौं काग क्रूरे भीतक कगनी पर
आशो निराश भ'बैसल हुनक करनी पर

करिया काग देखि सोचीक लगेये डॉर
अनहोनी नै भ' जाय कागक कथनी पर

झहरे नोर झर- झर अछि किछु फुरै नै
जा क' क्यो त' सगुन ऊचारहू कहनी पर

बरखो बितल लागेय हुनकर एनाई
बताहि छी आयेल छला धनरोपनी पर

आई जौं कागा कहब अहाँ हुनक उदेश
सोना मेरहायेब लोल अहाँ बजनी पर

सरल वार्णिक बहर वर्ण --१६
(रूबी झा )

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

  © Mithila Vaani. All rights reserved. Blog Design By: Chandan jha "Radhe" Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP