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बुधवार, 30 नवंबर 2011

रूबाई


संगी सभ सँ नीक शराब छै, देखू कहियो नै बदलै छै।
एकर निशाँक नै जवाब छै, देखू कहियो नै बदलै छै।
टूटल करेज जोडि दै ए, दुखक ताप केँ करै शीतल,
फेर कहियै कोना खराब छै, देखू कहियो नै बदलै छै।

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गजल


पता नै कोन आगि मे जरैत रहल करेज हमर।
पानि नै खाली घीए टा चाहैत रहल करेज हमर।

आनक मरल आत्मा केँ जीया केँ राखैक फेर मे फँसि,
नहुँ-नहुँ सुनगैत मरैत रहल करेज हमर।

एतेक मारि खेलक झूठ प्रेमक खेल मे जमाना सँ,
कियो देखलक नै कुहरैत रहल करेज हमर।

फेर कतौ नै कियो बम फोडि केँ अनाथ करै ककरो,
सूर्योदय होइते धडकैत रहल करेज हमर।

अपना केँ नित जीयाबै मे करेजक खून करैत छी,
खसि-खसि केँ देखू सम्हरैत रहल करेज हमर।

दुख आ सुख मे अंतर करै मे नै ओझरा केँ कखनो,
नब गीत सदिखन गबैत रहल करेज हमर।
---------------- वर्ण २० -----------------------
गुरूदेव आशीष जी केँ सादर समर्पित।

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मंगलवार, 29 नवंबर 2011

गजल


आईना सदिखन हमरा सत्ते कहै छै।
हमर रूप हमरे देखबैत रहै छै।

चलि गेलौं त' बूझलौं अहाँ हमर नै छी,
बनल विश्वासक किला एहीना ढहै छै।

धार केँ कोन मतलब भूमिक दर्द सँ,
जेम्हरे मोन भेल धार ओम्हरे बहै छै।

देखू प्रेमक अकाल नै छै एहि गाम मे,
उधारक प्रेमक बाढि सँ गाम दहै छै।

ककरो मारबाक चोट सहि लेत "ओम",
मुदा बूझै नै प्रेमक मारि कोना सहै छै।
-------------- वर्ण १५ ---------------

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रूबाई


पीनाई त' हम छोडि देब, मुदा पीनाई हमरा नै छोडै ए।
जीनाई त' हम छोडि देब, मुदा जीनाई हमरा नै छोडै ए।
होश मे आबै ले पीनाई छै बड्ड जरूरी, सुनि लिय' यौ दोस्त,
पीबि केँ हम होश मे छी, ढनमनेनाई हमरा नै छोडै ए।

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सोमवार, 28 नवंबर 2011

----------गीत----------


की हिन्दू आ की मुसलमान
एके शोणित, एके परान
मिथिलाक माटी पर रहनिहार
बस, एक बात हम मानै छि !

मंदिर पूजा, मस्जिद पूजी
प्रार्थना करी आ नमाज पढ़ी
गीता पढ़ी ली आ कुरान पढ़ी
अल्लाह कही, सियाराम कही
पोथी अनेक अछि सूत्र एक
बस, एक मन्त्र हम जाने छि
हम मिथिला केर छि, मैथिल छि!

सभकें भेटइ रोजी-रोटी
आ सभहक वाणी कें आदर
सभहक चलबा ले बाट रहय
नहीं बाट रहय एत्ते पातर
हम सभ सिनेह केर भूखल छि
हम एतबही सभदिन माँगै छि
हम मिथिला केर छि, मैथिल छि!

हम मैथिल छि,हम भारत केर
भारतक करेजा केर टुकड़ी
देसक माला केर एक फूल
ई बात ने कहियो हम बिसरी
आजादी दशक, प्राण हमर
से सभ दिन सँ हम मानै छि
हम मिथिला केर छि, मैथिल छि!

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गजल


आइ-काल्हि सदिखन हम अपने सँ बतियाईत रहै छी।
लोक कहै ए जे हम नाम अहींक बडबडाईत रहै छी।

सब बैसार मे आब चर्चा कर' लागलौं अहींक नाम केर,
सुनि केँ कहै छै सब जे निशाँ मे हम भसियाईत रहै छी।

हमरा लागै ए निशाँ आब टूटि गेल छै पीबि लेला केँ बाद,
सोझ रहै मे छलौं अपस्याँत, आब डगमगाईत रहै छी।

एते बेर नाम लेलौं अहाँक हम, कहियो त' सुनने हैब,
कोन कोनटा मे नुकेलौं अहीं केँ ताकैत बौआईत रहै छी।

एक चुरू अपने हाथ सँ आबि केँ पीया दितिये जे "ओम" केँ,
मरि जइतौं आराम सँ हम, जाहि लेल टौआईत रहै छी।
----------------------- वर्ण २२ -----------------------

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-----निर्वासन------


कत' रहब
आ कोना रहब
धरती-गगन
आकी चान पर रहब?

जंगलक झोंझ!
पहाड़क खोह!!
वसुन्धराक सोन्हि!!!
आकी समुन्द्रक लहरी में रहब?

सगरो सँ खेहारल जाएब
लुक्का सँ झरकाओल जाएब
बिढनी सँ बिन्हाओल जाएब
फत्रा में बझाओल जाएब
पिजरा में बैसाओल जाएब

पूछबै से किएक यौ भाई?
तं अहींक डीह-डाबराक
बीत भरी जमीन
हडपी लेबक लेल
वा आड़ी काटी-कटी
डसैत रहबाक लेल
दसो दिगंत में
दियाद-बाद बनिक'
ठाढ़ रहत दुर्योधन!


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शनिवार, 26 नवंबर 2011

दहेज़ मुक्त मिथिला बनाबू@प्रभात राय भट्ट

समाजक कलंक बनल अछि तिलक दहेज़ //
की जाने लोग कोना करैया एकरा परहेज //२

बेट्टा बनल अछि मालजाल बाप बनल पैकारी
दहेजक आईगमें जईर रहल अछि बहु बेट्टी बेचारी
समाजमे दहेजक रोग लागल अछि बड भारी
जौं उपचार नहीं करब तेह फ़ैल  ज्यात महामारी
समाजक कलंक बनल अछि तिलक दहेज़ //
की जाने लोग कोना करैया एकरा परहेज //२

बेट्टी जन्म लईते बाप माथ पैर हाथ धरैय
बेट्टीक ब्याह कोना करब चिंतामें डुबल रहैय
शिशु हत्या  करैया   कियो भ्रूण हत्या करैया
आईग लागल दहेजक बेट्टी जईर जईर मरैय
समाजक कलंक बनल अछि तिलक दहेज़ //
की जाने लोग कोना करैया एकरा परहेज //२

मैथिल ललना पैढ़लिख भोगेलैथ विद्द्वान
मुदा दहेज़ छै अपराध ई किनको नहीं ज्ञान
मांगी दहेज़ किये करैतछी बेट्टी बहुक अपमान
करू आदर्श ब्याह यौ ललना बढ़त अहांक शान
समाजक कलंक बनल अछि तिलक दहेज़ //
की जाने लोग कोना करैया एकरा परहेज //२

उठू जगु मैथिल ललना बढ़ू आब आगू
तिलक दहेजक विरुद्ध एक अभियान चलाबू
मैथिलि बैदेही जानकीके भ्रूण हत्या सं बचाबू
उठू जगु मैथिल दहेज़ मुक्त मिथिला बनाबू
समाजक कलंक बनल अछि तिलक दहेज़ //
की जाने लोग कोना करैया एकरा परहेज //२

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

-----कनियाँ बनाम बाबा-----

ओ अपन अथबल मायक कोढ़
आ आन्हर बापक करेज बेचिक'
बेसाह' चाहैत अछि
सनकल कनियाँक लेल
एक रत्ती मुस्की!

तें पितामहक पिताहम केर किनल
माटिक तर में गाडल
संचित पितारिया तमघैल
बेचिक' कीन' चाहैत अछि
अपन 'मैरिज डे' पर
कनियाँ के देबाक लेल उपहार
लाइफ टाइम सिम आ मोबाइल

आ ओम्हर खाट पर पड़ल
खोखिआइत वृध्द्र पितामह
ओहि तमघैल कें बन्हकी राखि
किन लेब' चाहैत छथि
एक डिब्बा च्यवनप्राश
आ' काटि लेब' चाहैत छथि
हाड़ कंपबैत
एही बेरुक जाड़!

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गजल


नित पूछै छै किछ सवाल इ जिनगी।
करै सदिखन नब ताल इ जिनगी।

कखनो बनि दुखक घुप्प अन्हरिया,
लागै मारि सँ फूलल गाल इ जिनगी।

सुखक राग कखनो सुनाबै एना केँ,
रंगल बनि कतेक लाल इ जिनगी।

कहै जिनगी होइत छै जीबैक नाम,
ककरो लेल होइ ए काल इ जिनगी।

जिनगी केँ बूझै मे "ओम" ओझरायल,
जतबा बूझलौं लागै जाल इ जिनगी।
------------- वर्ण १४ -------------

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गज़ल - अजय ठाकुर (मोहन जी)

आँखी स पिबऽ दिय एक पैग के त बात या
कैह त पायब हुनका ओ राज के त बात या

नै कोनो सिकवा गीला नै कोनो फरियाद या
हम समझै छी आहाक हालात के त बात या

हम आहाक सामने जाहिर कऽरी या नै कऽरी
जान लेब हमर की इ जजबात के त बात या

तपलीफ में छी हम जख्म अहिक नाम स
मैन लेलो हम एकरा सौगात के त बात या

आई तक "मोहन जी" हारलथि नै कोनो खेल स
जे मिलल तकदीर स ओ म्हात के त बात या

रचनाकार :- अजय ठाकुर (मोहन जी)

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------------- गजल----------

हमर आँखीमें अछि, नोर भरि गामक
हमर आँखीमें अछि , मोर भरि गामक!

हमर आँखीमें कतेक रौदी आ दाही
हमर आँखीमें अछि,चोर भरि गामक !

हमर आँखीमें हमर पाग आ मुरेठा
हमर आँखीमें अछि,जोर भरि गामक !

हमर आँखीमें अछि, बेगरताक अन्हड़
हमर आँखीमें अछि,सोर भरि गमक !

हमर आँखीमें अछि रहरी बाबक गाछी
हमर आँखीमें अछि, नोर भरि गमक!

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गुरुवार, 24 नवंबर 2011

गजल


एकटा खिस्सा बनि जइते अहाँ संकेत जौं बुझितहुँ।
हमही छलहुँ अहाँक मोन मे कखनो त' कहितहुँ।

लोक-लाजक देबाल ठाढ छल हमरा अहाँ केँ बीच,
एको बेर इशारा दितियै हम देबाल खसबितहुँ।

अहाँक प्रेमक ठंढा आगि मे जरि केँ होइतौं शीतल,
नहुँ-नहुँ भूसाक आगि बनि केँ किया आइ जरितहुँ।

सब केँ फूल बाँटै मे कोना अपन जिनगी काँट केलौं,
कोनो फूल नै छल हमर, काँटो त' अहाँ पठबितहुँ।

जाइ काल रूकै लेल अहाँ "ओम" केँ आवाज नै देलियै,
बहैत धार नै छलहुँ हम जे घुरि केँ नै अबितहुँ।
------------------ वर्ण २० ---------------------

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रोटी रोजीक खोजी@प्रभात राय भट्ट

नेपालक मधेस प्रान्तमें महोतरी जिलाक धिरापुर गामक बर्ष ३० के भोला खत्बेक जीवनचक्र पैर आधारित यी आलेख अछि जे सम्पूर्ण मध्यमबर्गीय आओर निम्मन बर्गीय समुदाय के जीवन जुडल यथार्थ जीवनी  !
                        भोला एकटा निम्नबर्गीय परिवार में जन्म लेलक हुनक माए बाबु बड मुस्किल से मेहनत मजदूरी करी  भोला के पालनपोषण केलक, भोलाक माए बाबु गरीब होवाक कारन भोला प्रारम्भिको  शिक्षा  बन्चित रहल जेनतेन समय बितैत गेल  समयानुसार भोला पैघ सेहो भगेलाह ! समय के संग संग हुनक दाम्पत्य जीवन सुभारम्भ सेहो भगेलई,भरल जुवानी के अबस्था में दाम्पत्य जीवनक रस्वादन एवं आन्नदमें  पूर्णरुपेन डुबिगेलाह अपन आर्थिक स्थितिके नजैर अंदाज करैत गेलाह मुदा विना अर्थ जीवनक गाडीं कतेक दिन चैल सकैय ! कनिया के सौख श्रींगारक सामग्रिः भोजन भातक ब्यबस्था बृध माए बाबु के दबाई दारू सभक आभाव चारू   खटक लग्लई,तकर बाद भोला के अपन जिमेवारिक  बोध भेलैन ! हुनका किछ नै सुझाई  जे की करू  नै करू राईत दिन बेचारा भोला घरक लचरल ब्यबस्था देखि बड चिंतित रहलागल !एक दिन अपन मिता सुरेश कापर के अपन सभटा दु: सुनैलक  ! सुरेश बड नीक सलाह देलकै देखू मिता अई नेपाल देश में स्वरोजगारी के कोनो ब्यबस्था नै छई पढलो लिखल मनुख के नोकरी नै भेटैछैक तहन  हम अहां कोण जोक्रक छि ! हम एकैटा सलाह देब सउदी अरब चैल जाऊ ओईठाम बड़ पैसा भेटैछैक अहंक सभटा दू:ख दूर भ्ज्यात,सुरेशक गप सुनिक भोलाके माथमें चकर देबलगलै !!मुदा किछ देरक बाद भोला सहमती जनौलक आ सुरेश सं बिदा लैत घर तरफ प्रस्थान केलक!
               सुरेश घर पहुचैत कनियाँ कतय गेली ये हमरा बड़ जोर सं भूख लागल अछि किछु खयाला दिया नए,कनियाँक कोनो जवाब नै अयीलाउपरांत ओ भानस घरमे गेल कनियाँ के देखलक माथ हाथ धयने आ सिशैक सिशैक क कानैत,अहां किये कनैछी ये अतराढंवाली ?की भेल किछ बाजब तब नए हम बुझबई ! कनिया कहलकै....हम की बाजु आ बाजल बिनु रहलो नै जैइय,अहां जे कोनो काम धंधा नै करबै तहन ई चुल्हाचौका कोना चलति एक पाऊ चाबल छल जेकर मद्सटका भात बनाक माए-बाबु आ बच्चा सभमे परसादी जिका बाईंट देलौ आ हम त उपबासो कलेब मुदा अहांके त भूख बर्दास्त नै होइया ताहि सं हमर छाती फटी रहल अछि मुदा अहांके त कोनो चिंताफिकिर रह्बेने करेय !तपेश्वर मालिक सेहो बड़ खिसियक द्वार पर सं गेल कहैछल जे ५०० टका के हमर सूद ब्याज सहित २५००० भगेल मुदा यी भोलबा अखन धरी देब के नाम नै लैय,
     हे यए अतराढंवाली अहां आब जुनी चिंता  करू हमरा पैर भरोषा रखु सभ ठीक भजेतई ई किछ दिनक दू:ख थीक एकटा कहाबत छै जे भगवानक घरमे देर छै मुदा अंधेर नै,अतारधवाली के मोन अति प्रसन्न भेलै आ झट सं पुईछ बैठिय आईंयो रामपुकारक पापा आई की बात अछि जे अहां एतेक पुरुषार्थ वाला गप करैत छि ?की बजली यए अतराढंवाली एकर मतलब अहुं हमरा निक्मे बुझैत छि? त कान खोईलक सुनिलिय हम आब सउदी अरबिया जारहल छि  आ ढेर पैसा कमाक अहां लेल भेजब !अतराढंवाली ई बात सुईनते घबरागेल आ कहलागल की बज्लौं ?कने फेर सं बाजु त अहांके जे मोन में अबैय सहे बाईजदैत छि,एहन बात आब बजैत नै होईब से कहिदैछी हम................मोन त भोला के सेहो उदास भजैय मुदा हिमत करिकें कनियाँ के समझाबक कोशिश करेय देखियो कनिया हम जनैत छि जे हम कोनो काम धंधा नै करैत छि तयियो अहां हमरा सं खूब प्रेम करैत छि,आ हमहू अहां बिनु एकौ घडी नहीं रही सकैत छि यी सभटा जनैत बुझैत हम मज़बूरी बस एहन निर्णय लेलहुं आ अईके अलाबा दुसर कोनो रस्तो नहीं अछि ! आखिर यी जीवन त प्रेम आ स्नेह सं मात्र नै चलत नए जीवनमे दुःख सुख भूख रोग सोक पीड़ा ब्यथा वेदना संवेदना प्रेम स्नेह विबाह बिदाई जीवन मृत्यु समाज सेवा घर परिवार ईस्ट मित्र कर कुटुंब नाता गोता मान सम्मान प्रतिष्ठा घर माकन खेत खलिहान बगीचा मचान सत्कार तिरिस्कार मिलन बिछोड यी सभटा जिनगीक अभिन्न अंग अछि,आ यी सभटाके जैर एकैटा थीक जेकर नाम ऐच्छ पैसा............तै हमरा परदेश जाहिटा परते अहां कनिको मोन मलाल नै करू सबहक प्रियतम पाहून परदेश खटेछैक ! हेयौ रामपुकारक पापा यी बात सुनिके हमर छाती फटेय..तहन अहां बिनु हम कोना रहीसकैछी? नए नए हमरा नहीं चाही पैसा कौड़ी महल मकान हम नुने रोटी खेबई सेहो नहीं भेटत त साग पात ख्याक जिनगी काटीलेब कहैत भोलाके भैर पांज पकरिक सिशैक सिशैक नोर बहबैत कानैलागैय....मुदा भोला कुलदेवता के सलामी राखैत माए-बाबु सं आशीर्वाद लैत घर सं प्रस्थान भगेल.....................! अगिला पाठ क्रमश:.............
लेखक:-प्रभात राय भट्ट
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रोजी रोटिक खोजी भाग :-२@प्रभात राय भट्ट
२.भोला साउदी अरबके एकटा कंस्ट्रक्सन कम्पनी में राईतके ११बजे पहुंचल आ भिन्सरमे ७बजे आफिस में हाजिर भोगेल कम्पनी के मैनेजर साहब भोला सं कबूलनामा कागज पैर साईन करबौलक आ भोलाके उक्त कबूलनामा के विवरण सुनौलक :- १.मासिक वेतन ५०० रियाल ड्यूटी ८ घण्टा २.करार अवधि ३ वर्ष ! भोला इ बात सुनिक हतप्रभ भोगेल जेना मानु भोलाके माथ पैर बज्रपात गिरगेल फेर भोला अपने आपके सम्हारैत मैनेजर साहब सं कहलक नेपाल के मेनपावरक कबूलनामा अनुसार हमर पगार ६०० रियाल + खाना +२०० ओभर टाइम आ दू वर्षमे ३ मासक छुटी के सर्त भेल छल मुदा मैनेजर भोलाके एकोटा बात नै सुनलक तहन भोला कहलक हम सुखा ५०० में काम नै करब २०० खानामे खर्च भोज्यात बचत ३०० रियाल ३०० रियाल्के नेपाली टाका ६०० हजार मात्र होइतअछ तेहेतु हमरा वापस भेज दिय ! मैनेजर भोलाके सामने साम दंड भेद क सूत्र अनुसरण करईत कडा रूप सं प्रस्तुत भेल बेचारा भोला मैनेजर के चंडाल रूप आ कडा चेताबनीके सामने निरीह बईनगेल आ काम करबलेल तयार भोगेल !
             भोला अपन भाग्य के साथ समझौता करैत क्म्पनिके काजमे ईमानदारी पुर्बक सरिक भोगेल मुदा महिना लागैत पगार हातमें आबिते भोला हिसाब किताब में लाईग जाईतछल खाना नास्ता के खर्च निकालैत बाद मुस्किल सं ३०० रियाल बचैक आब भोला घरके बारेमे सोचैलागल ३०० रियाल के सिर्फ ६००० हजार नेपाली होइतअछ जाही सं घर परिवार चलत की रु.१००००० कर्जा सधत जेकर सिर्फ ब्याज ३०० हजार चैलरहलअछ याह बात सोचैत सोचैत प्रात:भोगेल फेर वेचारा भोला अपन दैनिक काम काज में तठास्त रूप सं लाइग जाय याह: क्रम लगभग ५/६ महिना चलैतगेल तेकरबाद भोला किछ टाका घर भेजलक जाही सं हुनक घर खर्च चैलरह्ल छल ! १ साल बितला बाद भोलाके घर सं चिठ्ठी आएल भोला उक्त चिठ्ठी पैढ़क मर्माहित भोगेल चिठ्ठीमें लिखल रहैक रामपुकार के बाबु घरक स्थिति बड़ नाजुक अबस्था सं गुजरी रहलअछ आ अहां जे कर्जा लक गेल छि ओकर ब्याज ३६०० हजार भोगेल महाजन आएल छल कहिक गेल जे आब मूल धन रु१३६००० भोगेल ऐ बात पैर ध्यान दिय भोला चिठ्ठी पढैत फेर घर क चिंता में डुबिगेल कर्जा कोना सधत ? भोलाके उदास देख हुनक संघतिया पुईछ बैठल आईयो मिता अहां ऐना सदिखन एतेक उदास किये रहैत छि यौ ? भोलाक ध्यान भंग भेल आ संघ्तियाके अपन सभटा दू:ख 
सुनौलक  ! संघतिया हाथ में खैनी मलैत कहलक रुकू कने ई खैनी खाय दिय तहन हम कुनु उपाय बताबैछी खैनी ठोर में धरैत झट सं एकटा गप भोलाके सुनौलक देखू हम जे कहैत छि से ध्यान सं सुनु चुप चाप हम आर अहां दुनु गोटे इ कम्पनी छोईडक भाईग चलु कतौ दोसरठाम जतय निक कमाई होइत होइक ! मुदा भोलाके संघतियक गप कनियो निक नै लागल  भोला कहलक देखू इ दोसर के देस में भाईग क कतय जाईब कहीं देहि नही भोगेल तहन के मदत करत आ दोसर इ देस के कानून बड़ कडा छैक पकड़ा गेला पैर जेलमे चकी चलबा पडत तहन धोबी के कुता नै घर नै घाट के होइतअछ से बुईझलिय  हम तह नै ज्याब अहां ज्याब तेह जाऊ !
              भोला फेर अपन काम काजमे जुइटगेल आ भोलाक संघतिया मासिक १५०० सय पगारमे दोसर ठाम काम करैलागल देखते देखैत दुई साल बितगेल ! भोलाके घर सं फेर एकटा चिठ्ठी आएल भोला चिठ्ठी पढ़लक चिठ्ठी पैढ़क खुसी होमय बजाय पुनह उदास भोगेल आ गंभीर सोचमे डुबिगेल भोलाके सब से बड़का परेशानी रहैक कर्जा जे साउदी आब बेरमे लेने रहैक भोला सोचलक जे एतबा न्यूनतम पगारमे कर्जा कोना सधत अंतत:भोला कम्पनी छोईड भागके निर्णय ललेलक ! भोला कम्पनी सं भाईग संघतिया के कम्पनिमे चईल्गेल आ मासिक १५०० सय पर काज करैलागल भोला ५ महिनामे रु १००००० टाका घर सेहो भेज देलक आ कनिया सं फ़ोन मार्फ़त गप केलक कनिया सं कहलक इ एक लाख टाका महाजन के खता में जमा कदिय आ हुनका कहिदीय जे ५  महिनके बाद हम हुनकर सभटा पाय चुकता कदेबैय ! आब भोला किछ प्रसन्न मुद्रामे रहैलागल आ अति प्रसन्ता के साथ सोचैलागल लोक ठीक कहैतछई जे
भगवान के घर देर छै मुदा अंधेर नै आब हमरो विपतिक घडी टैर रहलअछ मुदा वेचारा भोलाके की पता जे भाग्य रेखा कियो नै देखने छैक कखन की हेतई से मनुख क कल्पना सं बहुत दूर के चीज छैक समयचक्र कखन कुन रूप लेत इ एकैटा परमात्मा जनैत छथी! बड़ मुस्किल सं भोलाके ठोर पैर मुस्कान आएलछल मुदा दैबके इ रास नै येलैय भोला के जीवन में तेज गति सं एकटा बड़ भारी बज्रपातके आगमन भेलै भोला अपन ड्यूटी ख़त्म क्याक डेरा तरफ जाईके क्रम में रोड पार करैत समयमे भोलाके देह पैर तेज गति में कालरुपी एकटा गाड़ी चैढ्गेल भोला जीवन आ मृत्यु के बिच एक घण्टा लादैत रहल अंत:भोला अपन  चेतना गुमाबैठल ताहि समयमें उद्धार टोली आबिक भोलाके अस्पतालमें भरना कोदेलक ! इ दुखद घटनाके २० दिन बाद भोलाके घरमे खबैर गेल जे भोला आब इ दुनियामे नहीं रहिगेल रोड एक्सीडेंट में हुनक मृत्यु भोगेल इ बात सुनैत बेचारी भोलाके कनिया मूर्छित पैरगेल आ गाम घरक महिला सब भोला कनियाके चूड़ी फोईर मांगक सिंदूर धोबीक विधवा बनाबक काजमे एकमत भोगेल  तखने समाजसेवी एकटा महिला इ बातक घोर विरोध केलन आ सब महिलाके सम्झौलन जाधैर कुनु ठोस पुष्टि नए भेटैय ताधैर रूईक जाऊ कहीं इ समाचार गलत होइक आ भोला जिन्दा होइक ! गायत्री देवी जी के सुपुत्र प्रभात राय सेहो साउदी अरब में रहैथ ओ फोन सं सभटा बात सुनैलैथ आ प्रभात राय अस्वासन देलैथ जे अहां सभ हमर फ़ोन के प्रतीक्षा में रहू हम अखने वास्तविकता कीअछ
प्रभात भोलाके घटना प्रति जानकारी हासिल करैमे लागिगेल ! अस्पताल,पुलिस,एम्बुलेंस,ट्राफ्फिक सभठाम पता लागौल्क बाद प्रभातक मेहनत रंग लौलक 
भोलाके जिबिते अबस्था में रियाद स्थित एकटा अस्पतालके कोमा में भरना भेल देखलक प्रभात तुरत गाम में फोन स आँखी देखल पुख्ता जानकारी देलन्हि इ बात सुनैत धिरापुर गाम में हर्सौलास के माहौल बनल आ गामक सबलोक प्रभात के धन्यबाद दैत एकटा विनम्र अनुरोध केलैथ जतय खर्चा लागते हम सभ चंदा उठाक देब मुदा भोलाके जान बचादियौ ! प्रभात अस्वासन देलैथ अहां सभ जुनी चिंता करी हमरा सं जतय बैन पडत हम जरुर करब आब भोला के उद्धार कार्य में प्रभात दिन राईत एक क देलक तिन मासक बाद भोला अर्धचेतन अब्स्थामे आएल फेर एक महिना उपचार के बब्जुदो किछ आंशिक सुधार मात्र भेल एम्हर अस्प्तालक खर्च सेहो जीवन विमाके हद पार कगेल प्रभातके प्रयासमें भोलाके बैधानिक कम्पनी आ जीवन विमा अस्पताल क खर्च चुकता केलाक बाद डिस्चार्ज भेल आ नेपाल पठाउलगेल ! भोलाके जिबिते अबस्थामे गाम आबक खबैर सुनिक भोलाके परिवार लगायत समूचा गामक लोक एकबेर पुनह खुश भेल २ दिनक बाद भोला अपन मातृभूमि में पहुंचल आ सबहक प्रतीक्षा के घडी ख़त्म भेल ! भोलाके जीवित देखैला समूचा गामक लोक आबिगेल मुदा भोला इ सभ बात सं बहुत दूर जाचुकल रहैक ओ ऐ काबिल नै रहैक जे किनको सं मिलन के खुसी बाईट सकय भोला के अपांग आ अर्धचेतन अबस्था देख सबके मुह सं आह 
निकैल्गेलई ! भोलाके कनिया अपन सोहागरूपी पति परमेश्वर के अपांगो अबस्थामें भेटगेलैय ते खुसी जरुर भेलै मुदा किछ दिन बाद अतराढवाली के लेल ओकर सोहाग एकटा दीर्घकालीन बोझ बैनगेलैय ओई बोझक भार उठेनाई बड़ मुस्किल भरहल छै किये तेह आजीवन अपांग आ अर्धपागल रही गेलाह !!
लेखक:-प्रभात राय भट्ट

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गज़ल - अजय ठाकुर (मोहन जी)

सोचलो नै हम निक-बेजैई, देखलो सुनलो किछो नै /
मंगलो भगवान स हर समय, आहा सिवा किछो नै //

देखलो,चाहलो अहिके, सोचलो अहिके पुजलो अहिके /
"मोहन जी" के वफ़ा खता, आहाक खता किछोबो नै //

हुनका पर हमर आँख त, मोती बिछेलक दिन-रैत भैर /
भेजलो ओहे कागज हुनका, हम त लिखलो किछोबो नै //

एक साँझ के देहलीज़ पर,बैसल छलैथ ओ देर राती तक /
आँईख स केलैथ बात बहुत, मुह स कहलैथ किछ्बो नै //

पांच-दस दिन के बात या,दिल ख़ाक में मिल जायत /
आईग पर जखन कागज राखब, बाकी बचत किछ्बो नै //

रचनाकार :- अजय ठाकुर (मोहन जी)


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बुधवार, 23 नवंबर 2011

गजल


हमर नजरि मे पैसि केँ हमर नजरि बनि फडकि रहल छी।
पोर-पोर मे अहीं समेलौं, सीना मे हमर अहीं धडकि रहल छी।

विरह-विष सँ मोन पीडित छल, अहाँक प्रेमक अमृत भेंटल,
प्रेम-सुधा सँ मोन नै भरै, जतबा पीबि ओतबा परकि रहल छी।

हृदयक छल बाट सुखायल, जेकरा सिनेह अहाँक भीजायल,
छन-छन भीजि प्रेमक बरखा मे, तखनो किया झरकि रहल छी।

जिनगीक रौदी केँ अहीं भगेलौं, अहाँ प्रेम-मेघ केर छाहरि केलौं,
भरल हमर आकाश प्रेम सँ, अहाँ छी बिजुरि तडकि रहल छी।

भाव-शून्य "ओम"क छल जे अंतर, जिनगी मे आबि मारि केँ मंतर,
अहीं बनलौं गजल कविता, बनि भाव मोन मे बरकि रहल छी।
--------------------------- वर्ण २५ ---------------------------

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मंगलवार, 22 नवंबर 2011

------------------गजल---------------------

चारिटा दोकान चाहक, हमर गामक चौक पर
भीड़ भरी मेल लोकक, हमर गामक चौक पर!

की मोहालीमे भेलै आ की श्रीलंकोमे भेलै
लोक डफा लए नाचैए, हमर गामक चौक पर!

हमर गामक लोक कें बुझल ने छै हालो अपन
टूटी गेलए इसकुल गामक, हमर गामक चौक पर !

हमर गामक लोक कें की भ' गलें, सोचै छि हम
खुजी गेलए दारुक भट्टी,
हमर गामक चौक पर!

चल गेल बसुदेवजी रामायणाक पद बाँची क'
आब महाभारत मचेए, हमर गामक चौक पर !

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गजल


भेंटलै जखने नबका मीत पुरना केँ कोना छोडि देलक।
जकरा सँ छल ठेहुँन-छाबा, हमर मोन के तोडि देलक।

सपथक नै कोनो मालगुजारी, सपथक नै बही बनल,
संग जीबै-मरैक सपथ खा केँ जीबतै डाबा फोडि देलक।

ओकरा लग छै ढेरी चेहरा, हमरा लग बस एके छल,
अपन भोरका मुँह पर नब मुँह साँझ मे जोडि देलक।

जिनगी-खेत मे विश्वास-खाद द' प्रेमक बीया हम बुनल,
धोखा केर कोदारि चला केँ देखू लागल खेती कोडि देलक।

"ओम" प्रेमक घर बनेलक, ओकरा बिन छै सून पडल,
बाट जे जाइ छल ओहि घर मे, कोनो जोगारे मोडि देलक।
---------------------- वर्ण २२ --------------------

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लकीर मिटा दैत अछी - अजय ठाकुर (मोहन जी)

प्यार करे के सजा बहुत नीक दैत अछी कनियाँ /
मैर जाउ त जिबै के दुआ दैत अछी दुनियां //

"मोहन जी" कोन सूरज छथि जे इलज़ाम नै सहतैथ /
मिथिला में पत्थर के भगवान बना दैत अछी दुनिया //

इ जख्म प्यार के देखब नै ककरो /
आनि क पूरा बाजार सजा दैत अछी दुनिया //

किस्मित पर नाज़ नै करू मिथिला वाशी /
हाथ के लकीर मिटा दैत अछी दुनिया //

शादी के बाद मारे के उपाय करे अछी कनियाँ /
जिबे के उपाय सिखा दैत अछी दुनिया //

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रविवार, 20 नवंबर 2011


बढ़ल परेशानी चढ़ल जवानी@प्रभात राय भट्ट

लालपुर के हम लालपरी
ललमुनिया हमर नाम
रुसल फूलल सभक दिल
बह्लाबक अछि हमर काम
एक तेह हमर चढ़ल जवानी
दोसर जान मरैय सावनके पानी
हाय रामा.........................२
हाय रे हाय रे हाय रामा // २

बढ़ल परेशानी चढ़ल जवानी
कियो कहे दिलवरजानी
कियो कहे रुपकरानी
कियो कहे आबू एम्हर
कियो बजाबे ओमहर
हम जाऊ कोमहर कोमहर
हाय रामा .......................२
हाय रे हाय रे हाय रामा //२

कसमस चोली मरैय जान
घघरीमें उठल प्यारके तूफान
जान मरैय ठोरक लाली कानक बाली
केशक गजरा आईखक कजरा
आगू पाछु घुमैयसमूचा  हिंदुस्तान
भेली रे भेली हम जवानी सं परेशान
हाय रामा ..................................२
हाय रे हाय रे हाय रामा .........//२

लच लच लचकैय पतरी कमरिया
देह सं ससरल जाईय हमर चुनरिया
कियो कहे आई लव यु
हेलो मैडम हाउ आर यु
निहायर २ मारे जुल्मी नजरिया  
आगू पाछु करे समूचा दुनिया
हाय रामा ...........................२
हाय रे हाय रे हाय रामा ...//२

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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शनिवार, 19 नवंबर 2011

भूख:-

फुटपाथक कतमे पड़ल
छाओ मासक नेनाके
भूखसँ बेहाल पथियामे राखल आम दिस लपकैत देखि
कात करैत ओकर माय कहै अछि -

पियास लागल छह?
आनि देत छियह
चापाकल सऽ ठंढा पानि
भरि मोन पीबी लिहs
पिब हमहूँ
शान्त करब अपन लहरित पटकें
तोहर सेहो!

एक आमक दाम
बुझल छह तोरा?
नहि ने!
मात्र पाँच टाका महाजन सुदी
एक संझाक खोराक
आधा सेर मोटका चाऊरक दाम
चलह बना देत छियs मरसटका
ओहिमे तकियs बेटा!
मालदह आमक स्वाद!

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उर्वरभूमि बनाएब हम अपन धरती@प्रभात राय भट्ट

विचित्र सृष्टिक रचैता हे ईस्वर //
सभक सुदी रखैयबाला परमेश्वर // २

गरीबक जिनगी की अछि बेकार
किये करैया लोग हमर त्रिष्कार
पैघ मनुख किये दैय धिकार
कुनु ठाम नहीं अछि गरीबक अधिकार //

हे ययौ पालनहार कने सुनु ने हमर पुकार
सभक उद्धार  केलौं कने सुनु ने हमरो उपकार
फुलक हार नहीं नैयनक नोर चढ़ाबआएलछि
आईखक दुनु प्यालामे किछ मांगलेल आएलछि//

गगनचूमी कोठा अटारी नहीं चाही
हमर झोपरीमे सुख शांति दिय
कंचन कोमल काया नहीं चाही
बज्रदेह बाहिमें ताकत दिय.........//

विघा दस विघा जमीं नहीं चाही
कठा दस कठा खेत बारी दिय
चटान फोरबाक हिमत दिय
हिमाल सन अटल छाती दिय //

आराम आर विश्राम नहीं चाही
श्रमिकके श्रम करबाक सौभाग्य दिय
कोईर कोईर तोईर तोईर बाँझ पर्ती
उर्वरभूमि बनाएब हम अपन धरती //

खुवा मेवा मिष्ठान नहीं चाही
भोर साँझके दू छाक आहार दिय
सुख शैल विलास नहीं चाही
जीवन चालबलेल कुनु अधार दिय //

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

गजल


कतौ छै रौदी प्रचंड, कतौ बरखा सँ हरान छै।
कतौ छै फूजल मोन, कतौ बन्न पेटी मे प्राण छै।

ककरो भेल अपच, कियो देखू भूखले मरल,
कतौ छै होइत भोज, कतौ उजडल दोकान छै।

एके कलम सँ लिखलक किया भाग्य नै विधाता,
कतौ छै तृप्त हृदय, कतौ छूछे टा अरमान छै।

कियो मुट्ठी मे समेटने कते इजोत छै बैसल,
कतौ छै जे सून घर, कतौ भरल इ दलान छै।

अचरज सँ देखै छै "ओम" लीला एहि दुनियाक,
कतौ छै इ मौनी खाली, कतौ बखारी भरि धान छै।
------------------- वर्ण १८ ------------------

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गुरुवार, 17 नवंबर 2011

डीहक जमीन


डीहक जमीन
ट्रेन सकरी टीशन सँ फूजल आ पूब दिस घुसक' लागल। नरेश एकटा बोगी मे अपना सीट पर बैसल अपन गामक बात सब मोन पाडैत विचारमग्न भ' गेल। बहुत दिनक बाद ओ अपन गाम जा रहल छल। भरिसक १० बरखक बाद। ओ एखन भोपाल मे शिक्षा विभाग मे नौकरी करैत छल अधिकारीक पद पर। गाम जाय लेल चिकना टीशन उतरि क' जाय पडै छलै। सकरी तक बडी लाईनक ट्रेन चलैत अछि। ओतय सँ फेर छोटी लाईनक ट्रेन सँ। ओकरा बोगी मे पूरा लोक कोंचल छल। चारि पसिन्जरक सीट पर सात-आठ लोक बैसल छल। हो-हल्ला आओर गप-शप सँ पूरा डिब्बा मे कोलाहल जकाँ छलै। मुदा ओकर दिमाग मे अपन पुरनका दिन घुरिया लगलै। सबटा दृश्य चलचित्र जकाँ ओकर आँखिक आगाँ घूम' लगलै। ओ अपना केँ २० बरख पहिनुका स्कूल मे देख' लागल। बस्ता ल' के नित भोरे पाठशाला जेबाक दृश्य आगाँ मे नाच लगलै। ओकर पिता फेंकन मरड हरवाह छला आओर गाम मे भुटकुन बाबू ओतय खेतीक आ माल-जालक काज करै छला। किछ बटाई पर खेती सेहो करै छला। अपन जमीनक नाम पर पाँच कट्ठा खेतीक जमीन आ आठ धूरक घरारी छलैन्हि। हुनकर माय 'मरौनावाली' केर नाम सँ जानल जाईत छलीह। भरि दिन मरौनावाली भुटकुन बाबू ओतय घरेलू काज मे मदति करैत छलीह आ साँझे घर आबै छलीह। नरेश बच्चा छलाह आ भरि दिन एम्हर ओम्हर खेलाइत रहैत छलाह। एक दिन भुटकुन बाबू फेंकन केँ कहलखिन्ह जे नरेशवा भरि दिन टौआइत रहै छौ, कियाक नै ओकरा हमरा एहिठाम चरवाही मे पठा दैत छी। फेंकन बजलाह- "गिरहत, ई गप नै कहियौ, ओ एखन मात्र चारि बरख के छै। ओकरा अगिला बरख सँ स्कूल पठेबै।" भुटकुन बाबू व्यंग्य मे बजलाह- "तौं त' एतबे टा सँ हमरा एहिठाम चरवाही करै छलैं। तखन तोहर बाबू हरवाही करै छलखुन्ह, मोन छौ ने।" फेंकन कहलक- "जी ओ जमाना आब नै छै गिरहत। मरौनावाली एकदम जिद केने छै जे नरेशबा केँ स्कूल पठबियो। किछ दिन पहिने बिसेसर बाबू मास्टर साहब भेंटल छलाह। ओ कहलथि जे पढेनाई बड्ड जरूरी छै तैं नरेशबा केँ स्कूल पठाबहक।" भुटकुन बाबू- "जे तोहर इच्छा। हम त' तोरे दुआरे कहलियो। तोहर काज किछ हल्लुक भ' जइतो।" फेंकन- "गिरहत, हम जा धरि सकब, ता धरि अहाँ केँ काज करैत रहब।"
अगिला साल नरेशक नाम स्कूल मे लिखाओल गेल। नरेश पढै मे नीक छलाह आ जल्दिये मास्टर सबहक प्रिय भ' गेलाह। दसवीं बोर्ड मे ओकरा अस्सी प्रतिशत अंक आयल। ओ काओलेज मे पढै लेल दरिभंगा चलि आयल आओर ट्यूशन पढा केँ अपन खर्च निकालैत पढ' लागल। ओम्हर गाम मे फेंकन आओर मरौनावाली भुटकुन बाबूक काज मे लागल रहल। नरेशक पढाई पूरा भेलै आ मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोगक इम्तिहान पास क' के शिक्षा विभाग मे नौकरी भेंटलै। नियुक्ति पत्र गामक पता पर आयल छल आओर सौंसे गाम अनघोल भ' गेल रहै। ओहि दिन नरेश अपना केँ आकाश मे उडैत पाओलक। भुटकुन बाबू जे आब वृद्ध भ' गेल छलाह ओहो नरेश केँ बजा के आशीर्वाद देलखिन्ह। मरौनावाली त' कानैत बेहाल छल जे बेटा आब नजरि सँ दूर भ' जायत। किछ दिनक बाद नरेशक बियाह भ' गेलै। किछ दिन कनियाँ गामे मे रहलैन्हि। फेर जयबाक जिद क' देलकै। नरेश कनियाँ केँ ल' के भोपाल चलि गेल। मरौनावाली ओहि दिन बड्ड कानल रहै। नरेश अपन माता पिता कैँ संगे रहै लेल बहुत आग्रह केलक, मुदा फेंकन साफ मना क' देलकै। ओकर कहनाई रहै जे पुरखाक डीह छोडि नै जायब। नरेश कहलक जे ई आठ धूर डीह अहाँ केँ एतेक प्रिय भ' गेल जे अपन एकलौता संतान संगे रहै लेल तैयार नै छी। ओतय नाना प्रकारक सुविधाक गप सेहो नरेश कहलकै, मुदा फेंकन अपन जिद पर अडल रहलाह। मरौनावाली कनी जिद केलखिन्ह, त' फेंकन खिसिया गेला आओर कहलखिन्ह जे अहाँ चलि जाउ, हम असगरे रहब। मरौनावाली धर्मसंकट मे पडि गेली आ अंत मे गामे मे रहै केँ निर्णय लेलथि। नरेश नियमित रूप सँ गाम पाई पठबैत रहै आओर फेंकन के हरबाही जबरदस्ती छोडा देलक। फेंकन साल दू साल पर नरेश लग जाइत रहै छलाह आओर नरेश काजक अधिकता आओर बच्चा सबहक पढाई दुआरे गाम कहियो नै आबैत छलाह। आब मोबाइलक जमाना मे नरेश फेंकन केँ मोबाइल सेहो कीन देने छलखिन्ह, जाहि सँ ओ सब नियमित रूप सँ सम्पर्क मे रह' लगलाह। एक दिन फेंकन मोबाइल सँ नरेश केँ फोन केलखिन्ह आ कहलखिन्ह- "बौउआ, अपन डीह सँ सटल भुटकुन बाबू केर दू कट्ठा जमीन परती पडल छै। ओ ओहि जमीन केँ बेच' चाहैत छैथ। हमरा कहलैथ जे तौं ओ जमीन कीनब' त' हम तोरा पच्चीसे हजार मे द' देब'। बौउआ ओहि जमीनक कीमत चालीस हजार सँ कम नै छै। नीक मौका छै। पाई पठा दितहक त' हम तोरे नाम सँ वा तोहर कनियाँक नाम सँ जमीन कीन दितिय'।" नरेश चोट्टे खिसिया गेल आ बाजल- "हमरा गाम सँ कोनो मतलब नै अछि। अहाँ बलौं जमीन कीन' चाहै छी। हम त' सोचै छी जे आठ धूरक डीह आ पाँच कट्ठा खेतीवाला जमीन बेची आओर गाम सँ पिण्ड छोडाबी।" फेंकन- "हमरा जीबैत ई काज नै हेतौ। पुरखाक जमीन बेचबाक बात तोहर मोन मे कोना केँ एलौ। तू ओहि गाम सँ पिण्ड छोडेबाक गप करै छ, जतय नेना मे खेलेलह, जतुक्का पानि पीबि केँ नमहर भेल', जतय तोहर बाप-दादा केर सारा छ। तू डीहक नबका जमीन नै कीन, मुदा पुरनका बेचै केँ गप नै कर।" अस्तु नबका घरारी कीनबाक गप एतहि खतम भ' गेल।
एक दिन नरेशक बडकी बेटी सुनन्दा, जे चौथा मे पढै छल, नरेश केँ कहलक- "पापा, जेना हम अहाँ संगे रहै छी, अहूँ त' बच्चा मे बाबा संगे रहैत हैब।" नरेश- "हाँ, रहैत छलहुँ। सब रहैत अछि।" सुनन्दा- "अहाँ के सब गप मानैत हेता बाबा।" नरेश- "हाँ यथासम्भव मानैत छलाह।" सुनन्दा- "अहाँ बड्ड नीक छी पापा। हमर सब गप पूरा करै छी। हमहुँ नमहर भ' केँ अहाँक सब गप जरूर मानब।" ई कहैत ओ खेलाई लेल चलि गेल। ओकर अन्तिम वाक्य सुनि नरेश धक् रहि गेल। ओकरा अपन नेनपनक सब गप मोन पडय लागलै, जे कोना फेंकन फाटल धोती पहिरैत रहल, कोना मरौनावाली फाटल नुआ पहिरैत रहलीह, मुदा नरेशक पढाई मे कोनो बिथुत नै हुअ देलखिन्ह। एक बेर त' नरेश केँ फार्म आ किताब लेल पाँच सय टका भुटकुन बाबू सँ पैंच लेबा मे कोन कोन गप नै फेंकन केँ सुन' पडल छलै। नरेशक मोन मे विचारक तूफान उठि गेल। ओ घर सँ बाहर निकलि केँ घूम' लागल। घूमैत पार्क दिस चलि गेल। ओतय एकटा गाछ पर एकटा चिडै अपन बच्चा सब केँ चोंच मे दाना दैत छल। ओकर हृदय फाट' लागलै। पण्डितजी केर संस्कृतक कक्षा मोन पड' लागलै जाहि मे ओ "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि" पर लगातार दू घन्टी पढबैत रहि गेल छलखिन्ह। ओ कक्षा नरेश केँ बड्ड नीक लागल रहै। कतेक दिन धरि ओ एहि श्लोकक पाठ करैत रहै छल। एहि विषय पर वाद विवाद प्रतियोगिता मे सेहो ओ नीक बाजल छल आओर जिला स्तर पर पुरस्कार सेहो भेंटल छलै। ओ एकटा निर्णय लेलक आओर डेरा आबि केँ कनियाँ सँ कहलक- "हमर अटैची तैयार क' दिय'। हम गाम जायब।" कनियाँ बाजलैथ- "इ की बाजै छी। ओतय एखन जा क' की करब? दस बरख सँ उपर भेल गाम गेला। के चिन्हत? बाबूजी सँ नित गप होयते अछि।" नरेश- "डीहक जमीन कीनै लेल जाइत छी।" कनियाँ- "इ कोन बतहपनी धेलक अहाँ केँ।" नरेश- "बताह त' एखन धरि छलहुँ। आब ठीक भ' गेलौं। जाहि मातृभूमि केर माटि-पानि सँ हमर देह पोसल अछि, जे मातृभूमि हमरा हमर पहचान देलक, ओकरा हम बिसरि गेल छलौं। माय-बाबूक आकांक्षा आ मनोरथ बिसरि गेल छलौं। एतय भोपाल मे सब सुविधा अछि, मुदा जे अपनैती हमरा गाम मे भेंटैत रहै तकर अभाव बुझाइत रहै ए। आब गाम साल मे एक बेर त' जरूर जायब।" कनियाँ कनी काल घमर्थन केलकैन्हि, मुदा हुनकर जिद आ दृढताक आगाँ चुप भ' गेलै।
एकाएक नरेशक भक् टूटल। बगलक यात्री, जिनका सँ सकरी मे परिचय भेल रहैन्हि, हुनका हिलबैत कहैत रहै जे श्रीमान् चिकना आबि गेलै, कतेक सुतब, उतरू नै त' ट्रेन फूजि जैत। मुस्की मारैत नरेश बजलाह- "नै यौ, आब जागि गेल छी। एखन धरि सुतल छलहुँ।" इ कहैत ओ टीशन पर उतरि गेल आ गाम दिस चलि देलक। डेग जेना हल्लुक भ' गेल रहै आ तुरन्ते गाम पहुँचि गेल। फेंकन एकाएक नरेश केँ देखलक त' आश्चर्य भेलै आओर मरौनावाली भरि पाँज मे बेटा केँ पकडि कान' लागल। नरेश फेंकन के गोर लागि केँ कहलक- "बाबू, हम आबि गेलौं डीहक जमीन कीनबाक अछि ने।"
साँझ मे दुनू बापूत भुटकुन बाबू लग गेलाह। भुटकुन बाबू नरेश केँ आशीर्वाद दैत कहलखिन्ह- "गाम केँ कोना बिसरि गेलहक?" नरेश- "नै बाबा, बिसरल नै छलौं, कतौ हरा गेल छलौं। आब आबि गेलौं। डीहक जमीन कीनै लेल।" भुटकुन बाबू हँसैत बजलाह- "चल काल्हिये रजिस्ट्री क' दैत छियो। पाई आगाँ पाँछा द' दिह'।" नरेश- "पाई आनने छी बाबा।"
साँझ मे फेंकनक छोट दलान लोक सँ भरल छल। मरौनावाली रहि रहि के चाह बनाबैत छल। नरेशक गाम मे आओर ओकर घर मे जेना पावनि-तिहारक चुहचुही छलै।

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हड्डी भाल्पट्टी में टुटल - अजय ठाकुर (मोहन जी)

हमरा त हमर कनियाँ और सैर लुट्लक, दोसर में कहा दम छल /

"मोहन जी" के हड्डी भाल्पट्टी में टुटल, और ओतुका हॉस्पिटल बंद छल //

हमरा त नरकटिया गंज में बैसेलक, ओकर कोयला खतम छल /

हमरा फेर बैलगाड़ी में बैसेलक, कियाकी ओकर किराया कम छल //

पुरना बैलगाड़ी पर हमरा बैसेलक, ओकर पहिये ढील छल /

हमरा त डॉक्टर और चपराशी उठेलक, नर्ष में कहा दम छल //

हमरा त देशी पिया क नशा में अनलक, अंग्रेज़ी में कहा दम छल /

हमरा त रोड पर जला देलक, कियाकी आम मजरे के समय छल //



रचनाकार :- अजय ठाकुर (मोहन जी)

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बुधवार, 16 नवंबर 2011

आंगन में मिट पके या - अजय ठाकुर (मोहन जी)

जिनका मुह में लड्डू रहेत अछी /

हुनके मुह पर माक्षि पहेत अछी //

हुनका घर के तरप कुत्ता जय या /

जिनका घर आंगन में मिट पके या //

दुध / पैन स या मय स भरू /

जिंदगी त एक ग्लिस होया //

मूलतः सब वस्त्र हिन् होया /

सभ्यता त चद्दर होय //

यात्रा तखन तक होय अछी /

जखन तक आहा तलाश करे छी //


रचनाकार :- अजय ठाकुर (मोहन जी)

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